मंगलवार, 24 मार्च 2020

प्रकृति और हम

गली में कुत्ते घूम रहे है,
वो हमें ढूंढ रहें है।
पेड़ों पे चिड़िया चहक रही है,
और पूछ रही है...
कंहा गए वो जिन्हें अपने पे मान था,अभिमान था।
नदियों और समुंद्र में मछलियां तैर रही है,
और पलकें उठा के उन आलीशान जहाज को ढूंढ रही है,
जिन्होंने उनका जीवन दुस्वार कर दिया..।।

हवा आज मंद-मंद बह रही है,
नदियां आज कल-कल बह रही है,
समुंद्र आज हिलोरें अपने अनुसार ले रहा है,
पंक्षियाँ आज खुले आसमां में चहचहा रही है,
जंगलों में जानवर आज स्वछंद घूम रहें है,
नदियों और समुंद्र में मछलियां आज स्वंतंत्र तैर रही है।।
क्योंकि आज हम घर में है...।।

जब मन शांत हो,
तो सोचे और खुद से पूछे कि हम मानवों ने,
अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर रह रहें जीव को कितना नुकसान पहुँचाया और पहुंचा रहें है।।
हम अपने अस्त्तित्व बचाने के लिए आज घर में है,
मगर उनका क्या जिनका हमनें घर ही उजाड़ दिया था/है।।

हम मानवों ने अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर रह रहें सारे जीव को खतरे में डाल दिया है,
आज एक ऐसे वायरस से डरे-सहमें है,जिन्हें हम नंगी आंखों से देख तक नही सकते।।
प्रकृति को चुनौती देने वाले आज कंहा है..??
उसके बनाये सिर्फ एक ऐसे वायरस से पूरा मानव समुदाय खतरे में आन पड़ा है।
जिसे नग्न आंख से देखा तक नही जा सकता..।।
एक साधारण मानव कल्पना नही कर सकता कि कोरोना वायरस कितना छोटा है..इतना छोटा की सुई के नोख पे हज़ारों लाखों बैठ सकते है।।।
आज सारा मानव डरा हुआ है,क्योंकि हमने पृथ्वी पर रह रहें किसी जीव-जंतु को चैन से रहने नही दिया और दे रहे है।
चाहे वो आसमान हो,स्थल हो,जल हो,यंहा तक कि अब अंतरिक्ष तक मे भी कचरा फैलाना शुरू कर दिया है।।

एक कहावत है-जैसा करोगे,वैसा भरोगे।।

 हमारी सनातन संस्कृति,वेद-पुराण में प्रकृति के महत्व के बारे में बताया गया है,उन्होंने हरेक पेड़-पौधे,जीव-जंतुओं,पर्वत-पठार, नदी-तालाब में उस प्रकृति के मौजूदगी के बारे में बताया गया है।।
हम यू ही गंगा और गाय को माँ नही कहते,
हम यू ही पीपल और बरगद को नही पूजते।।
क्योंकि प्रकृति हर कण-कण में मौजूद है।।
आज हम पश्चिमी सभ्यता को आंख मूंद कर अपना रहें है,
उसकी दुष्परिणाम आज हमें वर्तमान में भुगतना पड़ रहा है।।

आज समय आ गया है कि हम फिर से अपने संस्कृति और सभ्यता को अपनाए।।
प्रकृति के साथ-साथ जीना सीखें।।

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