कमर कस, हुंकार भर।
अपनी कमियों को ललकार कर,
युद्धभूमि में सीना तानकर..
अपने कमियों पर प्रहार कर..।
अपने तरकश से पहला बाण निकालकर,
अपने काम(क्रोध,मोह) पर तुम वार कर।
दूसरे बाण से तुम अपने आलस्य पर प्रहार कर।
और तीसरे बाण से तुम अपने अंतर्द्वंद्व पर वार कर।
अगर इससे भी न हो, तो आखरी अस्त्र इस्तेमाल कर,
पुनर्जीवन(ध्यान) को स्वीकार कर..
फिर से अंकुरित होकर अपने आप को स्वीकार कर..।।
कमर कस,हुंकार भर
अपने कमियों को ललकार कर
युद्धभूमि में सीना तानकर..
अपने कमियों पर प्रहार कर..।
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