अगर हां...
तो आपको सोचने की जरूरत है..
की, क्या आप जिंदा है या फिर मशीन बन(मर) चुके है..।।
बच्चे का स्वभाव ही होता है..
हँसना,रोना,चिल्लाना,चीखना और चुप रहना और बहुत कुछ एक साथ करना..
सबसे बड़ी बात ये है कि..
बच्चें एक समय मे ही ये सब एक साथ कर सकते है..
और हम सब ज्यों-ज्यों बड़े होते है..
ये सब पीछे छूट जाता है..
क्या आपको याद है..
आपने आखरी बार कब खुल के हंसा था या फिर रोया था..
आपने आखरी बार कब जोर से चीखा या चिल्लाया था..
या फिर आपने आखरी बार कब चुपी रखी थी..
शायद आपको याद न हो..
थोड़ जोर देंगे तो कंही याद आ जाये..जोड़ दीजिये..
आपको ये बात जरूर याद होगी..
•आपको आखरी बार गुस्सा कब आया था..
(मुस्कुराइए😊 आपकी यादाश्त अच्छी है.)
सबसे अजीब बात ये है की..
हमें गुस्सा कंही भी किसी के ऊपर आ जाता है,कभी-कभी तो इस गुस्से के कारण रिस्ते तक खराब हो जाते है..
और शायद इसका बाद में अफसोस भी होता है..
कभी-कभी ये अफसोस ताउम्र बना रहता है..।
मगर सोचा है आखिर हमें गुस्सा आता ही क्यों है..??
क्योंकि हमनें अपने बचपना को दफना दिया है..
आपको याद है..
आप बचपन मे ढेर सारे झगड़े किये होंगे..
मगर वो झगड़े सुलझ गए होंगे..
(शायद ही कोई आपका बचपन का दुश्मन हो)
क्योंकि उस समय हमारे अंदर 'अहम' (ego)नही होता था,
मगर वर्तमान में हम लबालब ego से भरे हुए है..
वो अक्सरहाँ हरेक के बात पे,कभी भी बाहर छलक जाता है..
ना वो व्यक्ति देखता है और ना ही परिस्थिति..।।
इसका हल क्या है..
चलो फिर से जीते है..
और बच्चों की किलकारियां और हंसी ठठोली को महसूस करते है..
चलो फिर से जीते है..
बच्चों के साथ कुछ पल बच्चें हो जाते है..
चलो फिर से जीते है..
और बचपन को समझने की कोशिश करते है...
चलो फिर से जीते है..
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