हार कर हारना, क्या हार है..
जिस हार से,हार का अहसास न हो,
वो हार भी क्या हार है..।
वो हार भी क्या हार है..
जिस हार से मन द्रवित न हो,
सीने में आग प्रजवल्लित न हो,
आँखों मे क्रोध की ज्वाला न हो,
और अपनी कमियों को,
भट्टियों में झोंकने की ताकत न हो,
वो हार भी भला क्या हार है..।
वो हार भी भला क्या हार है..
जो नए कीर्तिमान रचने को विवश न करें,
वो हार भी भला क्या हार है..
जो स्वर्णिम अक्षरों में नाम न खुदवा दे..
वो हार भी भला क्या हार है..
जो खुद से खुद का आत्म-साक्षात्कार न करा दे..
वो हार भी क्या हार है..
जिस हार से, हार का अहसास न हो..।।
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