सोमवार, 18 सितंबर 2023

तिलक और गणपति उत्सव

क्या आपको पता है,की आज से 130 साल पहले तक गणपति सिर्फ घरों में ही पूजे जाते थे..
इन्हें सार्वजनिक करने का काम किसने किये..??




आजसे पूरा मुम्बई/महाराष्ट्र 10 दिन तक जश्न मे डूबा रहेगा..
मगर इस जश्न में डूबने की कहानी कंहा से शुरू होती है..
शायद ये बहुतों को नही पता होगा..

चलिए आज गणपति की यात्रा कैसे,क्यों और कब हुई..।।
बाल गंगाधर तिलक, आशा करता हूँ आप इन्हें जानते होंगे,
अगर नही, तो इन्हें जानना जरूरी है..।।



इक दिन तिलक समुन्द्र किनारे बैठे थे और सोच रहे थे कि कैसे अपने लोगों को एक साथ लाया जाय, जिससे अंग्रेज का सामना किया जाय..।
1892 में बॉम्बे से पूना लौटते समय ट्रैन में एक सन्यासी ने उनसे कहा-"हमारे राष्ट्र की रीढ़ धर्म है"बिना धर्म के राष्ट्र का कोई महत्व नही है..।।

तिलक सोचने लगे कि आखिर कैसे धर्म का इस्तेमाल राष्ट्रीय बोध के लिए हो..??
उन्होंने 1893 में ही केशवजी नाइक चॉल गणेशोत्सव मंडल की नींव डाली..। 


इस मंडल की सहायता से ही पहली बार गणपति की बड़ी प्रतिमा के साथ पूजन शुरू हुआ,साथ ही मराठी लोकगीत पोवाडे के द्वारा राष्ट्रप्रेम से जुड़े गीत गाना शुरू हुआ।
देशप्रेम से जुड़े भाषण शुरू हुए,जिसे सुनने के लिए साल-दर-साल लोगों की संख्या बढ़ती ही गई..।।

तिलक चाहते थे कि ये उत्सव राष्ट्रीय उत्सव में बदले कुछ नेता समर्थन में थे ,मगर कांग्रेस के बड़े नेता विरोध में थे क्योंकि 1893 में ही मुम्बई दंगा हुआ था।

मगर इन्हें जनता का इतना समर्थन मिला कि इस मंच से मुस्लिम राष्ट्रवादी नेता भी भाषण दिया करते थे,साथ ही इस मंच से सुभाष चंद्र बोस, सरोजिनी नायडू जैसे कई हस्तियों ने इस मंच से देशवासियों को संबोधन किया..।।

आज गणपति उत्सव महाराष्ट्र का राजकीय उत्सव ही नही बल्कि आज पूरे देश मे मनाया जाता है..।।
मगर हम भूल गए कि गणपति उत्सव मनाने का क्या उद्देश्य था..?
हम उस नायक को भूल गए ,जिसने लोगों को घर से बाहर निकालकर चौराहे पे लाया..और ऊंच-नीच का भेदभाव मिटा दिया..।

हमार कर्तव्य है कि हम गणपति बप्पा के साथ उन्हें भी याद करें जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पण कर दिया..।
गणपति बप्पा मोरिया..😊



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