गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

भारत में सिनेमा का सफर।

 भारत में सिनेमा का सफर।


20वीं शताब्दी में सिनेमा की कला अपने अविष्‍कार के कुछ वर्षों के भीतर भारत आ गई। भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के ने 1913 में पहली मूक फीचर फिल्म राजा हरिशचंद्र रिलीज़ की।


इसके बाद यह इतिहास बन गया। और
पहली बोलने वाली फिल्म आलम आरा अर्देशिर ईरानी ने 1931 में बनाई।


द्वितीय विश्व युद्ध के बाद गीतों, नृत्य और रोमांस से मिली जुली फिल्म जिन्‍हें इंडियन मसाला कहा गया वो सामने आईं। 1940 के दशक में भारत के लगभग आधे सिनेमा हॉल्स और भारत की कुल फिल्‍मों में से करीब पचास फीसदी फिल्‍में बनाने वाला दक्षिण भारत सांस्कृतिक पुनर्जीवन का माध्यम बन गया।


स्वतंत्रता के बाद भारतीय सिनेमा का वास्तविक विस्तार शुरू हुआ। सरकार ने 1948 में फिल्म प्रभाग स्थापित किया


जो विश्व के विशाल डॉक्युमेंट्री 
फिल्म निर्माताओं में गिना गया और इसने वर्ष भर में दो सौ से अधिक लघु डॉक्युमेंट्री बनाईं जो प्रत्येक 18 भाषाओें में रिलीज़ की गई। देश में स्थाई फिल्म थिएटरों के लिए नौ हजार प्रिंट तैयार किए गए। देखते ही देखते विश्व में भारत फीचर फिल्मों का सबसे बड़ा निर्माता बन गया। देश में 2019 तक छह हजार तीन सौ 27 सिंगल स्क्रीन और तीन हजार दो सौ मल्टीपलेक्स स्क्रीन सिनेमा थे। और फिर विभिन्न भाषाओें के फिल्म उद्योग के कारण सामने आया भारतीय सिनेमा। 2021 में हिंदी में 495 फिल्में इसके बाद कन्नड़ में 336तेलगु में 281, तमिल में 254मलयालम में 219, बांग्ला में 193 और मराठी में 164 फिल्में बनीं। भोजपुरी में 101, गुजराती में 80, पंजाबी में 63, उड़िया में 42, असमी में 34 फिल्में बनीं। इनके अलावा अंग्रेंजी में 28 फिल्में बनाई गईं। तुलु में 16 और मणिपुरी में 15 फिल्में बनाई गईं।

भारत में हिन्‍दी सिनेमा के सफर की कहानी


बॉलीवुड के नाम से मशहूर हिंदी फिल्म उद्योग आज भारत में फिल्‍मों से होने वाली कुल आय में करीब चालीस फीसदी का हिस्‍सेदार है। अब यह अमरीकी फिल्‍म उद्योग हॉलीवुड को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा फिल्‍म निर्माण केंद्र बन चुका है। व्यावसायिक फिल्मों के साथ-साथबगैर किसी नाच गाने वाली एक विशिष्ट शैली की यथार्थवादी कला फिल्में भी हिन्‍दी सिनेमा का ही हिस्‍सा हैं। "बॉम्बेऔर "हॉलीवुडके मेल से बना शब्द बॉलीवुड तब अंतरराष्ट्रीय चर्चा में आया जब 1957 में महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया


सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के तौर पर अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई
पचास और साठ के दशक में बनाई गई अनेक हिंदी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों को उठाया गया और उनका संगीत भी लोगों की जुबान पर चढ़ गया।

ऑस्कर पुरस्कार की सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में आधिकारिक रूप से नामांकित सभी तीन भारतीय फिल्में मदर इंडियासलाम बॉम्बे और लगान हिंदी में बनी थीं।

भारत में तेलुगु सिनेमा के सफर।।


तेलुगू सिनेमा में मूक फिल्मो का निर्माण 1921 में रघुपथी वेंकैया नायडू र आर. एस. प्रकाश की "भीष्म प्रतिज्ञा" के साथ शुरू हुआ। 1932 में पहली तेलुगु टॉकीज फिल्म भक्त प्रह्लाद का निर्माण एच. एम. रेड्डी ने किया जिन्होंने पहली दक्षिण भारतीय टॉकीज फिल्म कालिदास (1931) निर्देशित की थी।


भारत के 10167 फिल्म थिएटर में से सर्वाधिक 2809 थिएटर आंध्र प्रदेश और तेलेंगाना राज्यों में है जहाँ तेलुगू भाषा में फिल्मो का निर्माण होता है। गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार विश्व का सबसे बड़ा फिल्म निर्माण स्थल रामोजी फिल्मसिटी हैदराबाद में है। प्रसाद आईमैक्स, हैदराबाद विश्व का सबसे बड़ा और सबसे ज़्यादा दर्शकों वाला 3D आईमैक्स स्क्रीन है।


भारत में तमिल सिनेमा का सफर


भारत में प्रदर्शित पहली तमिल मूक फिल्म कीचक वधम वर्ष 1918 में आर. नटराज मुदलियार ने बनाई थी। वर्ष 1931 मेंआलम आरा के प्रदर्शन के सात महीनों के भीतरएचएम रेड्डी द्वारा निर्देशित एक तमिल फिल्‍म, कालिदासरिलीज़ हुई थी। मद्रास जिसे अब चेन्नई के नाम से जाना जाता हैउस समय दक्षिण भारतीय फिल्मों की फिल्म राजधानी और हिंदी फिल्मों के साथ-साथ श्रीलंकाई सिनेमा के लिए द्धितीय फिल्‍म केंद्र बन गया था। 

द्रविड़ आंदोलन के नेता सीएन अन्नादुरई ने वर्ष 1949 में वेलैक्करी और 1951 में ऑर इरावु फिल्‍म का लेखन किया। तमिलनाडु के पूर्व मुख्‍यमंत्री और पूर्व दक्षिण भारतीय फिल्‍म अभिनेता एम करुणानिधि ने वर्ष 1952 में ब्लॉकबस्टर फिल्‍म पराशक्ति का लेखन किया और देश के महानतम अभिनेताओं में से एक शिवाजी गणेशन किया को फिल्‍मों में लेकर आए।


इन तीन फिल्मों के बाद, तमिल फिल्‍म उद्योग में एक क्रांतिकारी बदलाव आया। एमजी रामचंद्रन एक दमदार नायक के रूप में उभरे और तमिल मूल्यों तथा संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले सुपरस्टार बन गए। फिल्मों का राजनीतिक प्रभाव इतना अधिक था कि फिल्म उद्योग के पांच अभिनेताओं जैसे सीएन अन्नादुरई, एम. करुणानिधि, एम.जी. रामचंद्रन, वी.एन.जानकी और जे. जयललिता को मुख्यमंत्री बनते हुए देखा गया।


एमएस विश्वनाथन राममूर्ति, इलियाराजा और एआर रहमान जैसे महान संगीतकार अब भी तमिल फिल्‍म जगत पर छाये हुए हैं।


आकाशवाणी के संगीत कार्यक्रमों जैसे थेनकिन्‍नमउंगल विरुप्पम और साउंडट्रैक ओली चित्रम ने तमिल सिनेमा को काफी मदद की

 20वीं शताब्दी की अंतिम तिमाही मेंतमिल फिल्में सिंगापुरश्रीलंकामलेशियाजापानमध्य पूर्व एशियाअफ्रीका के कुछ हिस्सोंओशिनियायूरोपउत्तरी अमरीका और अन्य देशों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शित की गई


भारत में कन्‍नड और मलयालम सिनेमा की यात्रा


पहली मलयालम फिल्‍म विगतकुमारम वर्ष 1930 में बनी और वर्ष 1938 में बालन सिनेमा गृह में रिलीज की गई। लेकिन मलयालम फिल्‍मों का निर्माण सक्रिय रूप से 20वीं सदी के दूसरे उत्‍तरार्द्ध में ही शुरू हो सका। मलयालम सिनेमा कथानक पर आधारित रहा और उसकी प्रकृति राजनीतिक रही

अभिनेता प्रेम नजीर ने रिकॉर्ड 520 फिल्‍मों में मुख्‍य भूमिका निभाकर गिनीज वर्ल्‍ड रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज कराया


पहली कन्‍नड फिल्‍म वर्ष 1934 में वाई वी राव ने सती सुलोचना निर्देशित की। राजकुमारविष्‍णुवर्धन और अम्‍बरीष को कन्‍नड सिनेमा का त्रिमूर्ति माना जाता है।

अभिनेता यश की केजीएफ श्रृंखला का निर्देशन प्रशांत नील ने किया और इसने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बॉक्‍स ऑफिस पर इतिहास रच दिया।


कहा जाता है कि जनवरी से जुलाई 2022 तक कन्‍नड सिनेमा का घरेलू फिल्‍म बाजार में आठ प्रतिशत हिस्‍सा रहा है। इससे यह भारतीय फिल्‍म बाजार का चौथा सबसे बडा हिस्‍सेदार बन गया है।


मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी और भोजपुरी फिल्मों की यात्रा ।।


मराठी फिल्‍मों का निर्माण मुंबई में ही हिंदी सिनेमा के साथ-साथ होता है। दादासाहेब फाल्के और वी शांताराम जैसे दिग्गजों ने मराठी फिल्मों के लिए आधार तैयार किया जो अपने विषय-वस्‍तु के मूल्यों के लिए जाने जाते हैं।


बंगाली फिल्में ऑस्कर लाइफ टाइम पुरस्‍कार विजेता सत्यजीत रे की अनुकरणीय फिल्मों के लिए जानी जाती हैं।


द अपू ट्राईलॉजी ऑफ रे ने सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में वाहवाही हासिल की। वर्ष 1955 में ट्राईलॉजी के पहले भाग पाथेर पांचाली के साथ सत्‍यजीत रे ने भारतीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाई।


गुजराती सिनेमा उद्योग ने 1930 के दशक में अपनी स्थापना के बाद से, 1,000 से अधिक गुजराती फिल्मों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। मौजूदा दौर की कुछ फिल्मों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्‍त की है। उपेंद्र त्रिवेदी सबसे सफल गुजराती अभिनेताओं और निर्माताओं में से एक थेकेतन मेहता द्वारा निर्देशित भावनी भवई ने राष्ट्रीय एकता के लिए सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।



पंजाबी सिनेमा पहली बोलती फिल्म, हीर रांझा, वर्ष 1932 में रिलीज़ हुई थी। के.एल. सहगल, पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद और धर्मेंद्र जैसे प्रमुख अभिनेताओं और मोहम्मद रफी, नूरजहां और शमशाद बेगम जैसे गायक-गायिकाओं ने पंजाबी फिल्म उद्योग के फलने-फूलने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया।



भोजपुरी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म, गंगा मैय्या तोहे पियारी चढाईबो, वर्ष 1963 में प्रदर्शित हुई थी। 1980 के दशक में कई उल्लेखनीय और महत्‍वपूर्ण भोजपुरी फिल्‍में चंदवा के ताके चकोर, गंगा किनारे मोरा गांव और संपूर्ण तीर्थ यात्रा रिलीज हुई थी। भोजपुरी फिल्में उत्तरी अमरीका, यूरोप और एशिया के विभिन्न हिस्सों में देखी जाती हैं जहां दूसरी और तीसरी पीढ़ी के प्रवासी अभी भी भोजपुरी भाषा बोलते हैं। इसके साथ ही गयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भी भोजपुरी फिल्‍में देखी जाती हैं।