अपने गम को छुपाने के लिए..
कभी-कभी यू ही भीड़ का हिस्सा बन जाता हूँ मैं..
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही पेड़-पौधों से बात करने लगता हूँ मैं..
अपने होने का भान होने के लिए..
कभी-कभी यू ही समुन्द्र का सैर कर लेता हूँ मैं..
अपने अंदर छुपी उद्वेग को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही रात में आसमां को निघारने लगता हूं मैं..
अपने अस्तित्व को जानने के लिए..
कभी-कभी यू ही इस ब्रह्मण्ड के बारे में सोचने लगता हूँ मैं..
इसका उत्तराधिकारी होने के नाते😊..
कभी-कभी खुद के बारे में सोचने का प्रयास करता हूँ मैं..
मगर मैं,का भान होने से पहले ही, कंही भटक जाता हूँ मैं..।
कभी-कभी..यू ही _ख ले_ हूँ मैं..
अपने मन को बहलाने के लिए..😊
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें