शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

चलो फिर से जीते है..

क्या आपको बच्चों की किलकारिया परेशान करता है..??
अगर हां...
तो आपको सोचने की जरूरत है..
की, क्या आप जिंदा है या फिर मशीन बन(मर) चुके है..।

बच्चे का स्वभाव ही होता है..
हँसना,रोना,चिल्लाना,चीखना और चुप रहना और बहुत कुछ एक साथ करना..
सबसे बड़ी बात ये है कि.. 
बच्चें एक समय मे ही ये सब एक साथ कर सकते है..
और हम सब ज्यों-ज्यों बड़े होते है..
ये सब पीछे छूट जाता है..

क्या आपको याद है..
आपने आखरी बार कब खुल के हंसा था या फिर रोया था..
आपने आखरी बार कब जोर से चीखा या चिल्लाया था..
या फिर आपने आखरी बार कब चुपी रखी थी..

शायद आपको याद न हो..
थोड़ जोर देंगे तो कंही याद आ जाये..जोड़ दीजिये..

आपको ये बात जरूर याद होगी..
आपको आखरी बार गुस्सा कब आया था..
(मुस्कुराइए😊 आपकी यादाश्त अच्छी है.)

सबसे अजीब बात ये है की..
हमें गुस्सा कंही भी किसी के ऊपर आ जाता है,कभी-कभी तो इस गुस्से के कारण रिस्ते तक खराब हो जाते है..
और शायद इसका बाद में अफसोस भी होता है..
कभी-कभी ये अफसोस ताउम्र बना रहता है..।

मगर सोचा है आखिर हमें गुस्सा आता ही क्यों है..??
क्योंकि हमनें अपने बचपना को दफना दिया है..

आपको याद है..
आप बचपन मे ढेर सारे झगड़े किये होंगे..
मगर वो झगड़े सुलझ गए होंगे..
(शायद ही कोई आपका बचपन का दुश्मन हो)
क्योंकि उस समय हमारे अंदर 'अहम' (ego)नही होता था,
मगर वर्तमान में हम लबालब ego से भरे हुए है..
वो अक्सरहाँ हरेक के बात पे,कभी भी बाहर छलक जाता है..
ना वो व्यक्ति देखता है और ना ही परिस्थिति..।।

इसका हल क्या है..
चलो फिर से जीते है..
और बच्चों की किलकारियां और हंसी ठठोली को महसूस करते है..
चलो फिर से जीते है..
बच्चों के साथ कुछ पल बच्चें हो जाते है..
चलो फिर से जीते है..
और बचपन को समझने की कोशिश करते है...
चलो फिर से जीते है..

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

हरेक चीज का महत्व है...

हमारे जिंदगी में हरेक चीज का महत्व है..
बशर्ते हमें किसी चीज की महत्वता का पता हो..।
आपके आस-पास जो भी कुछ है..
उस हरेक चीज का महत्व है..
वो वंहा इसलिये है क्योंकि उसकी वंहा जरूरत है..।
वो अलग बात है कि हमें पता नही है..
की इसकी क्या जरूरत है..।

इसी तरह मैंने अपने जिंदगी में गंध का महत्व को समझ..
मुझे 3 तरह की गंध बहुत रोमांचित करता है..
और मुझे अतीत का सफर करा देता है..।

● पहला सुंगंध कोयले की धुंए की है जो मुझे बचपन की यादों में ले जाता है..
● दूसरी सुगंध एक अगरबत्ती की है शायद,जो मुझे किशोरावस्था में ले के चला जाता है(इस अगरबत्ती की ढूंढने की कोशिस करता हूँ,अभी तक मिला नही है)
● और तीसरी सुगंध फूल की है जो मुझे किसी की याद दिला देती है..

मालूम नही चौथी सुगंध कैसी होगी,और इसका कैसा प्रभाव होगा..

अगर आप जिंदा है तो हरेक चीज को महसूस करेंगे..
चाहे हवा का स्पर्श हो,या फिर चांद की रोशनी का..
या चिड़ियों का चहचहाटो का,या फिर बच्चों की किलकारियों का..
ये सब चीज अगर आपको रोमांचित करता है..
तो आप जिंदा है..।।

किस से बात करू...

कभी-कभी मन होता है..
किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..

अगर गलती से.. 
किसी को फ़ोन मिला भी दिया..
तो उधर से आवाज आती है..
क्या बात है,कॉल किया..।

फिर सोचता हूँ..
क्या जरूरी है...कोई बात हो, 
तब ही कॉल करू...

मगर सच तो यही है..
हमसब ने खुद को वैसा ही बना लिया है..
कोई बात हो तब ही कॉल करो..
अन्यथा बात मत करो..

अगर गलती से भी किसी का कॉल आये..
तो पहले, क्या बात है.. मत पूछना..
पहले पूछना, क्या हाल है..।।

कभी-कभी मन होता है..
किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..


रविवार, 24 नवंबर 2024

जबतुम थक जाओ..

जब तुम थक जाओ..
तो थोड़ा रुक जाओ..
ना कि रुक कर वहीं रह जाओ..
बल्कि वंहा से आगे बढ़ जाओ..

कौन हैं यंहा..
जो थका हुआ है..
कौन है यंहा..
जो रुका हुआ है..
यंहा कोई नही.. 
जो थका हुआ है..
यंहा कोई नही 
जो रुका हुआ है..
जो यंहा रुक गया,
जो यंहा थक गया..
फिर उसका कंहा अस्तित्व रहा..

सर् उठा के आसमां की और देखो..
चांद तारे दिख रहे है, इसलिए..
क्योंकि वो थके नही है..
अपने आसपास देखो..
जो दिख रहे है..
वो इसलिए दिख रहे है..
क्योंकि वो थके नही है..।

ये ब्रह्मांड सिर्फ उसे ही स्वीकारता है..
जो थका नही है..
जो थक गया है..
उसे ब्रह्मांड भी नही स्वीकारता है..।।

इसीलिए जबतुम थक जाओ..
तो थोड़ा रुक जाओ..
ना कि रुक कर वंही रह जाओ..
बल्कि वंहा से आगे बढ़ जाओ..।।


इक खालीपन सा है..



एक खालीपन सा है..
सच मे एक खालीपन सा है..
एक ऐसा खालीपन जो कूड़ा-कचराओ से भरा हुआ है..
ऐसा ही खालीपन सा है..

कुछ नया भरने को मन है..
मगर इन कूड़ा-कचराओ से निकले कैसे है..

इक खालीपन सा है..
इसको फिर से नए सिरे से भरने को मन है..
शुरुआत कैसै और कंहा से करू..
इक खालीपन सा है...

या सच में..
मैं अपनी बचीं हुई संभावनाओं को भी खो रहा हु..
क्या ये उस और तो खालीपन का इशारा नही कर रहा है..
सच मे इक खालीपन सा है..

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

कितना मुश्किल है..

कितना मुश्किल होता है,
बिना सपनो के जिया जाना..
सच कहता हूं..
इससे भी मुश्किल होता है..
सपने न पूरा होने का मलाल ले कर ताउम्र जिया जाना..
काश ये होता है,काश ये करता..
ताउम्र इस काश के सहारे 
सपने न पूरे होने का मलाल लेकर जिया जाना..।।
कितना मुश्किल होता है..
उस बड़े सपने का न पूरा होना..
उससे भी मुश्किल होता है..
छोटे सपनों को भी न पूरा कर..
ताउम्र जिया जाना..।।

मगर आप हार नही मानते हो, तो..
आपके सामने हमेशा एक विकल्प होता है..
उसे पूरा करने के लिए..
जुट जा,जी जान लगा दे..
जो कर सकता है,
वो सब कर ले..
इतना कर ले..
की भविष्य में सपने ना पूरे होने का मलाल न रहे..

कितना मुश्किल होता है..
बिना सपनों के जिया जाना..
उससे भी मुश्किल होता है..
सपनों का न पूरा होने का मलाल ले कर ताउम्र जिया जाना..
मगर हमेशा एक विकल्प होता है..
उस अधूरे सपनों के ऊपर मरहम लगाने का..
अगर ये भी न लगा पाया..
तो सच मे ..
कितना मुश्किल है बिना सपनो के जिया जाना..

रविवार, 10 नवंबर 2024

मंजिले मिल ही जाती है..अगर पता हो

हम में से बहुत कम लोग ही होते है,जो अपने मंजिल तक पहुंच पाते है..
इसके अनेक कारण है..
सबसे बड़ा कारण है कि हममें से बहुधा लोगों को पता ही नही है कि जाना(मंजिल) कंहा है..
कुछ लोग अनमने ढंग से शुरुआत करते है,और कुछ रुकावट के कारण हार मान लेते है..।।
मगर कुछ लोग मंजिल पर पहुंच ही जाते है,चाहे कैसी भी रुकावट हो..

एक छोटी सी आपबीती बताता हूँ..



मैं अभी एक मंदिर के प्रांगण में बैठा था..और एक चूहा झाड़ियों से निकलकर बाहर आया और चबूतरे के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगा..
उस चबूतरे पे फिलहाल में अकेले बैठा था..चूहे की आंखे मुझसे मिली..में थोड़ा डरा क्योंकि चूहा थोड़ा बीमारू लग रहा था...और दिमाग मे प्लेग का ख्याल आने लगा..
चूहा अगर 10 सेकंड और मुझे घूरता तो मैं वंहा से हट जाता..
(शायद वो 10 सेकंड सोचा कि क्या करना है.. 
सीख - हम इंसान को भी कोई निर्णय लेने से पहले सोचना चाहिए शायद 30 सेकंड से 2 मिनट..तब शायद सही निर्णय ले पाए)
मगर ये क्या, चूहे ने खुद रास्ता बदल लिया और मेरे पीछे से होते हुए आगे की और बढ़ गया..
जंहा कुछ दूर पे उसका बिल था..
और वो बिल में घुस गया..
और मुझे सोचने को विवश कर छोड़ गया..
(सीख-उस चूहा के सामने में ,मैं उसके काल के ही समान भीमकाय था,मगर वो डरा नही,बल्कि अपने मंजिल तक पहुंचने का निर्णय लिया...और हम इंसान क्या करते है.थोड़ी सी भी परेशानियां आती है,और हम घबरा जाता है..)


हममें से अक्सरहाँ लोग जिंदगी में कठिनाई आने पर क्या करते है..
उस कठिनाई से पल्ला झाड़ने का सोचते है..
या अनमने ढंग से प्रयास करते है..
कुछ लोग होते है..
जो कठिनाई से निकलने के लिए नया मार्ग ढूंढते है,
और मंजिल तक पहुंचते है..।।

अगर मंजिल का पता है,
तो लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो जाता है..
अगर आपकी मंजिल आपके अस्तित्व का निर्णय करती है..
तब तो सबकुछ दांव पे लगा कर मंजिल तक पहुंचना जरूरी हो जाता है..

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

कभी-कभी...

कभी-कभी जान बूझकर हंसता हूँ मैं..
अपने गम को छुपाने के लिए..
कभी-कभी यू ही भीड़ का हिस्सा बन जाता हूँ मैं..
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही पेड़-पौधों से बात करने लगता हूँ मैं..
अपने होने का भान होने के लिए..
कभी-कभी यू ही समुन्द्र का सैर कर लेता हूँ मैं..
अपने अंदर छुपी उद्वेग को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही रात में आसमां को निघारने लगता हूं मैं..
अपने अस्तित्व को जानने के लिए..
कभी-कभी यू ही इस ब्रह्मण्ड के बारे में सोचने लगता हूँ मैं..
इसका उत्तराधिकारी होने के नाते😊..
कभी-कभी खुद के बारे में सोचने का प्रयास करता हूँ मैं..
मगर मैं,का भान होने से पहले ही, कंही भटक जाता हूँ मैं..।
कभी-कभी..यू ही _ख  ले_ हूँ मैं..
अपने मन को बहलाने के लिए..😊