किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..
अगर गलती से..
किसी को फ़ोन मिला भी दिया..
तो उधर से आवाज आती है..
क्या बात है,कॉल किया..।
फिर सोचता हूँ..
क्या जरूरी है...कोई बात हो,
तब ही कॉल करू...
मगर सच तो यही है..
हमसब ने खुद को वैसा ही बना लिया है..
कोई बात हो तब ही कॉल करो..
अन्यथा बात मत करो..
अगर गलती से भी किसी का कॉल आये..
तो पहले, क्या बात है.. मत पूछना..
पहले पूछना, क्या हाल है..।।
कभी-कभी मन होता है..
किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..
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