गुरुवार, 25 मई 2023

सफलता प्रकृति की नियति है..



 ये मायने नही रखता की आप कितनी बार गिरे,

मायने ये रखता है कि आप गिरने के बाद... क्या करते है..??

गिर के गिरे रहना, 

या फिर गिर के उठना,

या फिर गिर के उठकर फिर से चलना,

या फिर गिर के उठकर,फिर से चलकर,मंजिल पर पहुंचना...।।

ये आपको ही तय करना है कि, आपको क्या करना है..??

क्योंकि आपकी मंजिल, आपका नजरिया बदल देगा..

सफल हुए तो भी,असफल हुए तब भी...

मगर सफल होना जरूरी है..क्योंकि असफल लोगों के नजरियों का कोई मायने नही है..।

क्योंकि इतिहास ही नही बल्कि वर्तमान भी सफल लोगों को ही जानता/मानता है..।

आप स्वयं भी सफल व्यक्ति को ही जानते होंगे..।।

आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते है,जो असफल है..??

नही...बिल्कुल नही.. जानते होंगे..।।

तो...क्या सोचते है...🤔???

सफल होना है या नही...??

क्योंकि...

सफलता ही प्रकृति की नियति है..

क्या आप प्रकृति के नियति के खिलाफ जाएंगे...??

सोमवार, 22 मई 2023

प्रकृति रंगीन है..

 मैं हूँ यंहा,

क्योंकि मेरे होने का वजह है...

इसिलिय तो मैं, हूँ यंहा..।।

यू ही कोई नही होता,

हरेक का होने का वजह होता है..।

ये अलग बात है कि हम उस वजह को भूल जाते है..

इसीलिए तो जिंदगी बेवजह गुजर जाती है..।

और जिसे वजह मिल जाती है...

वो सिर्फ अपनी ही नही,बल्कि कइयों की जिंदगी में बेवजह रंग भरके जिंदगी को रंगीन बना देते है..।।




प्रकृति रंगीन है...

और इस प्रकृति पे पायी जाने वाली हर मूर्त और अमूर्त,जीव-जंतु,पेड़-पौधे प्रकृति के रंग है,जो प्रकृति को रंगीन बनाती है..।

हम मनुष्य ही ही,जो अपनी रंगीन जिंदगी को रंगविहीन बनाने पे तुले हुए है..।।

अपना बचपन याद करें, नही याद आ रहा है.....                  तो खेलते हुए,हँसते हुए,रोते हुए बच्चों को देखिए...वो सब कुछ करते है,एक ही क्षण में,एक ही पल में,एक ही दिन में..         मगर अफसोस इन बच्चों की जिंदगी भी अब एकरंगी सा हो गया है..।

हम खुद ही तो अपने जिंदगी को रंगविहीन बनाने पे तुले हुए है..

ये नही करना है,वो नही करना है,लोग क्या बोलेंगे,समाज क्या बोलेगा, इसी वुहापोह में जिंदगी रंगविहीन गुजर जाती है,कभी-कभी कोई रंग पकड़ता भी है,तो टिकता नही..।।

आखिर जिंदगी रंगीन कैसे हो..??

प्रकृति से सामंजस्य बिठा करके ही जिंदगी रंगीन होगी..।

1. प्रकृति में हरेक चीज का होने का कारण है.. आप भी अपना लक्ष्य ढूंढिए..क्योंकि आपके भी होने का कारण है।।

2. मुस्कुराते रहिए.. क्योंकि प्रकृति हमेशा मुस्कुराती रहती है.. फूलों का खिलना,लहरों का उठना, बारिश का बरसना यही तो संदेश देती है..।

3. आशावान रहिए.. प्रकृति के बंजर जमीन पे उगा पौधा भी आसमां की और देखता रहता है,और अपने आप को सांत्वना देता है,बारिश जरूर होगी,और एक दिन आता है, जब बारिश होती है,और नया जीवन मिल जाता है..।। जो आस छोड़ देते है,उनका कोई अस्तित्व नही रहता.. प्रकृति यही तो सिखाती है।

4. दृढ़निश्चयी बने... प्रकृति जब कुछ करने को ठान लेती है,तो वो परिणाम का नही सोचती..इसीलिए जब कुछ करने का सोचे तो उसे करके ही रहे..।।

5.समय का कद्र करें.. प्रकृति में हमेशा सबकुछ नियत समय पर ही होता है..दिन-रात,गर्मी-ठंडा,फूलों का खिलना,फलों का लगना इत्यादि। इन सब का समय नियत है,ये अपनी मर्यादा नही तोड़ते,क्योंकि कइयों का जिंदगी इनके ऊपर आश्रित है।

6.अपनी मर्यादा में रहे.. प्रकृति कभी अपनी मर्यादा नही तोड़ती,समुद्र की लहर तटों से टकराकर वापस चली जाती है,जब नही जाती है तब सुनामी आ जाती है..।

7.हरेक परिस्थिति में शांत,स्थिर और मौन रहिए... मगर एक सीमा तक ही.. प्रकृति हमें ये भी सिखाती है..।।

सच कहता हूं जिंदगी भी,प्रकृति इतना ही रंगीन है,कभी आईने के सामने खुद को देखकर मुस्कुरा के तो देखे..जिंदगी बहुत रंगीन नजर आएगी..।।

रविवार, 14 मई 2023

माँ अगर तुम न होती तो क्या होता..??

माँ अगर तुम न होती तो क्या होता..??



माँ अगर तुम न होती तो क्या होता..??
क्या इस धरा पे मैं, आ पाता...
और इस वसुंधरा को अपने चरणों से स्पर्श कर पाता..

माँ अगर तुम न होती, तो क्या होता..??
क्या मैं बोल पाता...
और अपनी बोलियों(आवाज) से अपनी पहचान बना पाता..

माँ अगर तुम न होती, तो क्या होता...??
क्या मैं ,मैं होता..
या फिर मेमने की तरह ही,मेरा भी जीवन होता..।।

माँ अगर तुम न होती, तो क्या होता..??
क्या इस ब्रह्मांड को मैं निघार पाता..
जिस ब्रह्मांड की कोई सीमा नही है..।

माँ अगर तुम न होती, तो क्या होता..??
सच कहूं माँ.. 
अगर तुम न होती..
तो मैं न होता..
अगर मैं न होता,
तो कोई और होता..।
मगर माँ, तुम न होती...
तो मैं न होता...।।

"माँ" आखिर माँ क्यों होती है..



माँ, आखिर माँ क्यों होती है...?
क्योंकि....
माँ बनने की प्रक्रिया ही बहुत पीड़ा दाई होती है...
माँ को माँ... बनाने में उस पीड़ा का बहुत योगदान है,
जिसे सिर्फ और सिर्फ उसे ही झेलना पड़ता है,और किसी को नही..

गर्भधारण करते ही एक स्त्री की दुनिया 360° बदल जाती है..
और पूरा गर्भकाल एक संघर्ष होता है...
और वो संघर्ष सामान्य नही होता है.. 
इस संघर्ष के दौरान हरेक रोज पूरी दुनिया मे लगभग 800 गर्भवती महिला की मृत्यु होती है,इसमें 95% गरीब देश की महिला शामिल है, जिसमें भारत भी एक है..(यूनाइटेड नेशन)(भारत मे लगभग प्रतिवर्ष प्रसव के दौरान 15 हजार से ज्यादा माता और 1.5 लाख से ज्यादा शिशु की मृत्यु हो जाती है)

क्या आपको पता है..??
-हम सामान्यतः 1 मिनेट में 8-16 बार सांस लेते है, जबकि गर्भवती स्त्री को 9-23 बार सांस लेना पड़ता है..।
-गर्भवती स्त्री की धड़कन 72 के जगह 120 बार धड़कता है..
-गर्भधारण के बाद से खाना का पचना सही से नही हो पाता.. जिसकारण अक्सरहां उल्टी या उल्टी करने का मन करता है..
-गर्भधारण के 8वे महीने के बाद से यूरिन पे कंट्रोल नही हो पाता..
- गर्भधारण के 8वे महीने के बाद से ही छाती में दर्द का सामना करना पड़ता है..
-और बच्चे के जन्म के वक़्त माँ को लगभग एकसाथ 20 हड्डियां एक साथ टूटने इतना दर्द होता है..
 इस वक़्त 57 डेल (दर्द मापने की इकाई) तक दर्द होता है,जबकि पुरुष की क्षमता 45 डेल तक ही है,इससे ऊपर दर्द होने पर पुरुष की मृत्यु हो सकती है..।।

- न जाने और कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते है जो प्रसव के 6 सप्ताह तक बना रहता है..।।

माँ एक रूपातंरण की प्रक्रिया है... जो एक स्त्री को उसे पूर्णतया का अहसास कराती है..।। 

माँ बनते ही एक स्त्री की क्षमता हरेक क्षेत्र में बढ़ जाती है..
वो साधारण से असाधारण हो जाती है..।।

 माँ जैसी स्नेहमयी,
 तो माँ जैसी निष्ठुरमयी...
 माँ जैसी करुणामयी,
 तो माँ जैसी रौद्रमयी..
 माँ जैसी निःस्वार्थी,
 तो माँ जैसी स्वार्थी..
 और कंहा कोई मिलेगी...
 क्योंकि इस धरा पे सिर्फ माँ ही तो है,
 जो पूर्ण है.. 
 और जो पूर्ण है,वो पूजनीय है..
 और जो पूजनीय है,
 वो इस धरा पे सिर्फ और सिर्फ माँ ही तो है..

मैं किसे माँ कहु..

 मैं किसे माँ कहु..??

जिसने मुझे जन्म दिया,या फिर जिस-जिस ने मुझे स्नेह दिया..।।

आज माँ को जानना बहुत जरूरी है,

आखिर माँ होती कैसी है....??

माँ का जिक्र आते ही सबसे पहला ख्याल जो आता है,          वो स्नेह का आता है..। माँ स्नेहमयी होती है... उसके आँचल में जितना स्नेह होता है,वो सारा स्नेह उड़ेल देती है.. वो और उड़ेलने की कोशिश करती है..मगर उसकी भी एक सीमा है..। अगर बंधन न हो तो वो अपने बच्चों के लिए वो सीमा भी लांघ जाए..।।

माँ करुणामयी होती है.. सिर्फ वो ही है इस जंहा में जो आपके सारे अपराधों को माफ कर गले लगा सकती है,और कोई नही..।।

माँ रौद्र होती है.. अपने बच्चे के भले के लिए वो काल से भी लड़ सकती है..

माँ दृढ़निश्चयी होती है.. अगर वो जो ठान ले उसे पूरा करके ही मानती है..।

माँ स्वार्थी होती है... अपने बच्चे के भले के लिए कुछ भी कर सकती है...।

माँ सर्वगुणसम्पन्न होती है... अपने बच्चों के लिए..

मगर आज माँ बदल रही है..क्योंकि हमारा समाज बदल रहा है...

-अब माँ के पास न आँचल है,जिससे वो स्नेह उड़ेल सके, तो वो अप्राकृतिक तरीके से स्नेह उड़ेलती है..।।

-माँ अब करुणामयी होगी कैसे..?? क्योंकि बच्चों की परवरिश वो अब कर ही कितना रही है...

- माँ स्वार्थी होती है.. हां होती है,इसीलिए तो तलाक़ के मामले इतने बढ़ रहे है..।।

-माँ सर्वगुणसम्पन्न होती है,इसिलिय तो आज आत्मनिर्भर बन रही है...।