रविवार, 26 जून 2022

कर्मों का फल..

 


क्या हमें दूसरों के कर्मों का भी परिणाम भुगतना होता है...??

हां, भुगतना ही होता है,जिससे आप स्नेह करते है।चाहे वो कोई भी हो...।

साधारण उदाहरण से समझिए ..

अगर आपका चाहने वाला आम का पेड़ लगाता है तो आप आम खाएंगे,अगर खजूर लगाएगा तो... शायद आप न खाना चाहे, हो सकता है आप खाये भी नही। मगर आपको प्रकृति किसी न किसी तरह से खिला ही देगी,भले आप न खाए,हो सकता है आपके संतति को खाना पड़े। मगर खाना ही पड़ेगा। क्योंकि आपने आम जो खाया है...।।

ये प्रकृति का नियम है,अगर आपके हिस्से में किसी के द्वारा खुशियां आएगा तो हो सकता है दुःख भी आये,और इसे आपको स्वीकारना ही होगा..।।

आप एक परिवार का ही उदाहरण ले..

आपके पिताजी बाजार से मिठाइयां लाते है और सब खाते है... मिठाइयां ज्यादा मीठी होने के कारण सबको जुकाम हो जाता है। मगर आपको नही क्योंकि आपने मिठाइयां नही खाई होती है। मगर आपको भी कुछ दिनों के बाद जुकाम का असर होने लगता है... आखिर क्यों...?? क्योंकि आपके पिताजी ने आपके लिए भी मिठाइयां लाया था।। 

ये ब्रह्मांड ऐसे ही काम करता है,यंहा हरेक कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है..।।

आपके शब्द भी,आपके कर्म भी, इस ब्रह्मांड में काम कर रहा है।।

आपने अपने समाज में देखा होगा... एक व्यक्ति, है तो बहुत अच्छा मगर उसे दुःख का सामना करना पड़ रहा है..       आखिर क्यों..?? हो सकता है उस दुःख का कारण वो स्वयं न हो .. उसका कारण वो हो सकता है,जिसके ऊपर वो या फिर उसके ऊपर जो आश्रित है/था ।।

प्रकृति इसी तरह काम करती है...।।

आपको सिर्फ अपने कर्मों का ही नही बल्कि अपने चाहने वालों के कर्मों का भी फल भुगतना होता है।।

अगर आपके पिताजी ने आम का पेड़ बोया है तो आप आम ही खाएंगे,अगर उन्होंने बेर का पेड़ बोया है तो आप बेर ही खाएंगे। तबतक, जबतक की आपने कुछ और न बोया हो.. ये चक्र चलता ही रहेगा.. तबतक, जबतक की आप अपने कर्मों के द्वारा इसमें बदलाव न लाएं..।।

हमारा कर्म हमारे परिवार और समाज से इस तरह जुड़ा हुआ है, जिस तरह जड़ पेड़ से, और पेड़ वन से..।।


गुरुवार, 23 जून 2022

कैसे कहूँ माँ..

 कैसे कहूँ माँ..

मैं अपनी असफलता के लिए खुद ही जिम्मेदार हूँ।

तू भोली है,तू निश्छल है..

तुझे कैसे समझाऊँ माँ,

मैं अपनी असफलता के लिए खुद ही जिम्मेदार हूँ।।

वो भगवान,वो इंसान क्या करेगा माँ,

जिसे तुम कोसती हो,

क्योंकि मैं अपनी असफलता के लिए खुद ही जिम्मेदार हूँ।

मैं तुम्हारी व्यथा को उस तरह नही समझ सकता माँ,         जिस व्यथा से तुम गुजर रही होगी.. 

मगर मैं ये जानता जरूर हूँ, मेरी असफलता से सबसे ज्यादा तुम्ही दुखी हो..माँ।।

मैं अपनी असफलता के लिए खुद ही जिम्मेदार हूँ, माँ..।

इन असफलता को सफलता मैं बदलूंगा जरूर माँ.. ।।

बस तुम मत उदास हो..।।

बुधवार, 15 जून 2022

क्या समय को खरीदा जा सकता है..??

एक सवाल आपसे पूछता हूँ..

क्या समय को खरीदा जा सकता है..??



है न अजीब सा सवाल.. जरा सोचिए....                       सोचना क्या है.. जबाब या तो हां में होगा या फिर न में..।         

मेरा जबाब है, हां में।                                                    जी हां समय को खरीदा जा सकता है,बीता हुआ समय को नही बल्कि आने वाले समय को खरीदा जा सकता हैआप दो तरह से समय को खरीद सकते है।

1. मुद्रा से

2.बार्टर सिस्टम के माध्यम से

आप जितना कीमत चुकाओगे उतना समय खरीद सकते हो..।।

अगर आपको दिल्ली से बॉम्बे जाना हो तो आप कैसे जायेंगें..? पाँव-पैदल,बस से, ट्रैन से या फिर प्लैन से..।।                        अधिकांश लोग ट्रैन से ही जायेंगे.. क्योंकि ट्रैन की टिकट खरीदने में आज हरेक लोग सक्षम है।                              मगर आप सोचिए आपके पास एक पैसा भी नही है और आपको दिल्ली जाना ही है तो आप कैसे जायेंगे..।।                 तब आप पाँव-पैदल ही जाओगे न.. पैदल जाने में आपको महीने लग जाएंगे... अगर आप ट्रैन से जाते हो तो आप 24 घंटे में पहुंच जाओगे...। 

जरा सोचिए अगर आपके पास ट्रैन की टिकट खरीदने का पैसा है तो आप 29 दिन बचा लेते हो।                                  अगर आपके पास फ्लाइट की टिकट खरीदने का पैसा है तो आप सिर्फ 29 दिन नही बल्कि 30 वे दिन का 22 घंटा भी बचा लेंगे .... 

मगर इसके लिए कीमत चुकानी होगी..।

दूसरा तरीका है बार्टर सिस्टम जिसके माध्यम से हम कुछ समय को अदला बदली कर सकते है कुछ त्याग करके....            अगर आप 24 घण्टे में 16 घंटे जागते हो और 8 घंटे सोते हो और आपको जागने के लिए और 2 घंटा चाहिए तब आप क्या करोगे..??                                                                 यही न कि अब आप सिर्फ 6 घण्टे सोओगे...

इस प्रकृति में हमें कुछ भी मुफ्त में नही मिलती हमें हरेक चीज की कीमत चुकानी होती है..।। 

मगर मनुष्य जबसे चालाक और बुद्धिमान हुआ तबसे वो  प्रकृति से मुफ्त में ही सबकुछ ले रहा है, बदले में कुछ चुका नही रहा है.. हां प्रकृति आपदा में वो लोग अपनी जान की आहुति देकर जरूर कीमत चुका रहे है,जिसने प्रकृति को तनिक सा भी नही खरोंचा है।।