असफलता एक बोझ है,अगर इस बोझ को जल्द-से-जल्द न उतार पाए,तो ये बोझ बढ़ता जाएगा।
ओर इक समय ऐसा आएगा कि ये बोझ इतना भारी हो जाएगा,की आप इसके तले दब जाओगे,ओर फिर निकल नही पाओगें।।
इसलिए जितना जल्दी हो आप अपनी असफलता के बोझ को उतार कर,सफलता के बोझ को ढोने की तैयारी करें,क्योंकि सफलता का बोझ आपके अंदर आत्मविश्वास जगायेगा।।
सच्चाई तो ये है,कि असफलता कोई बोझ नही है।मगर हमारा समाज इसे इतना भयावह बना दिया है कि ये बहुत बड़ा बोझ हो गया है,इसकी शूरुआत तो हम स्वयं ही करते है,अपने आत्मविश्वाश को गिरा कर,जब ही हमारा आत्मविश्वास गिरता है त्योंही अनेक तरह के बोझ खुद-व-खुद लदे चले जाते है।
आत्मविश्वास गिरने के कारण आत्मग्लानि होने लगता है,ओर हम अपने आप को ओरो से कमजोर समझने लगते है,जब हम खुद अपने आपको कमजोर समझने लगते है,तब दूसरे भी हमें मानसिक रूप से यातना देना शुरू कर देते है।ओर हम इन सब बोझ के तले दिन-प्रतिदिन दबते चले जाते है।।
जबकि होना ये चाहिए कि हमें अपनी असफलता का स्वागत करते हुए कहना चाहिए कि-
"हम अपनी असफलताओं से नींव का निर्माण करेंगें और उसपे सफलता का प्राचीर खड़ा करेंगे"।।
आत्मविश्वास से लबरेज होकर फिर से सफलता को अंगीकार करने के लिए हुंकार भरनी चाहिये।।
सच तो ये है कि असफलता कोई बोझ नही है,ये तो बोझ से मुक्ति पाने का माध्यम है,या फिर बोझ ढोने के योग्य होने का साधन है।।
बोझ तो सफलता है,न कि असफलता ।।
सफलता पाते ही अनेक तरह के बोझ बढ़ जाते है,नैतिक,पारिवारिक,सामाजिक हरेक तरह का बोझ मगर हम इसे ढोना नही चाहते क्योंकि हमारी सफलता ने इस योग्य नही बनाया है।।
इस योग्य हम तब बनते है जब हम अपनी बार-बार के असफलताओ को सफलता में परिणित करते है,तब ही हम इस तरह के बोझ उठाने के योग्य बन पाते है।।
अगर सच मे बोझ उठाना है,तो अपनी असफलता को स्वीकार कर,सफलता के बोझ में परिणित करने के प्रयास में जल्द लग जाये।।
ओर इक समय ऐसा आएगा कि ये बोझ इतना भारी हो जाएगा,की आप इसके तले दब जाओगे,ओर फिर निकल नही पाओगें।।
इसलिए जितना जल्दी हो आप अपनी असफलता के बोझ को उतार कर,सफलता के बोझ को ढोने की तैयारी करें,क्योंकि सफलता का बोझ आपके अंदर आत्मविश्वास जगायेगा।।
सच्चाई तो ये है,कि असफलता कोई बोझ नही है।मगर हमारा समाज इसे इतना भयावह बना दिया है कि ये बहुत बड़ा बोझ हो गया है,इसकी शूरुआत तो हम स्वयं ही करते है,अपने आत्मविश्वाश को गिरा कर,जब ही हमारा आत्मविश्वास गिरता है त्योंही अनेक तरह के बोझ खुद-व-खुद लदे चले जाते है।
आत्मविश्वास गिरने के कारण आत्मग्लानि होने लगता है,ओर हम अपने आप को ओरो से कमजोर समझने लगते है,जब हम खुद अपने आपको कमजोर समझने लगते है,तब दूसरे भी हमें मानसिक रूप से यातना देना शुरू कर देते है।ओर हम इन सब बोझ के तले दिन-प्रतिदिन दबते चले जाते है।।
जबकि होना ये चाहिए कि हमें अपनी असफलता का स्वागत करते हुए कहना चाहिए कि-
"हम अपनी असफलताओं से नींव का निर्माण करेंगें और उसपे सफलता का प्राचीर खड़ा करेंगे"।।
आत्मविश्वास से लबरेज होकर फिर से सफलता को अंगीकार करने के लिए हुंकार भरनी चाहिये।।
सच तो ये है कि असफलता कोई बोझ नही है,ये तो बोझ से मुक्ति पाने का माध्यम है,या फिर बोझ ढोने के योग्य होने का साधन है।।
बोझ तो सफलता है,न कि असफलता ।।
सफलता पाते ही अनेक तरह के बोझ बढ़ जाते है,नैतिक,पारिवारिक,सामाजिक हरेक तरह का बोझ मगर हम इसे ढोना नही चाहते क्योंकि हमारी सफलता ने इस योग्य नही बनाया है।।
इस योग्य हम तब बनते है जब हम अपनी बार-बार के असफलताओ को सफलता में परिणित करते है,तब ही हम इस तरह के बोझ उठाने के योग्य बन पाते है।।
अगर सच मे बोझ उठाना है,तो अपनी असफलता को स्वीकार कर,सफलता के बोझ में परिणित करने के प्रयास में जल्द लग जाये।।
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