क्यों..
क्योंकि कभी-कभी काम ही कुछ ऐसा कर जाता हूँ..
कभी-कभी खुद पे ही हँसने लगता हूँ..
क्यों..
क्योंकि अपनी मूर्खता का भान होता है...
कभी-कभी चोरी-चुपके खूब रोता हूं..
क्यों...
क्योंकि रोने का वजह में स्वयं होता हूँ..
कभी-कभी यू ही खुली राहों पे निकल जाता हूँ..
क्यों..
क्योंकि स्वयं का होने का अहसास होता है....
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