अब थक जाता हूँ चलते-चलते,रुक जाता हूँ चलते-चलते। ज्योही ख्याल आता है मंजिल का त्योंही थकान दूर हो जाता है। फिर से चल पड़ता हूँ मंजिल की और।
कब खत्म होगी ये अनवरत यात्रा मालूम नही।
लगता है अभी तो यात्रा शुरू भी नही किया है, और कब खत्म होगा ये सोचने लगा हूँ।
अब थक जाता हूँ चलते-चलते,रुक जाता हूँ चलते-चलते। ज्योही ख्याल आता है मंजिल का त्योंही थकान दूर हो जाता है। फिर से चल पड़ता हूँ मंजिल की और।
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