दुनिया बड़ी स्वार्थी है
चाहे वो आपके माता-पिता ही क्यों न हो उनका भी कंही न कंही आपसे स्वार्थ ही जुड़ा हुआ है,ज्यों-ज्यों आपकी उम्र बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों उनका स्वार्थ आपके प्रति बढ़ता जाएगा।।
इंसान अपने स्वार्थ के कारण किसी को भी नीचा दिखा सकता है,चाहे वो आपका अपना सगा ही क्यों न हो।।
आप इतिहास पलट के देखे जितनी भी बड़ी-सी-बड़ी घटना घटी है इस संसार मे वो स्वार्थ के कारण ही घटी है।
चाहे वो घटना कल्याणकारी हो या फिर विनाशकारी उसके केंद्र में स्वार्थ ही था जिस कारण बड़ी-सी-बड़ी घटना घटी है।।
आज का वर्तमान ही आप देखे जो भी बदलाव देखने को मिल रहे है,
उनमे कंही न कंही स्वार्थ ही निहित है।।
इस स्वार्थ को कई लोग ने अलग अलग नाम दिया है,जैसे कि मोह,लोभ,पापी,दुराचारी,अत्याचारी इत्यादि अनेक नाम है,इन सब के पीछे स्वार्थ ही है।
लोग स्वार्थी न कहकर उसके कृत्य के हिसाब से उसे नाम देते है,जैसे कि किसी के लिए कुछ करने वालो को परोपकारी कहते है,मगर उसके परोपकार में भी उसका स्वार्थ निहित है,
कोई ऊंची उपाधि प्राप्त करना चाहता है तो उसमें भी उसका स्वार्थ निहित है।
यंही तक ही नही बल्कि प्रकृति में हो रही सारी घटनाओं में भी स्वार्थ निहित है।
#स्वार्थ के दो स्वरूप है- एक अच्छा तो दूसरा बुरा।।
अगर आपके द्वारा किये गए कार्य से किसी को फायदा होता है,उसे तकलीफ नही पहुंचती है तो वो अच्छा वाला स्वार्थ है।
अगर आपके द्वारा किये गए कार्य से किसी को नुकसान होता है या फिर उसे तकलीफ पहुंचती है तो ये बुरा वाला स्वार्थ है।।
#तुलसीदास जी की उक्ति है कि-"स्वार्थ लाग करे सब प्रीति"
क्या बिना स्वार्थ के कोई कार्य किया जा सकता है तो जबाब है -नही ।
तो फिर क्या स्वार्थी का तमगा लगा ही रह जाएगा चाहे हम कोई भी कार्य करें-तो जबाब है नही।
ये इस पर निर्भर है कि आप कार्य कौन सी ओर कैसे करते है।।
अगर आप स्वार्थी नामक तत्व से ऊपर उठना चाहते है तो आप #श्रेय लेने की आदत छोड़िये बल्कि अपने द्वारा किये गए बड़े-से-बड़े कार्य मे भी उनको भी श्रेय की भागीदार बनाइये जो आपके कार्य मे दखल दे रहे थे।।
और
#अपनी बड़ी-सी-बड़ी असफलता का श्रेय खुद ले न कि इसके लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराये ।।
शायद इससे स्वार्थ नामक तत्व से आपसे पीछा छूट जाए,मगर इसमे भी कंही न कंही स्वार्थ ही निहित है ।।
चाहे वो आपके माता-पिता ही क्यों न हो उनका भी कंही न कंही आपसे स्वार्थ ही जुड़ा हुआ है,ज्यों-ज्यों आपकी उम्र बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों उनका स्वार्थ आपके प्रति बढ़ता जाएगा।।
इंसान अपने स्वार्थ के कारण किसी को भी नीचा दिखा सकता है,चाहे वो आपका अपना सगा ही क्यों न हो।।
आप इतिहास पलट के देखे जितनी भी बड़ी-सी-बड़ी घटना घटी है इस संसार मे वो स्वार्थ के कारण ही घटी है।
चाहे वो घटना कल्याणकारी हो या फिर विनाशकारी उसके केंद्र में स्वार्थ ही था जिस कारण बड़ी-सी-बड़ी घटना घटी है।।
आज का वर्तमान ही आप देखे जो भी बदलाव देखने को मिल रहे है,
उनमे कंही न कंही स्वार्थ ही निहित है।।
इस स्वार्थ को कई लोग ने अलग अलग नाम दिया है,जैसे कि मोह,लोभ,पापी,दुराचारी,अत्याचारी इत्यादि अनेक नाम है,इन सब के पीछे स्वार्थ ही है।
लोग स्वार्थी न कहकर उसके कृत्य के हिसाब से उसे नाम देते है,जैसे कि किसी के लिए कुछ करने वालो को परोपकारी कहते है,मगर उसके परोपकार में भी उसका स्वार्थ निहित है,
कोई ऊंची उपाधि प्राप्त करना चाहता है तो उसमें भी उसका स्वार्थ निहित है।
यंही तक ही नही बल्कि प्रकृति में हो रही सारी घटनाओं में भी स्वार्थ निहित है।
#स्वार्थ के दो स्वरूप है- एक अच्छा तो दूसरा बुरा।।
अगर आपके द्वारा किये गए कार्य से किसी को फायदा होता है,उसे तकलीफ नही पहुंचती है तो वो अच्छा वाला स्वार्थ है।
अगर आपके द्वारा किये गए कार्य से किसी को नुकसान होता है या फिर उसे तकलीफ पहुंचती है तो ये बुरा वाला स्वार्थ है।।
#तुलसीदास जी की उक्ति है कि-"स्वार्थ लाग करे सब प्रीति"
क्या बिना स्वार्थ के कोई कार्य किया जा सकता है तो जबाब है -नही ।
तो फिर क्या स्वार्थी का तमगा लगा ही रह जाएगा चाहे हम कोई भी कार्य करें-तो जबाब है नही।
ये इस पर निर्भर है कि आप कार्य कौन सी ओर कैसे करते है।।
अगर आप स्वार्थी नामक तत्व से ऊपर उठना चाहते है तो आप #श्रेय लेने की आदत छोड़िये बल्कि अपने द्वारा किये गए बड़े-से-बड़े कार्य मे भी उनको भी श्रेय की भागीदार बनाइये जो आपके कार्य मे दखल दे रहे थे।।
और
#अपनी बड़ी-सी-बड़ी असफलता का श्रेय खुद ले न कि इसके लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराये ।।
शायद इससे स्वार्थ नामक तत्व से आपसे पीछा छूट जाए,मगर इसमे भी कंही न कंही स्वार्थ ही निहित है ।।