इसके अनेक कारण है..
सबसे बड़ा कारण है कि हममें से बहुधा लोगों को पता ही नही है कि जाना(मंजिल) कंहा है..
कुछ लोग अनमने ढंग से शुरुआत करते है,और कुछ रुकावट के कारण हार मान लेते है..।।
मगर कुछ लोग मंजिल पर पहुंच ही जाते है,चाहे कैसी भी रुकावट हो..
एक छोटी सी आपबीती बताता हूँ..
मैं अभी एक मंदिर के प्रांगण में बैठा था..और एक चूहा झाड़ियों से निकलकर बाहर आया और चबूतरे के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगा..
उस चबूतरे पे फिलहाल में अकेले बैठा था..चूहे की आंखे मुझसे मिली..में थोड़ा डरा क्योंकि चूहा थोड़ा बीमारू लग रहा था...और दिमाग मे प्लेग का ख्याल आने लगा..
चूहा अगर 10 सेकंड और मुझे घूरता तो मैं वंहा से हट जाता..
(शायद वो 10 सेकंड सोचा कि क्या करना है..
सीख - हम इंसान को भी कोई निर्णय लेने से पहले सोचना चाहिए शायद 30 सेकंड से 2 मिनट..तब शायद सही निर्णय ले पाए)
मगर ये क्या, चूहे ने खुद रास्ता बदल लिया और मेरे पीछे से होते हुए आगे की और बढ़ गया..
जंहा कुछ दूर पे उसका बिल था..
और वो बिल में घुस गया..
और मुझे सोचने को विवश कर छोड़ गया..
(सीख-उस चूहा के सामने में ,मैं उसके काल के ही समान भीमकाय था,मगर वो डरा नही,बल्कि अपने मंजिल तक पहुंचने का निर्णय लिया...और हम इंसान क्या करते है.थोड़ी सी भी परेशानियां आती है,और हम घबरा जाता है..)
हममें से अक्सरहाँ लोग जिंदगी में कठिनाई आने पर क्या करते है..
उस कठिनाई से पल्ला झाड़ने का सोचते है..
या अनमने ढंग से प्रयास करते है..
कुछ लोग होते है..
जो कठिनाई से निकलने के लिए नया मार्ग ढूंढते है,
और मंजिल तक पहुंचते है..।।
अगर मंजिल का पता है,
तो लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो जाता है..
अगर आपकी मंजिल आपके अस्तित्व का निर्णय करती है..
तब तो सबकुछ दांव पे लगा कर मंजिल तक पहुंचना जरूरी हो जाता है..
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