कांग्रेस सिर्फ एक पार्टी ही नही बल्कि पूरे भारत को जोड़ने वाली एक माला है/थी।वर्तमान समय में भी इसकी नींव गाँव-गाँव तक अच्छी तरह से जमी हुई है,मगर इसकी शाखाओं में घुन तो इसके पत्तियां पीली पड़ रही है।
हम ये नही भूल सकते है कि ये वही पार्टी है, जिसने भारत की आजादी में अहम भूमिका ही नही निभाई बल्कि जात-पात,धर्म-संप्रदाय, भाषा,खान-पान,रहन-सहन में बटे हुए भूखंड को जोड़ने में कामयाब हुआ।कांग्रेस की सबसे बड़ी सफलता यही है।
जिसे आजतक जाने-अनजाने में भुनाया जा रहा है।यंहा तक कि पंडित जवाहरलाल अगर लगातार 3 बार प्रधानमंत्री बने तो कांग्रेस के नाम पे ही।लोग उस समय नेहरू जी को नही बल्कि कांग्रेस को वोट देते थे,वर्तमान में भी कुछ हद तक यही है।।
मगर वर्तमान में कांग्रेस का हश्र दयनीय अवस्था मे है..।।
डर लगता है कि जिस तरह एक विदेशी #A_O_hume ने 1885 में कांग्रेस के सृजन में अहम भूमिका निभाया, उसी तरह इसके विसर्जन में विदेश में जन्मी सोनिया गांधी का ही अहम योगदान न हो।।
कांग्रेस के कमजोर होने या अस्तित्वविहीन होने से सबसे ज्यादा डर भारतीय लोकतंत्र को है।क्योंकि बिना विपक्ष के लोकतंत्र हो ही नही सकता।।
आज कांग्रेस और कांग्रेस के नेता इतने कमजोर हो गए है कि वो कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र को ही बनाये रखने में सक्षम नही है।किसी भी नेताओं में इतनी शक्ति नही है कि वो खुलकर विरोध कर सके।।
आखिर क्यों..??
क्या कांग्रेस एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है, जंहा सिर्फ चेयरमैन और C.O का ही सब कुछ चलेगा।।
कुछ दिन पहले 23 नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठियां लिखी थी मगर कोई खुलकर के विरोध नही कर सका। क्या कांग्रेस के किसी नेताओं में इतनी हिम्मत नही की वो परिवारवाद का विरोध कर सके।
मगर अफसोस राहुल गांधी के द्वारा पूछे गए सवाल,की आखिर चिट्ठियां क्यों लिखी गई..??
इस सवाल का जबाब देने के बजाय सब नेताओं ने अपना बचाव करना ही उचित समझा।।
आज स्थिति ये है कि भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टी परिवारवाद में जकड़ी हुई है।जो सिर्फ एक पार्टी के लिए ही नही बल्कि पूरे लोकतांत्रिक देश के लिए खतरा है।
आशा है कि कांग्रेस स्थितयां को भांपते हुए भविष्य में अपने ऊपर लगे हुए परिवारवाद के थप्पे को मिटाने की कोशिस करेगा।मगर उम्मीद कम ही है।