हार कर, उदास होकर बैठने से क्या होगा
जबतल्क मंजिल न मिले , तबतल्क रुकना गुनाह है..।
हार कर ही हिमालय फतह हुआ,
हार कर ही समुन्द्र की गहराइयां पता चला,
हार कर ही आसमां की उचाइयां पता चला,
बिना हारें, किसी का अमिट अक्षर में कंहा नाम हुआ..
जबतल्क मंजिल न मिले , तबतल्क रुकना गुनाह है..।
अपने हार को भी जीत में तब्दील कर,
तू इस कदर कर्म कर, की हारकर भी जीत का अहसास हो।
वो जीत भी क्या जीत है..
जिस जीत से, हार की खुश्बू आती नही।
वो जीत भी क्या जीत है..
जिससे खुद का साक्षात्कार का अहसास न हो।
वो जीत भी क्या जीत है..
जिससे अपनों का अहसास न हो।।
अपने हार को भी जश्न बना..
जिस हार ने तेरी कमजोरियां दिखाई ..।
क्योंकि यंहा कौन है..??
जो तेरी कमजोरियां दिखायेगा..।
अपने हार का भी सम्मान कर..
जिस कदर करता गुरु का सम्मान है..।
अपने हार का भी आदर कर,
जिस कदर करता बड़ों का आदर..।।
मगर ये हार का सिलसिला कब तक चलेगा..
जब हार कर भी, हार का अहसास न हो...।
तब समझ ले तू, जीत के काबिल नही है..
अगर थोड़ी भी, आन-शान बचा हो
तो जीत के लिए जी-जान झोंक दे..।।
जब हार का अहसास न हो..
तो तू समझ ले,
तू जीत के काबिल नही..।
क्योंकि तेरी कमियों ने तुझे जकड़ लिया है,
जीते-जी मृतप्राय होने से पहले,
इस जकड़न को तोड़ कर तू, जीत का स्वाद चख ले..।।
उस जीत से भी बड़ी जीत होगी,
जब अपनी कमियों के केचुल को उखाड़ फेंकोगे..।
क्योंकि जो अपनी कमियों पे विजय पा ले,
उसे जीतना सब आसान है..।।
कमर कस, हुंकार भर।
अपनी कमियों को ललकार कर,
युद्धभूमि में सीना तानकर..
अपने कमियों पर प्रहार कर..।
अपने तरकश से पहला बाण निकालकर,
अपने काम(क्रोध,मोह) पर तुम वार कर।
दूसरे बाण से तुम अपने आलस्य पर प्रहार कर।
और तीसरे बाण से तुम अपने अंतर्द्वंद्व पर वार कर।
अगर इससे भी न हो, तो आखरी अस्त्र इस्तेमाल कर,
पुनर्जीवन(ध्यान) को स्वीकार कर..
फिर से अंकुरित होकर अपने आप को स्वीकार कर..।।
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