मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

उधम सिंह..नाम तो सुना ही होगा...

आखिर वो क्या चीज थी..जिसने हमारे क्रांतिकारियों को अपने प्राण न्योछावर करने के लिए प्रेरित किया होगा..??
ऐसे अनगिनित देशप्रेमी हुए जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति खुशी-खुशी देश के नाम कर दिया..।।
उन्हीं में से एक का,आज जन्मदिन है..
उनका नाम शेर सिंह/उदय सिंह/उधम सिंह/राम मोहम्मद सिंह आजाद था..न जाने और कई नाम थे इनके..।
मगर दुनिया इन्हें उधम सिंह के नाम से जानती है..।।



आपके लक्ष्य प्राप्ति में आपके सिवा और कोई अवरोधक नही है..।।

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में हुआ..
- 3 वर्ष की उम्र में माँ की मृत्यु हो गई...
- 5 वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु हो गई..
- उसके बाद अनाथालय चले गए..
- 13 साल की उम्र में बड़े भाई की निमोनिया से मृत्यु हो गई..
- 17 वर्ष की उम्र में आर्मी की ट्रेनिंग लेना शुरू किया..
जब आर्मी की ट्रेनिंग लेकर वापस आये तो कुछ दिनों बाद जालिवाला हत्याकांड हो गया..


जब इन्हें इस घटना का पता चला तो वंहा पहुंच कर घायलों को पानी और अस्पताल पहुँचाने में सारी रात गुजार दी..।।
अपने सामने मरते हुए लोगों को देखकर इनका मन विचलित हो गया..।।
और इन्होंने अगले ही दिन स्वर्ण मंदिर में स्नान किया और प्रण किया कि इसका बदला में जरूर लूंगा..।।

सचिन सान्याल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि..
इस घटना का समर्थन पंजाब के सिखों ने भी किया,यंही तक नही बल्कि अकाल तख्त में "माइकल ओ डायर" को सम्मानित भी किया गया..।।

             लक्ष्य प्राप्ति का पहला शर्त है -धैर्य

अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए इन्होंने 2 दशक इंतजार किया..।।
इनके बचपन का नाम शेर सिंह था,अनाथलय में इनका नाम उदय सिंह हो गया..।।
इन्होंने विदेश जाने के लिए डुप्लीकेट पासपोर्ट बनाया जिसपर अपना नाम उधम सिंह रखा..।
ये सबसे पहले भारत से युगांडा गए वंहा कुछ दिनों तक कारपेंटर की नॉकरी की..इसके बाद ब्राजील,मेक्सिको होते हुए अमेरिका पहुंचे वंहा उन्होंने 2 रिवॉल्वर और 1 ऑटोमैटिक पिस्टल खरीदी और भारत लेकर आ गए..
जब वो इंडिया पहुंचे तो यंहा आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार करके सश्रम 5 वर्ष की जेल हुई..

जब जेल में ही थे तब इन्हें अपने आदर्श की मौत की खबर लगी जिनसे इन्होंने लाहौर विश्वविद्यालय में मुलाकात की थी..वो भगत सिंह थे..इस घटना ने उन्हें और व्यथित किया..इनके दूसरे आदर्श लाला लाजपत राय थे..।।

जेल से छूटने के बाद इन्होंने यूरोप की यात्रा की.. और 1934 में लंदन पहुंचे और शुरुआत में शेफर्ड बुश गुरुद्वारा में रहना शुरू किया जंहा उनकी मुलाकात ग़दर आंदोलन के नेता 'राजा महेंद्र प्रताप' से मुलाकात हुई..


इनके क्रांतिकारी विचारों के कारण ब्रिटिश समर्थक गुरुद्वारा प्रबंधक इनसे खफा होने लगे जिसकारण उन्होंने गुरुद्वारा छोड़ दिया..।।

इन्होंने लंदन पहुंचकर रेगनॉल x डायर को ढूंढना शुरू किया पता चला कि इसकी मृत्यु हो गई..
फिर उन्होंने माइकल O डायर के बारे में पता लगाया जो रिटायरमेंट की जिंदगी जी रहा था..इन्होंने इसकी रेकी की ये आसान से इसे इसके घर पर मार सकते थे...
मगर इन्होंने 13 मार्च 1940 का दिन चुना, जिस रोज ये केस्टन हॉल में द्वितीय विश्वयुद्ध में मुस्लिमों का अंग्रेज के समर्थन के बारे में बोल रहा था..।।
ये भी वंहा व्यापारी के भेष में पहुंचे और भाषण के दौरान ही अपने रिवॉल्वर से 2 गोलियां माइकल O डायर पे चलाई और उसकी मृत्यु उसी क्षण हो गई और 2 गोलियां जेट लेंड(1919 में भारत का सचिव) के ऊपर मगर भाग्यवश कुर्सी से नीचे गिरने के कारण बच गया,एक गोलियां एक व्यकि के बांह पर तो एक गोलियां एक व्यक्ति के जांघ पर लगी..।।
इनके पास और गोलियां थी मगर तबतक इन्हें पकड़ लिया गया..।।
जब इन्हें पुलिस गिरफ्तार करके ले जा रहा था तो लोगो का कहना है कि वो मुश्कुरा रहे थे..
आखिर क्यों नही मुश्कुराये.. जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दो दशक इंतजार किया वो आज पूरा हो रहा था..।।



स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने जब इनसे नाम पूछा तो अपना नाम "राम मोहम्मद सिंह आजाद" बताया क्यों..??
क्योंकि उस समय भारत मे पाकिस्तान की मांग जोड़ों पे थी..उनकी सहादत शायद हिन्दू-मुस्लिम खाइयों को पाटने में कुछ मदद करती..।।
31 जून 1940 को इन्हें फांसी दे दी गई..।।
और वो खुशी-खुशी अपने मौत का आलीगं करके पूरे भारतभूमि को अपना ऋणी बना गए..।।

भारत सरकार द्वारा इनके अस्थियों को 1974 में लंदन से भारत लाया गया और जालिवाला बाग में इनके अस्थियों को रखा गया ये सोचकर कि वे अब शांति से सो सके...।।


       लक्ष्य अगर पवित्र हो तो प्राप्ति होती ही है..



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