सोमवार, 10 सितंबर 2018

अपने दुख का विस्तार करना सही है क्या?

अपने दुःख का विस्तार इतना भी न करें कि आपके चाहने वाले भी आपसे दूरिया बढ़ाना शुरू कर दे।
 कभी-कभी हम अनजाने मे ही अपने दुःख को 
विस्तारित करने लगते है,ओर हमे पता भी नही चलता है।
हमें लगता है,सिर्फ हमहीं दुखी है,मगर आप अपने दुःख में कइयों को शामिल कर लेते है,ओर आप इस बात से अनभिज्ञ रहते है।
 अगर आप दुःखी है,तो क्यों है इसका कारण ढूंढना चाहिए न कि उसे औरों के सामने रखना चाहिए इससे आपका दुःख घटता नही बल्कि बढ़ता है,साथ ही आप उसे भी अपने दुख में शामिल कर लेते है।
 हम अक्सरहाँ दुःखी होने का कारण नही ढूंढते बल्कि ओर दुखी होने का ही प्रयत्न करने लगते है,इसिलिय आपने देखा होगा कि दुखी लोग ओर दुखी होने लगते है,क्योंकि धीरे-धीरे वो अभ्यस्त हो जाते है,ओर आंसू बहाना उन्हें अच्छा लगने लगता है,क्योंकि इसमें अब उन्हें आनंद की अनुभूति होता है,ओर मुफ्त में कुछ लोगो की सहानुभूति भी मिलने लगता है।।
  दरसल कुछ लोग दुःख के दलदल से निकलना ही नही चाहता जबकि वो ये जानते है कि ये समस्या कोई जटिल नही है,मगर इतनी मस्कत कौन करे,ओर वो उसी में फंसे रहते है।।

 दुःख कोई अनवरत चलने वाली प्रक्रिया नही है,वैसे भी प्रकृति में हरेक क्षण बदलाव आता ही है,उसी तरह दुख के बाद सुख को भी आना ही होता है,मगर आप अपनी खिड़की ओर दरवाजा सब कुछ बंद कर लेते है,तो फिर आप बारिश के बूंदों का आनंद कैसे ले पाएंगे,उसी तरह सूख दरवाजे पे दस्तक देने वाला ही होता है कि आप दरवाजा लगा लेते है,ओर अंदर जो दुख पड़ा हुआ है,उसे बाहर जाने से रोक देते है,क्योंकि अब आपको उसके साथ रहना ही पसंद है।।।

 इस प्रकृति में कुछ भी स्थायी नही है,मगर आप अप्राकृतिक तरीके से स्थायी,ओर अस्थायी बना सकते है।।

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