बुधवार, 26 सितंबर 2018

इंसान दो चीज़ों का गुलाम होता है।

इंसान दो चीज़ों का गुलाम होता है।
 1.इन्द्रिय(ऑर्गन),हॉर्मोन
 2.वस्तु
 इन दोनों का अगर एक बार अगर गुुलाम हो गए,तो इसके दासता से छूटकारा पाना मुस्किल है।
 ओर सबसे मजेदार बात ये है,की हमें इसकी दासता स्वीकार भी है,क्योंकि हमें पता ही नही चलता कि हम इसके दास है।
क्योंकि हमें इसमे आनंद की अनुभूति जो मिलती रहती है,ओर एकदिन हम इसके जकड़न में इस तरह फंस गए होते है,की इससे छुटकारा पाना नामुमकिन सा लगने लगता है।
 इस जकड़न में सब जकड़ते ही है,चाहे कोई कितनी भी कोशिस कर ले,बिना इसके जकड़न में पड़े आप जिंदगी में आगे बढ़ ही नही सकते,क्योंकि ये जकड़न प्राकृतिक जो है,ओर आप प्रकृति के विरुद्ध जा तो नही सकते न।

 हमें ये देखना चाहिए कि कोई वस्तु या कोई इन्द्रिय हम पर किस स्तर तक हावी है,कंही ऐसा तो नही की हम इसके गुलाम हो गए है।

 इसे परखने के साधारण उपाय है,आप कभी भी परख सकते है कि में किसी वस्तु या इन्द्रिय का गुलाम तो नही हु।
 1.सबों के पास मोबाइल है,सब सोशल साइट उपयोग करते है,आप देखे की क्या में 1-2 रोज बिना सोशल साइट के उपयोग किये बिना रह सकता हु,अगर हां तो आप इस जकड़न में नही है,अगर नही तो आप इस जकड़न में फंस गए है,इससे निकलने की कोशिश कीजिये।
 ऐसे ही आप देखिए कि क्या आप चाय-कॉफी के बिना कुछ दिन रह सकते है,अगर हा तो आप इसके दास नही है,आप अपने ऊपर इस तरह के प्रयोग करते रहिए।
 क्योंकि इस प्रयोग से आप वस्तु के गुलाम नही वस्तु आपका गुलाम होगा।

 सबसे बड़ी जकड़न जो होती है,वो इन्द्रिय यानी ऑर्गन या फिर हार्मोन को जो बहाव होता है,उस पर सयंम पाने में बहुत मुश्किल होता है,कुछ ही लोग होते है जो इसपे काबू कर पाते है और सफलता गढ़ पाते है।
क्योंकि इसका बहाव जो होता है,एक आनंद की अनुभूति देता है,ओर हॉर्मोन का बहाव हमारे शरीर के लिए जरूरी भी है,मगर हम अपने जरूरत को कब अपनी आदत बना लेते है हमें पता ही नही चलता।
 एक ढक्कन शराब दवा के रूप में पहली बार लेने वाला शख्श कब पूरी बोतल लेने लगा उसे भी पता नही।
 यही हमारे हार्मोनल स्राव के साथ भी होता है,कब हम इसके आदि हो जाते है,हमें पता ही नही चलता,ओर यही हार्मोनल बहाव हमें अपना गुलाम तो बनाता ही है,साथ-साथ वस्तुओं का भी गुलाम बना देता है।
 अगर आपको कोई लड़का/लड़की पसंद आ जाये या देखने मे सुंदर लगे,तो आप उसे फिर से देखने की कोशिश करेंगे,फिर एक बार,फिर एक बार ओर ये सिलसिला चलता रहेगा,ओर एकदिन ऐसा आएगा की आप उसे देखे बिना उससे बात किये बिना नही रह सकते अगर ऐसा नही होता है,तो आप मे चिड़चिड़ापन,उदासी जैसे लक्षण दिखने लगेंगे,ये ही है दासता।
 इस तरह के दासता आप अपने मे देख सकते है,आप देखिए कि आप किस चीज़ के गुलाम है,अगर उसके गुलाम है,तो उसके बिना रहने की कोशिश कीजिये।
 हमारी गुलामी तब शुरू होती है,जब हमारी निर्भरता ज्यादा बढ़ जाती है,किसी वस्तु के प्रति।।

 अगर आपको लगता है,की आप किसी चीज़ के गुलाम है तो आप उसके बिना एक दिन रहे और देखे आपके अंदर से एक खुशी की अनुभूति होगी,ये सच है।क्योंकि हमारा शरीर कोई मशीन नही है,इसमे भी अनुभूति है,ओर आप दिन-प्रतिदिन वही कर रहे है,जो आप चाहते है,एक दिन आप सामान्य जीवन शैली जी कर देखिये।कितना आनंद आता है।।

 सच तो ये है,की हम किसी वस्तु ओर हार्मोनल स्राव के गुलाम नही होते, बल्कि हो जाते है,खुद-ब-खुद ओर हमें पता भी नही चलता।
गुलामी किसे कहते है,जो आप करना चाह रहे है,वो आप नही कर पा रहे है,इसे ही गुलामी कहते है,इस गुलामी की बेड़िया को तोड़िये,हरेक रोज हथोड़े का प्रहार कर क्योंकि ये बेड़िया एक दिन में नही टूटनी वाली है,क्योंकि ये बचपन से ही बंध गई है।

 कुछ ही लोग होते है,जो इस बेड़िया को तोड़ पाते है,
 क्योंकि कितने को तो पता ही नही चलता कि वो कोई बेड़िया से बंधे हुए है।।

 गुलामी के जकड़न से निकलिए कंही ऐसा न हो कि ये गुलामी आपको अच्छी लगने लगे,ओर आप इसके ताउम्र गुलाम बने रहे।।




सोमवार, 10 सितंबर 2018

अपने दुख का विस्तार करना सही है क्या?

अपने दुःख का विस्तार इतना भी न करें कि आपके चाहने वाले भी आपसे दूरिया बढ़ाना शुरू कर दे।
 कभी-कभी हम अनजाने मे ही अपने दुःख को 
विस्तारित करने लगते है,ओर हमे पता भी नही चलता है।
हमें लगता है,सिर्फ हमहीं दुखी है,मगर आप अपने दुःख में कइयों को शामिल कर लेते है,ओर आप इस बात से अनभिज्ञ रहते है।
 अगर आप दुःखी है,तो क्यों है इसका कारण ढूंढना चाहिए न कि उसे औरों के सामने रखना चाहिए इससे आपका दुःख घटता नही बल्कि बढ़ता है,साथ ही आप उसे भी अपने दुख में शामिल कर लेते है।
 हम अक्सरहाँ दुःखी होने का कारण नही ढूंढते बल्कि ओर दुखी होने का ही प्रयत्न करने लगते है,इसिलिय आपने देखा होगा कि दुखी लोग ओर दुखी होने लगते है,क्योंकि धीरे-धीरे वो अभ्यस्त हो जाते है,ओर आंसू बहाना उन्हें अच्छा लगने लगता है,क्योंकि इसमें अब उन्हें आनंद की अनुभूति होता है,ओर मुफ्त में कुछ लोगो की सहानुभूति भी मिलने लगता है।।
  दरसल कुछ लोग दुःख के दलदल से निकलना ही नही चाहता जबकि वो ये जानते है कि ये समस्या कोई जटिल नही है,मगर इतनी मस्कत कौन करे,ओर वो उसी में फंसे रहते है।।

 दुःख कोई अनवरत चलने वाली प्रक्रिया नही है,वैसे भी प्रकृति में हरेक क्षण बदलाव आता ही है,उसी तरह दुख के बाद सुख को भी आना ही होता है,मगर आप अपनी खिड़की ओर दरवाजा सब कुछ बंद कर लेते है,तो फिर आप बारिश के बूंदों का आनंद कैसे ले पाएंगे,उसी तरह सूख दरवाजे पे दस्तक देने वाला ही होता है कि आप दरवाजा लगा लेते है,ओर अंदर जो दुख पड़ा हुआ है,उसे बाहर जाने से रोक देते है,क्योंकि अब आपको उसके साथ रहना ही पसंद है।।।

 इस प्रकृति में कुछ भी स्थायी नही है,मगर आप अप्राकृतिक तरीके से स्थायी,ओर अस्थायी बना सकते है।।

रविवार, 9 सितंबर 2018

असफल क्यों न हो?

असफल क्यों न हो?
क्योंकि आपकी असफलता सिर्फ आपकी ही नही होती,आपके असफलता के कारण कितने ही लोग असफल हो जाते है,जिस-जिस ने आपसे उम्मीद लगाई थी सबकी उम्मीद टूट जाती है,आपके असफलता के कारण।
 आपके असफलता के कारण कंही न कंही आप स्वयं तो पिछड़ते ही है,साथ ही आपका परिवार,आपका समाज भी पिछड़ जाता है,साथ ही वो सब पिछड़ जाते है,जिस-जिस ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आपके सफलता के कामना किये होते है।।
 इसलिय असफल न हो।।
क्योंकि असफलता आप से ज्यादा पीड़ादायी उनके लिए होता है,जिसने आपके लिए सफलता का कामना किया होता है,क्योंकि आप अपने असफलता का कारण ढूंढ लेते है,साथ ही सहानभूति भी प्राप्त कर लेते है।
 मगर उनका क्या जिसने आपसे सफलता की उम्मीद रखी थी,न ही वो आपके असफलता का कारण ढूंढ पाती है,ओर न ही सहानुभूतियां प्राप्त कर पाती है।।
 इसलिए असफल न हो।।
असफलता अन्धविश्वाश को जन्म देती है,इसलिय असफल न हो क्योंकि आपके चाहने वाले बेवजह आपके असफलता का जिम्मेवार दूसरे के ऊपर थोपने लगते है,जबकि आप अपनी असफलता का कारण जानते है।।

 "असफल इसलिए न हो क्योंकि आपकी असफलता आपसे ज्यादा दूसरे के लिए पीड़ादायी होती है"।
ओर ये कदाचित सही नही है कि आप अपने असफलता से दूसरों को तकलीफ दे,बल्कि अपने असफलता को सफलता में परिणित करके अपने चाहने वालो को खुद से ज्यादा उन्हें गौरवान्वित होने का मौका दे।।।

असफलता एक बोझ है।

असफलता एक बोझ है,अगर इस बोझ को जल्द-से-जल्द न उतार पाए,तो ये बोझ बढ़ता जाएगा।
ओर इक समय ऐसा आएगा कि ये बोझ इतना भारी हो जाएगा,की आप इसके तले दब जाओगे,ओर फिर निकल नही पाओगें।।
 इसलिए जितना जल्दी हो आप अपनी असफलता के बोझ को उतार कर,सफलता के बोझ को ढोने की तैयारी करें,क्योंकि सफलता का बोझ आपके अंदर आत्मविश्वास जगायेगा।।
 सच्चाई तो ये है,कि असफलता कोई बोझ नही है।मगर हमारा समाज इसे इतना भयावह बना दिया है कि ये बहुत बड़ा बोझ हो गया है,इसकी शूरुआत तो हम स्वयं ही करते है,अपने आत्मविश्वाश को गिरा कर,जब ही हमारा आत्मविश्वास गिरता है त्योंही अनेक तरह के बोझ खुद-व-खुद लदे चले जाते है।
 आत्मविश्वास गिरने के कारण आत्मग्लानि होने लगता है,ओर हम अपने आप को ओरो से कमजोर समझने लगते है,जब हम खुद अपने आपको कमजोर समझने लगते है,तब दूसरे भी हमें मानसिक रूप से यातना देना शुरू कर देते है।ओर हम इन सब बोझ के तले दिन-प्रतिदिन दबते चले जाते है।।
 जबकि होना ये चाहिए कि हमें अपनी असफलता का स्वागत करते हुए कहना चाहिए कि-
    "हम अपनी असफलताओं से नींव का निर्माण करेंगें और उसपे सफलता का प्राचीर  खड़ा करेंगे"।।
 आत्मविश्वास से लबरेज होकर फिर से सफलता को अंगीकार करने के लिए हुंकार भरनी चाहिये।।

सच तो ये है कि असफलता कोई बोझ नही है,ये तो बोझ से मुक्ति पाने का माध्यम है,या फिर बोझ ढोने के योग्य होने का साधन है।।
  बोझ तो सफलता है,न कि असफलता ।।
सफलता पाते ही अनेक तरह के बोझ बढ़ जाते है,नैतिक,पारिवारिक,सामाजिक हरेक तरह का बोझ मगर हम इसे ढोना नही चाहते क्योंकि हमारी सफलता ने इस योग्य नही बनाया है।।
 इस योग्य हम तब बनते है जब हम अपनी बार-बार के असफलताओ को सफलता में परिणित करते है,तब ही हम इस तरह के बोझ उठाने के योग्य बन पाते है।।
 अगर सच मे बोझ उठाना है,तो अपनी असफलता को स्वीकार कर,सफलता के बोझ में परिणित करने के प्रयास में जल्द लग जाये।।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

क्या किसी के सफलता में शिक्षक का योगदान होता है?

हमारी सफलता में शिक्षक का योगदान अहम होता है,अगर नही होता तो आपका जीवन नीरस हो जाता,क्योंकि शिक्षक आपके जीवन मे उस समय बीज बो रहे होते है,जिस समय अंकुरण की संभावना सौ प्रतिसत होती है।
 मगर अफसोस कि बात है,की हमारे समाज मे उस तरह की शिक्षक की बहुत ही कमी है।
मगर तब भी आपके जीवन मे 1-2 शिक्षक की छवि जीवन भर उभरेगी क्योंकि उन्होंने आपके जीवन मे कुछ बदलाव लाया,शायद वो अब अवचेतन मन मे ही क्यों न चला गया हो मगर उन्होंने बदलाव जरूर लाया।।

 शिक्षक अगर ठान ले कि हम अपने छात्र को योग्य बनायेगें तो वो बना ही देगा,क्योंकि शिक्षक कुम्हार है,ओर बच्चे मिट्टी है,कुम्हार जो स्वरूप देगा वही स्वरूप उस मिट्टी का होगा।।
 आपने देखा होगा कोई छात्र पढ़ने में बहुत ही कमजोर होता है,मगर शिक्षक की एक बात उसके पूरे जिंदगी को बदल देता है।

 मगर वर्तमान समय मे ये स्वरूप बदलता जा रहा है।
न अब शिक्षक रहे न छात्र,क्योंकि शिक्षक अब दुकानदार बन गए है,ओर छात्र ग्राहक।।
 अब आपको स्कूल कॉलेज से ज्यादा छात्र आपको बड़े बड़े मल्टीस्टोर जैसे जो कोचिंग खुले हुए है उसमें छात्र नजर आएंगे।।
 शिक्षक तो छात्र को पहचानते ही नही क्योंकि उनके पास लिमिट समय होता है,टॉपिक को खत्म करने का,ओर छात्र गर्दन सीधा करते ही नही,शिक्षक को देखने के लिए उनका ध्यान सिर्फ लेखनी ओर प्रोजेक्टर पर दिखाई,ओर समझाई जा रही प्रजेंटेशन पे रहती है।।
 तो यंहा शिक्षक और छात्र में कोई संबंध बन ही नही पाता,ज्योहीं बनने वाला होता है,त्योंही उनका सिलेबस खत्म।।

 अब शिक्षक और संस्थान अपने ऊपर सिर्फ एक जिम्मेदारी लिए हुए है,किसी तरह सिर्फ सिलेबस खत्म किया जाय,उन्हें नैतिक शिक्षा से कोई दूर-दूर रिश्ता नही है।।

मगर आज भी कुछ शिक्षक है,जो अपने जिम्मेदारी को समझ रहे है,खासकर नैतिक जिम्मेदारी को,इसीलिए तो वो छात्र के ही नही इस समाज के भी प्रिय बन रहे है।।
 मगर इनकी संख्या इतनी बड़ी भीड़ में नग्न है।।

मगर आपके सफलता में शिक्षक का योगदान अहम है,वो अगर चाह ले तो आपकी असफलता को सफलता में परिणित कर देगा,अगर वो न चाहे तो आपकी सफलता भी असफलता में परिणित कर देगा।।
 मेरे भी कुछ सर् हुए,जिनकी छवि अभी भी बनी हुई है,अब तो सब की उभर गई,जितनी से भी पढ़ाई की उन सबकी,मगर उनमे से कुछ ही है,जिनके लिए मेरे हिर्दयस्थली में हमेशा।जगह होगा।।

सोमवार, 3 सितंबर 2018

क्या सफलता एक रहस्य है?

क्या सफलता एक रहस्य है?
 हां सफलता एक रहस्य ही तो है,
मगर सबके लिए ये अलग-अलग हो सकते है,मगर कुछ समानताएं सबों में एक जैसी होती ही है,बिना इसके सफल हो पाना मुमकिन ही नही नामुमकिन है।
 इनमें से कुछ रहस्य का जिक्र करता हु,
 *सबसे पहला रहस्य जो है,वो "धैर्य" है।
 *दूसरा अपने लक्ष्य के प्रति "दृढ़-निश्चयी"
 *तीसरा "आत्मविश्वास"।
 *चौथा "अपने प्रति ईमानदार"।
 *पांचवा जो है वो "नम्रता" है।

अगर ये सारे गुण आप मे है तो आपको सफल होने से कोई नही रोक सकता है।।
 इनमे से कुछ गुण जो है वो सबों में पाए जाते है,मगर कुछ को हम पहचान ही नही पाते है,जो हमें लगता है की हम में ये गुण है,मगर वो होते ही नही।।
 हमें लगता है की हम अपने प्रति ईमानदार है,मगर ऐसा होता नही,हम अक्सरहाँ अपने ईमानदारी का प्रदर्शन दूसरे के नजर में अच्छे होने के लिए करते है,मगर हम खुद के प्रति ईमानदार नही होते,जरा मनन करे कि क्या में अपने प्रति ईमानदार हु।।

 दूसरा जो है वो दृढ़-निश्चयी ये गुण शुरुआत में रहते तो है,मगर जो ही अपने कार्य मे या कोई विपरीत परिस्थिति आता है तो ये दृढ़-निश्चयी का   दिखवापन फुस हो जाता है।।

 यही हाल धैर्य के साथ भी होता है,जो ही हमारे हिस्से में कुछ असफलता हाथ लगती है,त्योंही हमारा धैर्य टूट जाता है।

 किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए अपने प्रति आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है,कभी-कभी हम लक्ष्य के करीब होते है,की हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है,ओर हम हाथ खड़ा कर देते है,ओर जिंदगी भर अफसोस करते है,काश दो कदम ओर चल लेते।।

सबसे बड़ा जो गुण है,अगर वो आपमे नही है तो आप सफल होके भी असफल हो जाएंगे,इसिलिय अपनी दिनचर्या में नम्र स्वभाव को शामिल करें,सबो के प्रति नम्र रहे,चाहे वो आपका दुश्मन ही क्यों न हो।

 अगर ये सारे गुण आपमे है,तो आपको सफल होने से कोई नही रोक सकता,हां ये गुण जन्मजात नही होते,न ही अच्छी और खराब परिवरिश के कारण ही होते है।
 इसे तो खुद आपको ही अपने आदत में शुमार करना होता है।।

रविवार, 2 सितंबर 2018

"कृष्ण" इतने विराट कैसे हुए?

कृष्ण नाम लेते ही इक सौम्य मुस्कान वाली छवि सामने आ जाती है।
वो स्यामल चेहरा न जाने सदियों से लोगों को आनंदित करती रही है,सबों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है।
 आखिर क्या है उसमें जिसे एक झलक देखते ही लोग मोहित हो जाते है,वो अपना सुध-बुध सब खो जाते है,ओर उसमे ही समाहित हो जाते है।।

 हमें ये जानना होगा कि क्यों कृष्ण का व्यक्तित्व इतना विराट हुआ।
मृत्यु पे विजय।
 सबसे पहले उनके जन्म लेने की परिघटना से ही शुरू करते है।
 एक ऐसा बच्चा जिसे गर्भ में आते ही दिन रात मृत्यु का सामना करना पड़ रहा है।
ओर जन्म लेते ही वो अपने माँ-बाप से अलग हो जाता है।
ओर ज्यों-ज्यों बड़ा होता है,त्यों-त्यों मृत्यु का साया बड़ा होता जाता है,कभी पूतना के रूप में तो कभी कालिया नाग के रूप में मगर वो इन सभी साये को पीछे छोड़ते गए।
ओर इक समय ऐसा आया जब साक्षात मृत्यु से साक्षात होने वाला था और वो भी किससे मृत्यु रूपी मामा से ही दोनों को ही मालूम था इक की मृत्यु होने वाली है,कृष्ण ने मृत्यु के भय को पराजित करके कंस पे विजय पाई।

सबसे बड़ा त्यागी 
 मुझे नही लगता कि उनके इतना कोई त्याग किया होगा।
जन्म लेते ही अपने माँ-बाप से दूर से होना पड़ा,जिसके प्यार से 9 महीने तक सरोबार हो रहा था।
जब वो सिर्फ 11 साल 5 महीने के थे तब उन्हें उन माँ-बाप को छोड़ना पड़ा जिसने उसका लालन-पालन किया,सिर्फ लालन-पालन ही नही उसे सींचा उसके व्यक्तित्व की नींव गढ़ी,
उसे छोड़ना पड़ा जिसने उसे बोलना,चलना सिखाया,उसे छोड़ना पड़ा जिसे वो बेइंतहा प्यार करते थे,जिसके बगैर एक पल नही रह सकते थे।
 इस उम्र में उन दोस्तों का साथ छोड़ना पड़ा जो उनके उत्साह और उमंग का हिस्सा था।
 उन्हें वो गाँव छोड़ना पड़ा जिसकी मिट्टी की खुश्बू उनके सांसो में दिन रात महकती रही।
उन्हें उन गायों का साथ छोड़ना पड़ा,
उस उपवन ओर यमुना तट का साथ छोड़ना पड़ा,
जंहा उन्होंने उनके साथ जिंदगी के वो पल गुजारे,
जो उनकी स्मृति से कभी नही हट सकती।
 अपनी उस प्रिय सखा का साथ छोड़ना पड़ा
जिसके पल न वो ओर न ही उनके बिना ये रह सकते थे।
उस राधा का साथ छूटा,जिसकी सांसे उनसे ओर उनकी सांसे इनसे जुड़ी हुई थी ।
 वो सब कुछ छुटा,
जो कुछ पल तक अपना था,
ओर अब सब कुछ पराया हो गया,
वो माँ-बाप,
वो ग्वाल-बाल,
वो नदी-उपवन,
गाँव, पर्वत,पठार सब कुछ,
 कुछ क्षण में ही पराया हो गया।

जब जन्म देने वाली माता से प्यार पाने का समय आया तो शिक्षा पाने गुरुकुल चले गए।
जब गुरुकुल से आये तो परिवार राज-पाट का सिर पे बोझ आ गया,उसे सुदृढ़ करने में लग गए।
जब ये सुदृढ़ हो ही रहा था कि पड़ोसिया की दिन-प्रतिदिन के कलह से निपटने के लिए बसे बसाये साम्रज्य को छोड़ कर पूरे प्रजा को लेकर द्वारका चले गए।
फिर से एक नई यात्रा शुरू की।

जब विवाह का समय आया तब ऐसी करुण भरी स्त्री का पत्र मिला जिसे वो जानते तक नही थे बिना कुछ सोचे उसके सुरक्षा के लिए चले गए।
ओर उन्हें उस परिस्थिति से उबारा ओर उससे व्याह किया,बिना किसी ढोल-मृदंग,ओर नाच-गान के वो सारे उत्साह और सपने को त्याग किया,जो एक युवा संजोता है।

जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तब उन्होंने अपने मान-सम्मान को भी दांव पर लगा कर शांति दूत बन कर गए।
जब उनके प्रस्ताव को नही स्वीकार किया गया तब युद्ध की रणभेरिया बज उठी उस परिस्थिति में भी दोनों पक्ष से आये मदद के लिए आये आगंतुक को निराश नही किये।
 वो एक पक्ष का सारथी होना स्वीकार किये और अपने सैन्य ताकत को भी दूसरे पक्ष से लड़ने के लिए भेज दिए।
ये कैसी स्थिति रही होगी जब एक राजा अपने सैनिक को अपने सामने ही मरते देख रहा हो और वो चाह कर भी कुछ नही कर सक रहा हो।
 जब युद्ध समाप्त हुआ तब इन्हें ही युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए इन्हें पूरे कुल का विनाश होने का श्राप स्वीकारना पड़ा,वो भी अपनी अनुमति से ।

प्रेम की परिभाषा गढ़ी।

 इन्होंने प्रेम को ऐसा आयाम दिया जिसे कोई नही दे पाया।
निस्वार्थ प्रेम उनसे जिससे कुछ मिलने वाला नही है,अगर मिलने वाला है तो सिर्फ प्रेम इसके सिवा कुछ भी नही।
इन्होंने प्रेम को इतना विस्तारित किया जिसमें ये प्रकृति समाहित हो सकती है।
इन्होंने किसी के तन से नही मन से प्रेम किया,इन्होंने सिर्फ उन्हींसे नही प्रेम किया जो इनसे किया इन्होंने उनसे भी किया जो इनसे नही करते थे।
 "इन्होंने प्रेमी-प्रेमिका की नई परिभाषा गढ़ी, प्रेमी-प्रेमिका के जिस्म पे अधिपत्य जमाना प्रेम नही है,बल्कि उसके मन पे अधिपत्य जमाना ही सच प्रेम है"
 प्रेम इक ऊर्जा है,जो आपको शिखर पे पहुचायेगा,ओर आपको खाई में भी गिरायेगा,इसलिए इस ऊर्जा का इस्तेमाल हमेशा सोच कर करें, जो आपको ऊँचाई पे पहुचाये वही सच्चा प्रेम है,जो खाई में गिराए वो प्रेम हो ही नही सकता।।
 इन्होंने प्रेम को उस पराकाष्ठा पे पहुँचाया जंहा सब पहुचना चाहते है मगर वो प्रेम को समझ नही पाते।।

मित्रता।।

इन्होंने मित्रता की नई परिभाषा गढ़ी।
"मित्र रंग-रूप,जात-पात,लाभ-हानि देख कर कभी हो ही नही सकती,अगर वो होता है तो वो क्षणभंगुर है"।
मित्रता कभी जान-पहचान वालों से हो ही नही सकता,अगर हो जाये तो समझ लेना वो स्वार्थवश है।
क्योंकि "मित्र" शब्द से ही ये तात्पर्य होता है कि "में ओर दूसरा"।ये दूसरा कौन होगा कंहा होगा किस मोड़ पे होगा ये किसी को पता नही।इसीलिये तो ये मित्र है।

मित्र वो है,जो तुम्हारे सफर को अपना बना ले,
जो तुम्हारे दुःख को अपना बना ले,
जो अपने घर को तुम्हारा बता दे,
जो अपना सब कुछ तुम्हारे लिए न्यौछावर कर दे,तुम्हारा बता के।
सच मे वही मित्र है,
जिसके अंदर स्वार्थ जगे भी तो अपने मित्र के लिए,
दुर्भावनाएं जगे भी तो अपने लिए।
सच मे वही मित्र है।

 कृष्ण ने मित्रता को उसी पराकाष्ठा पे पहुँचाया।
मगर हम आप किसी के पास जाने से भी पहले लाभ-हानि,अच्छा-बुरा सोच के जाते है।

अगर आपने ऊपर लिखी पंक्तियों को पढा है,तो जरा सोचें।।
क्या हमारे आपके ऊपर ऐसी परिस्थितिया आती है तो क्या हम उसका सामना डट कर करते है।
नही ना...?

कृष्ण इसलिय भगवान नही बने की वो विष्णु के अवतार थे,
वो इसलिये भगवान बने की उन्होंने परिस्थितियों का सामना किया।।
 इन्हें इतना विराट इनकी परिस्थिति ने बनाया।।
इसलिय परिस्थितियों का सामना करें, न कि उससे घबरा कर उससे भागे।

 कृष्ण की विराटता का यही रहस्य है कि उन्होंने परिस्थितियों का सामना ही नही किया बल्कि उसका स्वागत किया।।

ओर हम क्या कर रहे है,सिर्फ उन्हें पूज रहे है,उनसे कुछ सीख नही रहे है।
तो ऐसी पूजा व्यर्थ है।।

 आये उनसे कुछ सीखे,ओर अपने चरित्र को भी विराट बनाये, यंही उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और पूजा होगी।।