बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

शिव कौन है..??

शिव कौन है...??
जरा सोचिए🤔...आपके अनुसार शिव कौन है..??



मेरे अनुसार..सवाल ही गलत है..।।
शिव कौन नही है..??
जो कुछ भी है सब शिवत्व ही है..।।
हम ही मूढ़ अज्ञानी है..जो शिव से खुद को अलग कर बैठे है..।
जब कि हम सब,इस सृष्टि में विद्यमान हरेक चीज शिवत्व है..।

शंकराचार्य जब अपने गुरु के पास पहली बार गए..
तो गुरु ने उनसे पूछा कि तुम कौन हो..??
तो उन्होंने अपना परिचय इस रूप में दिया :-

मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम्   श्रोत्र जिह्वे   घ्राण नेत्रे ।
  व्योम भूमिर्न तेजॊ  वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् 1

मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

  प्राण संज्ञो  वै पञ्चवायु:  वा सप्तधातुर्न वा 

  पञ्चकोश:।  वाक्पाणिपादौ   चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:

  शिवोऽहम् शिवोऽहम् 2

मैं न प्राण हूं,  न ही पंच वायु हूं
मैं न सप्त धातु हूं,
और न ही पंच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्‍सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

  न मे द्वेष रागौ  मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य 

                                    भाव:।

 धर्मो  चार्थो  कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: 

शिवोऽहम् शिवोऽहम् 3

न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

 पुण्यं  पापं  सौख्यं  दु:खम्  मन्त्रो  तीर्थं  वेदार्  यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं  भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् 4

मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्‍तु) हूं, न ही भोग का अनुभव,     और न ही भोक्ता हूं।
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

न मे मृत्यु शंका  मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता    जन्म:
 बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् 5

न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र   सर्वेन्द्रियाणाम्।
 चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूपशिवोऽहम्   शिवोऽहम् 6

मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं,

मैं चैतन्‍य के रूप में सब जगह व्‍याप्‍त हूंसभी इन्द्रियों में हूं,

न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,

मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि‍, अनंत शिव हूं।

शंकराचार्य ने अपना परिचय इस रूप में दिया.. जिसे आज हम "निर्वाणषटकं" के रूप में जानते है..।।

और हम शिव को कंहा ढूंढ रहे है..और कैसे ढूंढ रहे है..??क्या ऐसे शिव मिलेंगे...।।

फिर मन मे दुविधा उपजती होगी की जिस तस्वीर को हम पूजते है क्या वे व्यर्थ है...??

नही,उसके समाधान के लिए शंकराचार्य ने "शिव पंचाक्षरस्तोत्र" की रचना की जिसमे उन्होंने शिव के सगुण शरीर का वर्णन किया है:-

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय

भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।

नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय

तस्मै नकाराय नमः शिवाय


मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय

नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।

मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय

तस्मै मकाराय नमः शिवाय

शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा

सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।

श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय

तस्मै शिकाराय नमः शिवाय


वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।

चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय

तस्मै वकाराय नमः शिवाय

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय

पिनाकहस्ताय सनातनाय ।

दिव्याय देवाय दिगम्बराय

तस्मै यकाराय नमः शिवाय

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।

शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते।।







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