शाश्वत नियम याद रखें -: यदि आप कुछ पाना चाहते हैं, तो आपको कुछ देना होगा।
सुभाषचंद्र बोस ने नेताजी बनने तक के सफर में अपना सर्वस्व त्याग दिया.. इसिलए तो वो आज भी जिंदा है,उसी तेवर में जिस तेवर मैं उन्होंने कहा था- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा..
सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनुअरी 1897 के कटक(ओडिशा)में हुआ।
भारत सरकार ने उनके 125वी जन्मशती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है,जो उनके छवि और योगदान को देखते हुए सही है। उन्होंने आजादी के लड़ाई में वही पराक्रम दिखाया,जिसे देखकर देश के हर नागरिक को अनुभव हो गया था कि अब आजादी मिल जाएगा।
क्योंकि उन्होंने पहली बार भारत में अप्रैल 1944 में मणिपुर में झंडा फहराया।
मगर दुर्भाग्य ये रहा कि जापान पर परमाणु बम गिरने के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया,जिस कारण नेताजी रूस से मदद लेने के लिए 18 अगस्त 1945 को बमवर्षक विमान से मंचूरिया के लिए रवाना हुए कहा जाता है कि ये प्लैन क्रैश हो गया और उनकी मृत्यु हो गई..।।
मगर किसी को विश्वास नही है..।।
आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए – मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।
सुभाषचंद्र बोस ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कटक के यूरोपियन स्कूल से ही किया और 10वी में 2रा स्थान प्राप्त किया। और आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता चले आये और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में नामांकन कराया ।।
1916 में जब वो दर्शनशास्त्र से B.A कर रहे थे तब कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया क्योंकि अंग्रेज प्रोफेसर Mister O भारतीय छात्र से घृणा करते थे और बेवजह मारते थे। सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व संभाला और प्रिंसीपल से शिकायत की तब भी कुछ नही बदला तो ये लोग उस मास्टर को भी मारे । ये बात प्रिंसीपल तक पहुंचा और एक कमिटी का गठन किया गया जिसमें कहा गया कि सुभाष Mister O से माफी मांगे मगर सुभाषचंद्र ने मना कर दिया जिस कारण उन्हें कॉलेज से 1 साल के लिए निलंबित कर दिया ।
इन दिनों वो देशबंधु चितरंजन दास को पढ़ना और सुनना शुरू किया। उन्ही से उन्हें समाजसेवा का प्रेरणा मिला। इन दिनों कोलकाता में कॉलरा(हैजा) फैला हुआ था, लाश इधर-उधर बिखरे पड़े थे।चारों बगल उदासी और असहाय लोग को देखते हुए वो द्रवित हो उठे ।उन्होंने उस समय 2.5 हजार से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार किया।
इसी समय उन्हें सेना में भर्ती होने का शौक चढ़ा और वो 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया। उन्होंने बहुत कोशिश की मगर फिर उन्होंने अपना पूरा ध्यान B.A पे दिया और प्रेसीडेंसी कॉलेज में दूसरा स्थान प्राप्त किया।
पिताजी की इच्छा थी कि वो ICS(इंडियन सिविल सर्विस) करें, वो राजी हो गए मगर उनके पास सिर्फ 1 वर्ष ही था और उन्होंने ये चुनौती स्वीकार किया और ICS में 4th स्थान प्राप्त किया।
मगर सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद और अरविंदो से बहुत प्रभावित थे ।और उन्होंने अपने भाई शरतचंद्र बोस को चिठी लिखी की ICS की नॉकरी कर देश की सेवा कैसे कर सकता हूँ..??पिता के विरोध के बावजूद उन्होंने ने ICS की नॉकरी छोड़ दी और ये खबर पूरे भारत मे आग की तरह फैल गई।
कोलकाता आकर वो चितरंजन दास के साथ काम करने लगे उसी समय गांधी जी द्वारा शुरू किया गया असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कोलकाता में चितरंजन दास कर रहे थे सुभाष चंद्र बढ-चढ़कर भाग लिया। 1922 में चितरंजन दास ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी का गठन किया और इस पार्टी ने कोलकाता में महापालिका का चुनाव लड़ा और जीता । चितरंजन दास महापौर बने और सुभाष चंद्र महापालिका के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बने। इन्होंने
गलियों और सड़कों का नाम स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रखना शुरू किया। साथ ही जिन परिवार से लोग आजादी के लड़ाई में शहीद हुए है, उस परिवार के सदस्यों को महापालिका में नॉकरी देना शुरू किया ।
युवाओं के बीच इनकी ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
1928 में गांधीजी से सुभाषचंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू के बीच मतभेद हो गया। गांधी डोमिनियन स्टेट के समर्थक थे जबकि ये दोनों पूर्ण स्वराज के बाद में गांधीजी ने इनदोनों की बात मान ली।
26 जेनुअरी 1930 को लाहौर अधिवेशन में पहली बार झंडा फहराया गया और पूर्ण स्वराज की मांग किया गया।
26 जनुअरी 1931 को सुभाषचंद्र बोस ने कोलकाता में झंडा फहराया और एक रैली का नेतृत्व किया जिस कारण उन्हें जेल भेज दिया गया।
इसी बीच भगत सिंह को फांसी दे दिया गया । जिस कारण सुभाषचंद्र बोस गांधी जी से नाराज हो गए क्योंकि उन्हें लगता था कि गांधी जी अगर कड़ा रुख अपनाते तो फांसी रुक सकता था।
वो अपने पूरे जीवनकाल में 11 बार जेल गए ।
विदेश-प्रवास
1932 में जेल में ही तबियत खराब हो गया जिस कारण वो इलाज कराने के लिए यूरोप गए। 1933-36 तक वो यूरोप में रहे मगर उस दौरान भी वो अपने कार्य मे लगे रहे।
वंहा वो इटली के नेता मुसोलिनी से मिले और उसने आस्वासन दिया कि इटली भारत की आजादी में अपना सहयोग देगा।
साथ ही आयरलैंड के नेता डी अल्वेरा भी इनके अच्छे मित्र हो गए।
उसी समय वो विट्ठल भाई पटेल से मिले और दोनों ने मंत्रणा की जिसमें गांधीजी के नीतियों का विरोध किया गया।जिसे पटेल-बोस विश्लेषण के नाम से ख्याति मिला।
इसी दौरान विट्ठल भाई पटेल की तबियत खराब हो गई सुभाषचंद्र ने जम की सेवा की मगर वो नही बचे।
विट्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में पूरा सम्पति सुभाषचंद्र बोस के नाम कर दी थी, मगर सरदार पटेल ने नही माना उन्होंने मुकदमा चलाया और जितने के बाद पूरी सम्पति गांधीजी के हरिजन सेवा कार्य मे दे दिया।
1934 में इन्हें अपने पिता की मृत्यु की खबर मिली और वो कोलकाता आये। अंग्रेज को जब पता चला तब फिर कुछ दिन जेल में रखकर यूरोप भेज दिया।
1934 में जब वो आस्ट्रिया में थे तो एक इंग्लिश टाइपिस्ट "ऐमली शेंकल" जिसे इन्होंने अपने पुस्तक लिखने के लिये रखा था,इनसे शादी कर ली। इनसे एक पुत्री हुई जिसका नाम इन्होंने अनिता रखा।
कांग्रेस के 51वे अधिवेशन के लिए गांधीजी ने सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का अध्य्क्ष चुना।
इन्होंने अपना अध्यक्षीय भाषण बड़ी जोरदार दिया था,ऐसा भाषण अभी तक किसी ने नही दिया था।
इन्होंने इस दौरान योजना आयोग का गठन किया जिसका अध्यक्ष नेहरू को बनाया।
इन्होंने बेंगलुरु में महान वैज्ञानिक विश्वेश्वरय्या की अध्यक्षता में विज्ञान परिषद की स्थापना की। 1939 में बोस फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़े और जीत भी गए। जबकि गांधीजी नही चाहते थे, क्योंकि गांधीजी को सुभाष की कार्यशैली पसंद नही था, जिस कारण इन्होंने पट्टाभि सितारमैय्या को अपने तरफ से खड़ा किया। रवींद्रनाथ टैगोर ,प्रफुलचंद्र राय और मेघानाद साहा जैसे वैज्ञानिक ने गांधी जी को चिट्ठी लिखकर कहा कि सुभाष को ही कांग्रेस का अध्यक्ष रहने दिया जाय। मगर गांधीजी नही माने और वर्षों बाद कांग्रेस में चुनाव हुआ। मगर सुभाषचंद्र 203 मत से जीत गए।
गांधीजी ने पट्टाभि सितारमैय्या को अपनी हार बताकर कांग्रेस कार्यकारणी से कहा कि अगर आपको सुभाष की कार्यशैली पसन्द नही है तो आप हट सकते है । 14 में से 12 सदस्य ने त्यागपत्र दे दिया। नेहरू तटस्थ बने रहे। सिर्फ शरतचंद्र बोस ही इनके साथ खड़े रहे।।
सहयोग न मिलने के कारण उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
3 मई 1939 को इन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया , जिस कारण इन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया।
इसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध की खबर भारत तक पहुंची बोस ने कांग्रेस से आवाहन किया कि अभी सही समय है अंग्रेज से लड़ने का अगर कांग्रेस मदद नही करेगा तो फारवर्ड ब्लॉक अकेले ही अंग्रेजो का ईंट से ईंट बजा देगा।
1940 में कोलकाता स्थित होलमेट स्तंभ जो कि गुलामी का प्रतीक था उसे रातों-रात फॉरवर्ड ब्लॉक के युवा ब्रिगेड ने ध्वस्त कर दिया।अंग्रेज को खबर लगते ही उसने फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी बड़े नेताओं के साथ बोस को भी जेल में डाल दिया।
सुभाषचंद्र जेल में निष्क्रिय नही रहना चाहते थे वो अंग्रेज के खिलाफ आमरण अनसन शुरू कर दिया , तबियत बिगड़ने के हालात में उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया।
भला कबतक उन्हें नजरबंद करके रखते..
अपने भतीजे शिशिर के मदद से 16 जनुअरी 1941 को पठान मोहमद जियाउद्दीन के वेश में घर से निकल गए। कार से गोमोह रेलवे स्टेशन पहुंचकर वंहा से फ्रंटियर मेल पकड़कर पेशावर पहुंचे।वंहा मियां अकबर खान के मदद से भगतराम तलवार के साथ काबुल पहुंचे।वंहा भारतीय व्यापारी उत्तमचंद मल्होत्रा के यंहा दो महीने रहे। इस दौरान वे जर्मनी, इटली और रसियन दूतावास से संपर्क किया । इटली दूतावास के मदद से वो ऑरलैंडो मेजेंटो नामक इटालियन बनकर मास्को होते हुए बर्लिन पहुंचे।
जर्मनी प्रवास
जर्मनी पहुंचकर वो अनेक नेताओ से मिले,इनमें से जर्मनी के एक मंत्री एडम फॉण ट्रॉप इनके अच्छे दोस्त हो गए। इसी दौरान 29 मई 1942 को एडोल्फ हिटलर से मुलाकात हुई।
मगर हिटलर ने भारत की मदद करने से ये कहकर इनकार कर दिया कि जर्मनी यंहा से बहुत दूर है,आप जापान से मदद ले क्योंकि वो भी हमारे ही अलायन्स में है।
हिटलर ने अपनी आत्मकथा माइन कैम्फ में भारत और भारत के लोगो की बुराई की थी इसका विरोध सुभाषचंद्र बोस ने किया,हिटलर ने आस्वासन दिया कि अगले संस्करण में उसे हटा दिया जाएगा।
जर्मनी में ही नेताजी ने भारतीय स्वंतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की।इसी दौरान वो नेताजी के नाम से भी प्रसिद्धि मिली।
जर्मनी से वो पनडुब्बी मैं बैठकर इंडोनेशिया पहुंचे वंहा से वो सिंगापुर होते हुए जापान पहुंचे।
पूर्वी एशिया की यात्रा