माँ, आखिर माँ क्यों होती है...?
क्योंकि....
माँ बनने की प्रक्रिया ही बहुत पीड़ा दाई होती है...माँ को माँ... बनाने में उस पीड़ा का बहुत योगदान है,
जिसे सिर्फ और सिर्फ उसे ही झेलना पड़ता है,और किसी को नही..
गर्भधारण करते ही एक स्त्री की दुनिया 360° बदल जाती है..
और पूरा गर्भकाल एक संघर्ष होता है...
और वो संघर्ष सामान्य नही होता है..
इस संघर्ष के दौरान हरेक रोज पूरी दुनिया मे लगभग 800 गर्भवती महिला की मृत्यु होती है,इसमें 95% गरीब देश की महिला शामिल है, जिसमें भारत भी एक है..(यूनाइटेड नेशन)(भारत मे लगभग प्रतिवर्ष प्रसव के दौरान 15 हजार से ज्यादा माता और 1.5 लाख से ज्यादा शिशु की मृत्यु हो जाती है)
क्या आपको पता है..??
-हम सामान्यतः 1 मिनेट में 8-16 बार सांस लेते है, जबकि गर्भवती स्त्री को 9-23 बार सांस लेना पड़ता है..।
-गर्भवती स्त्री की धड़कन 72 के जगह 120 बार धड़कता है..
-गर्भधारण के बाद से खाना का पचना सही से नही हो पाता.. जिसकारण अक्सरहां उल्टी या उल्टी करने का मन करता है..
-गर्भधारण के 8वे महीने के बाद से यूरिन पे कंट्रोल नही हो पाता..
- गर्भधारण के 8वे महीने के बाद से ही छाती में दर्द का सामना करना पड़ता है..
-और बच्चे के जन्म के वक़्त माँ को लगभग एकसाथ 20 हड्डियां एक साथ टूटने इतना दर्द होता है..
इस वक़्त 57 डेल (दर्द मापने की इकाई) तक दर्द होता है,जबकि पुरुष की क्षमता 45 डेल तक ही है,इससे ऊपर दर्द होने पर पुरुष की मृत्यु हो सकती है..।।
- न जाने और कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते है जो प्रसव के 6 सप्ताह तक बना रहता है..।।
माँ एक रूपातंरण की प्रक्रिया है... जो एक स्त्री को उसे पूर्णतया का अहसास कराती है..।।
माँ बनते ही एक स्त्री की क्षमता हरेक क्षेत्र में बढ़ जाती है..
वो साधारण से असाधारण हो जाती है..।।
माँ जैसी स्नेहमयी,
तो माँ जैसी निष्ठुरमयी...
माँ जैसी करुणामयी,
तो माँ जैसी रौद्रमयी..
माँ जैसी निःस्वार्थी,
तो माँ जैसी स्वार्थी..
और कंहा कोई मिलेगी...
क्योंकि इस धरा पे सिर्फ माँ ही तो है,
जो पूर्ण है..
और जो पूर्ण है,वो पूजनीय है..
और जो पूजनीय है,
वो इस धरा पे सिर्फ और सिर्फ माँ ही तो है..
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