शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

कभी-कभी...

कभी-कभी जान बूझकर हंसता हूँ मैं..
अपने गम को छुपाने के लिए..
कभी-कभी यू ही भीड़ का हिस्सा बन जाता हूँ मैं..
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही पेड़-पौधों से बात करने लगता हूँ मैं..
अपने होने का भान होने के लिए..
कभी-कभी यू ही समुन्द्र का सैर कर लेता हूँ मैं..
अपने अंदर छुपी उद्वेग को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही रात में आसमां को निघारने लगता हूं मैं..
अपने अस्तित्व को जानने के लिए..
कभी-कभी यू ही इस ब्रह्मण्ड के बारे में सोचने लगता हूँ मैं..
इसका उत्तराधिकारी होने के नाते😊..
कभी-कभी खुद के बारे में सोचने का प्रयास करता हूँ मैं..
मगर मैं,का भान होने से पहले ही, कंही भटक जाता हूँ मैं..।
कभी-कभी..यू ही _ख  ले_ हूँ मैं..
अपने मन को बहलाने के लिए..😊



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