शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

सफलता और असफलता में भेद।।

"सफलता और असफलता"
इन दोनों शब्द के अलग-अलग मायने है,
इन्ही के कारण कोई अब्राहम लिंकन बना तो कोई नेपोलियन बोनापार्ट।अगर अब्राहम लिंकन असफल न होते और नेपोलियन सफल न होते तो दुनिया उन्हें कभी नही जानती।।

ये दोनों शब्द हरेक इंसान के लिए अलग-अलग तरह के है,क्योंकि हरेक इंसान इसे अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करता है।
 कोई सफल होके भी असफल हो जाता है,तो कोई असफल होके भी सफल हो जाता है।
 क्योंकि ये इसपर निर्भर करता है कि आप अपने जीवन मे सफल होना चाहते है या असफल।।निर्णय तो खुद ही करना है।।
  आपने देखा होगा जब तक आप सफल होते रहेंगे तब तक लोग आपके आस-पास रहेंगे और आपका सहयोग करेंगे,ओर ज्योही आप असफल होने लगेंगे त्योंही लोग आपसे दूर होने लगेंगे,ज्यो-ज्यों आपकी असफलता बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों लोग आपसे दूरियां बढ़ाते जाएंगे,ओर एक समय ऐसा आएगा जब आपके अपने भी आपसे दूर होने लगेंगे।।
 इसलिए अगर सबको साथ लेकर चलना हो,तो सफल होना ही पड़ेगा।।
 असफलता अगर पहली बार हासिल हो तो सबकी सहानुभूति आपके साथ रहेगी,मगर ज्यों-ज्यों असफलता बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों सहानुभूति घटती जाएगी,ओर एक समय ऐसा आएगा जब लोग क्या अपने भी मुह फेरने लगेंगे,साथ ही आपको खरी-खोटी सुनाने लगेंगे।
 मगर क्या कोई खरी-खोटी सुनना पसंद करेगा बिल्कुल नही,अगर वो समझदार होगा तो वो फिर से मैदान में उतरेगा ओर सफलता को चूमेगा,अगर वो ऐसा नही करेगा तो वो ओर गर्त में गिर जाएगा,अगर अपनी असफलता को नही समझेगा तो।
 असफलता से मत घबराये क्योंकि इसके लिए हम खुद जिम्मेवार है,कंही भूल हुई है कंही चूक हुई है,इसीलिए तो असफलता हाथ लगी है,उस चूक को ढूंढ कर उसे दूर करें और अपनी असफलता को सफलता में परिणित करें।।

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

असफलता सफलता से अच्छी है,या बुरी?

असफलता किसी को पसंद नही है,न जाने क्यों,जबकि असफलता कई के जिंदगी बदल दिया,सिर्फ जिंदगी ही नही उसे जमीं से आसमां की ऊँचाई पे पहुचाई,उसे वो मिला जो कभी उसे सफलता नही दिला पाता,न जाने तब भी क्यों हम असफलता से दूर भागते है,बल्कि दूर ही नही इसका जिक्र करना भी हमारे समाज मे अशुभ माना जाता है।।

दरसल असफलता को हमारे समाज मे अच्छी तरह से परिभाषित नही किया गया है,इसके सिर्फ एक पक्ष को ही हमेशा से उजागर किया गया है,दूसरे पहलू के बारे में कभी जिक्र ही नही किया गया है,जिस कारण हमारे समाज को बहुत बड़ी हानि हुई है,ओर हो रही है,यंहा तक कि असफलता के कारण लोग अमूल्य जीवन को बलि चढ़ा देते है।
क्या ये सही है,एक सभ्य समाज मे तो कदापि नही,इस तरह के कृत्य के लिए हमारा समाज ही दोषी है और कोई नही।
क्योंकि इसी समाज ने असफलता को इस तरह गढ़ा है,की असफलता अगर हाथ लगी तो समझो सब कुछ गया,मान-सम्मान सब कुछ,हमारा समाज इस तरह से व्यवहार करने लगता है कि मानो उसने बहुत बड़ी कुकृत्य किया है,जबकि उन्होंने खुद प्रयास तक नही किया।।

"क्या है असफलता"
 नई जीवन का नाम है असफलता,
 फिर से सीखने का नाम है असफलता,
 अपनी गलतियों को सुधार करने का नाम है असफलता,
 औरों से बेहतर करने का मौका देती है असफलता,
 अपने आप को निखारने का मौका देती है असफलता,
 कुछ कर गुजरने का अवसर देती है असफलता,
 अनुभवों का अंबार लगा देती है,असफलता,
 अपनों ओर पराये का पहचान करा देती है असफलता,
 जिंदगी जीने का कला सिखा देती है असफलता,
कुछ कर गुजरने का जज्बा सिखा देती है असफलता,
सिर्फ अपने लिए नही औरों के लिए भी जीना सिखा देती है असफलता।।

 तो फिर क्यों न असफलता को गले लगाए जो हमें इक नई जीवन प्रदान करती है।।

मगर इन सबसे पहले इस समाज,ओर परिवार को असफलता को समझना होगा,की असफलता होता क्या है,
असफलता हमें वो सब सिखा देती है,जो हम सफल होके भी नही सिख पाते।
तो फिर क्यों न हम असफलता का सामना ही करे बल्कि उसे स्वीकार भी करें।।
 जो हमें अपने आप से रु-ब-रु कराती है।।

बुधवार, 29 अगस्त 2018

माँ कैसी होती है?

"माँ"
चेहरे की मुस्कान होती है,
दुःख दूर करने वाली इंसान होती है,
संतान की समस्या खुद जान लेने वाली इंसान होती है,
सच कहूं, वो इस धरा पे इंसांरूपी भगवान होती है।।

माँ को जानना बड़ा मुश्किल है,
वो सागर है,
उसके रूप हर क्षण बदलते रहते है,
कभी क्रोधमयी सूर्य की तरह,
तो कभी चाँद की शितलता की तरह,
तो कभी समुन्द्र की लहरों की तरह,
तो कभी तालाब की तरह मौन,
तो कभी पीपल की छावं की तरह, 
तो कभी ताड़ के छावं की तरह,
सच मे माँ प्रतिक्षण बदलती रहती है,
परिस्थितियों के अनुसार।।

उन्हें सम्पूर्णता में जानना बड़ा मुश्किल है,
उन्हें जब क्रोध आता है,तो उनके सामने कोई नही टिकता,
जब प्रेम आता है,तो सबों को समाहित कर लेती है।

उनके स्वरूप का दिन-प्रतिदिन विस्तार होता जाता है,
ज्यों-ज्यों आपका उम्र बढ़ता जाएगा,त्यों-त्यों माँ का भी स्वरूप बढ़ता जाएगा।।
वो अपने आप मे ही पूर्ण है,

मगर आज के भाग दौड़ भरी जिंदगी में "माँ"कंही खो रही है,
"माँ"के जगह महत्वाकांक्षाएं जन्म ले रही है,
अब माँ के मन मे संतान की जगह महत्वाकांक्षाएं की लालसा हो रही है,
आखिर हो क्यों नही वो भी तो इंसान है।
अब माँ की परिभाषा भी बदल जाएगी,
 बदल रही भी है।

"माँ की गोद अब नही होगी,
 माँ की आँचल भी अब नही होगी,
 माँ की लाड़ ओर प्यार भी अब नही होगी,
 तो फिर माँ का लाल भी माँ का नही होगा।।

बदलते हुए समय के अनुसार सामंजस्य बिठाने की जरूरत है अब पुरुष और महिलाओं दोनों को,
  मातृत्व भाव जगाने की जरूरत है,
अगर वो ऐसा नही करेंगें, 
तो संतान तो होगा मगर संतान सुख नही होगा,
क्योंकि वो आपसे सीखने के जगह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सब कुछ सीख रहा है,
वो आपसे पूछने की जगह गूगल से सबकुछ पूछ रहा है,
तो आप ही बताए,की आपकी क्या भूमिका है,उसके परिवरिश में।।
अभी भी समय है,जाग जाए हम सब,
नही तो आनेवाले समय मे सबकुछ होगा,
मगर माँ-बाप-बेटे जैसा रिश्ता नही होगा।।

इसीलिय समय है,सावधान हो जाये।।