शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कृष्ण एक रहस्य।।

हज़ारों साल से हम कृष्ण को पूजते आये है,
मगर कृष्ण की छवि कृष्ण के बाद किसी
में नही दिखाई दिया।

क्योंकि हमनें सिर्फ कृष्ण को पूजने पे ध्यान दिया उससे कुछ सीखने पे नही।।



कृष्ण ही एक ऐसा स्वरूप है,
जिसमें सबों को कंही न कंही अपना अक्स दिखाई दे जाता है,
इसीलिय तो कृष्ण का हरेक स्वरूप अभी तक जीवंत है।।

सबों ने अपना-अपना स्वरूप कृष्ण में ढूंढा।।
सूरदास ने कृष्ण के बाल्यकाल को आत्मसात किया तो,
मीरा ने कृष्ण के किशोरावस्था में अपने को ढूंढा तो
विवेकानंद ने कृष्ण के युवाकाल से सब कुछ सीखा।
हज़ारों ऐसे संत और व्यक्तित्व हुए जिसने कृष्ण के सिर्फ किसी एक पहलू को ही देखा और जाना,क्योंकि वो जंहा से कृष्ण को जानना शुरू किए वो वही रम गए,क्योंकि उनका हरेक स्वरूप इतना रमणीय है कि कोई एक बार डुबकी लगा कर निकल ही नही पायेगा।।

जितने भी महान संत हुए सबों ने कृष्ण से कुछ सीखा।
 क्योंकि कृष्ण सिर्फ कृष्ण ही नही है,
वो विराट है,
न उनका कोई छोर है,
न कोई अंत
 वो अनंत है।।

कृष्ण को समझना उतना ही कठिन है जितना तारों को गिनना।
और उतना ही आसान है जितना सूर्य के तपन को महसूस करना।।


कृष्ण सागर है।
और उस सागर में जिस-जिस ने डुबकियां लगाई सबों को कुछ न कुछ मिला ही।
वो किसी को निराश नही करते।।
अगर झोलियां ही छोटी पड़ जाय तो निराशा तो स्वाभाविक है,
आपकी झोलियां जितनी बड़ी होगी उतनी जल्दी भरेगी।
क्योंकि कृष्ण को समझ पाना बहुत कठिन है।।

कृष्ण के मुस्कान में सृष्टि का विनाश छुपा हुआ है तो
उनके क्रोध में सृष्टि का कल्याण छुपा हुआ है।।
वो ज्ञानी पुरुष के लिए उतने ही दुर्लभ है,
जितना समुन्द्र से सीपिया निकालना।
और,निश्छल,अनपढ़,गवार के लिए उतने ही सरल है,
जितना समुन्द्र के रेत को पाँव से स्पर्श करना।।


कृष्ण ने कभी नही कहा कि तुम मेरी आराधना करों, उन्होंने हमेशा यही कहा कि तुम मेरे शरण में आओ।।
आराधना करना आसान है
मगर शरण मे जाना मुश्किल।
 क्योंकि जब हम किसी के शरण मे जाते है तो हमें अपने चरित्र को भी उसके तरह ही ढालना पड़ता है तब ही हम किसी के शरण मे जा पाएंगे और रह पाएंगे।
अगर हम अपने चरित्र को उसके अनुसार नही ढालेंगे तो हम उनके शरण में नही रह पाएंगे।।

कृष्ण को सिर्फ पूजे ही नही,
उनसे कुछ सीखे,उन्हें आत्मसात करें।।
क्योंकि वो सर्वश्रेष्ठ है।।

सोमवार, 12 अगस्त 2019

कर्तव्य

एक पुत्र का अपने पिता के प्रति क्या कर्तव्य है?

ये सवाल हरेक पिता और पुत्र के बीच मे रहता है,ये दोनों अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहते है।
मगर कभी-कभी परिस्थिति ऐसी नही रह पाती की अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें।

हरेक पुत्र चाहता है कि पिता हमारी हर ख्वाहिश को पूरा करें।पिता करता भी है,ओर करने की कोशिश भी करता है।मगर कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी नही रहती की पिता अपने पुत्र की हर ख्वाहिश पूरा कर सकें।

हरेक पिता चाहता है कि मेरा पुत्र हमारा सम्मान करें वो हमारे हर अधूरे काम को पूरा करें, वो हमारे हर सपनों को पूरा करें। हरेक पिता चाहता है कि मेरा पुत्र कुछ ऐसा करें कि हम गौरवान्वित महसूस करें।।
हरेक पिता यही चाहता है और कुछ नही।
वो अपने पुत्र से और पुत्र के द्वारा समाज से सम्मान पाना चाहता है।।
और शायद पिता कुछ नही चाहता।।

पिता बस यही चाहता है कि जो कठिनाइयों का सामना हमनें किया है उस कठिनाइयों का सामना मेरा पुत्र न करें।।
बस पिता यही चाहता है।
मगर पुत्र अपने पिता की भावनाओ को समझ नही पाता,ओर पुत्र दोषारोपण करने लगता है कि आप हमेशा अंगुलियां ही करते रहते है।।

वो पिता अपनेआप को खुशनसीब समझते है,जो पुत्र अपने पिता का सम्मान करते है,जो अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करते है।।

अगर कोई पुत्र अपने पिता को सपनों को पूरा नही कर पाता तो कोई फर्क नही पड़ता,मगर फर्क तब पड़ता है जब पुत्र अपने सपनों को भी पूरा नही कर पाता तब उस पिता को सर्वाधिक तक़लीफ़ होता है।।

"इस दुनिया में सिर्फ आपका पिता ही है,
जो आपका सर्वाधिक सम्मान कर सकता है"।।

"इस दुनिया मे सिर्फ पिता ही है,
जो आपके उन्नति से,
आपसे ज्यादा खुश होगा"।।

इसीलिए पिता कैसा भी हो,
पिता का सम्मान करना चाहिए,
उनके भावनाओं का कद्र करना चाहिए।।

क्रमशः.....