बुधवार, 10 अप्रैल 2024

आपने कभी सोचा है..सारे अवतारों का सबंध धनाढ्य परिवार से ही क्यों था..??

हम भगवान को कब पूजते है..
जब हम खुद को असहाय पाते है..।
कबीरदास जी कहते है..
"दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोई
  जो सुख में सुमिरन करें,तो दुःख काहे को होई..।।
-इस दोहे के अनेक अर्थ निकाला जा सकता है..
उसमें से एक नजरिया ये भी है कि अगर आप सुखी हो तो आपको  भगवान की जरूरत नही है..

आपने कभी सोचा है..??
सारे अवतारों का सबंध धनाढ्य परिवार से ही क्यों था..??


चाहे वो.. राम हो,कृष्ण हो,बुद्ध,महावीर या नानक ही क्यों न हो सब आर्थिक रूप से समृद्ध थे..
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लाम के प्रेणता मुहम्मद साहब को भी भगवता की प्राप्ति तब होती है जब उनकी शादी धनाढ्य परिवार में होता है..

वर्तमान में सबसे बड़ा धर्म ईसाई है और इसके प्रेणता ईसा मसीह थे..इन्हें खासकर गरीबों के मसीहा के रूप में देखा गया और इसिलिय इन्हें भी गरीब बना दिया गया..
मगर कुछ आलेखों से पता चलता है कि इनका भी परिवार आर्थिक रुप से संपन्न था,उस समय बढई का काम सम्मानजनक काम था..और इनके पिता आर्थिक रूप से संपन्न था..
मगर जब ये पिछड़ों और परताडितो की आवाज बनने लगे तो इन्हें भी गरीब परिवार से जोड़ दिया गया..
आपको जानकर हैरानी होगी कि पूंजीवाद की बीज इन्होंने बोई थी..।।

ऊपर की पंक्तियों को पढ़ने के बाद आपके अंदर क्या विचार आ रहा है..??
आप फिर सोचिए आखिर क्यों सारे अवतार आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में ही पैदा हुए..??

अगर वो गरीब परिवार में पैदा होते तो क्या उन्हें कोई जान पाता..??
आपको बता दू की बुद्ध के समय मे बुद्ध जैसे 16 कैवल्य को प्राप्त करने वाले व्यक्ति थे..मगर सिर्फ बुद्ध के ही विचार क्यों फला-फुला..??
क्योंकि उनका संबंद्ध एक राजघराने से था और हरेक क्षेत्र के राजा उन्हें हरेक क्षेत्र में हरेक तरीकों से मदद करते थे..
यही महावीर के साथ भी हुआ..।।

आप जरा अपने बारे में सोचिए आप भगवान को कब याद करते है😊..??
जब आप असहाय होते है..।।
अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हो जाये तो..
शायद भगवान की उतनी जरूरत नही पड़ेगी..।।
इसिलिय आप अपनी आर्थिक संपन्नता पर ध्यान दे..

तुलसीदास जी कहते है..
"समरथ को नहिं दोष गुसाईं "
- अगर आप समर्थवान(आर्थिक,शारीरिक,मानसिक) है तो आप कुछ गलत भी करते है तो आपको कोई दोष नही लगेगा..
यानी आपके खिलाफ कोई बोलने से बचेगा..
इसिलिय अपने आप को समर्थवान बनाने पर ध्यान दे..

कबीरदास जी कहते है..
"पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पुजू पहाड़,
 घर की चाकी कोई न पूजे,जाको पीस खाई संसार"
कबीरदास जी का भी कहने का तात्पर्य यही है कि आप उस और अपनी ध्यान लगाए,जिससे आप संपन्न हो..।

आपने कभी सोचा है..
अक्सरहाँ लोग केदारनाथ,बद्रीनाथ,इत्यादि जगहों पे क्यों नही जा पाते..??
क्योंकि वो आर्थिक रूप से संपन्न नही है..
जबतक आप आर्थिक रूप से संपन्न नही होंगे,तबतक आप भगवान के करीब नही जा सकते..

मगर आप इसे आध्यातिमकता से जोड़ के मत देखिएगा..आध्यत्म का संबंध बहुत ही विस्तारित है,जितना ब्रह्मांड विस्तारित है..
अध्यात्म में जाने के लिए शून्यता की और अग्रसर होना पड़ता है..
और भगवान के करीब जाने के लिए आर्थिक संपन्नता की और जाना पड़ता है..
और आनंद की प्राप्ति के लिए भक्तिमय होना पड़ता है..।

निर्णय आपको करना है कि आपको क्या करना है..
अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न होते है तो आपके लिए अध्यात्म,भक्ति,और भगवान के दरवाजे भी खुल जाएंगे..

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