मैं जब अपने गांव में रहता था..तब कभी-कभी मेरी माँ मुझसे कहा करती थी फूल तोड़ने के लिए..
कभी-कभी में बिना कुछ पूछे तोड़ लिया करता था,मगर कभी-कभी मैं कहता था कि दीदी को बोलो तोड़ लेने के लिए..
तो मेरी माँ कहती थी उसे नही तोड़ना है..।
मैं जिस समाज और परिवार से आता हूँ वंहा सिर्फ आज्ञा का पालन किया जाता है..।
बचपन में अक्सरहाँ ये सवाल जेहन में घूमता रहता था कि आखिर मेरी बहन को फूल क्यों नही तोड़ना है..??
इन सवालों का जबाब बहुत सालों बाद मिला..
गाँव-घर मे इन चीजो के बारे में लोग जिक्र नही करते है,बल्कि इसे अजीब नजरिये से देखते है..।।
बल्कि हमारे शास्त्रों और वेदों में इस लिया महिलाओं को मंदिर,पूजा,सार्वजनिक कार्यो से दूर रहने के लिए कहा गया जिससे हमारी माता और बहने 5 दिन तक आराम कर सके..।
मगर हमलोगों ने इसे एक अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया..।।
इसके प्रति जागरूकता के लिए सर्वप्रथम 2013 में जर्मनी की NGO "WASH United"ने जागरुकता अभियान चलाया..
2014 से पूरे विश्व मे 28 मई को Menstrual Hygiene Day मनाना शुरू किया गया..।
•विश्व बैंक ने 2030 तक "पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड" बनाने का लक्ष्य रखा है..
•विश्व बैंक के अनुसार 500 मिलियन महिलाओं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..।
•वंही भारत मे 35.5 करोड़ महिलाएं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..सिर्फ 12% भारतीय महिला ही सेनेटरी नेपकिन का रेगुलर इस्तेमाल करती है..।
भारत मे इसके प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है,क्योंकि जागरूकता के अभाव में..
- ~12% लड़कियां इसे भगवान का अभिशाप मानती है।
- 4.6% लड़कियों को M.C(मेंस्ट्रुअल सायकल) की जानकारी नही है।
- 61.4% इसे सामाजिक सर्मिन्दगी मानती है।
- 44.5% सेनेटरी नेपकिन(पेड) की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती है..।।
हम भारतीय आज मंगल,चांद पर परचम फहरा रहे है,हम आज 4था सबसे बड़ा GDP वाला देश बन गए..
मगर आज भी हम अपनी माँ-बहनों का ख्याल रखने अक्षम है..।।
क्या आपको पता है..
जब हमारी बहन बेटी 10-12 साल की होती है तो उसे किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है..
- हमारा थोड़ा कपड़ा गीला होता है तो हम असहज हो जाते है,उनमें से कई बच्चीयों को इररेगुलर साईकल से गुजरना पड़ता है..
-पेट के दर्द से जूझना पड़ता है
-मूड स्वेइंग जैसी समस्या एवं चिड़चिड़ापन जैसे स्वभाव से गुजरना पड़ता है..।
इन सब चीजों से पहली बार उसे जूझना होता है..।।
इन सब चीजों से अवगत कराने का दायित्व परिवार और समाज का है..जो धीरे-धीरे अग्रसर हो रही है..
कुछ राज्य सरकार मुफ्त में सेनेटरी नेपकिन स्कूल में आवंटित करती है..।
वंही जन औषधि केंद्र(8700) पर 1₹ में सेनेटरी नेपकिन मिल जाता है..।।
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में समान राष्ट्रीय नीति बनाने को सरकार से कहा था..इस और कार्य किया जाना बाकी है..।।
आज भी शिक्षा,जागरुकता और गरीबी के कारण एक बहुत बड़े वर्ग को इन समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है..।।
खासकर पुरुषों को सर्वाधिक जागरूक होने की जरूरत है,जिससे उनका नजरिया महिलाओं के प्रति बदले..।।
हमसब को मिलकर
-पीरियड फ्रेंडली सोशल एनवायरनमेंट बनाने की जरूरत है
-पीरियड एजुकेशन लेना और देना जरूरी है..
तब ही एक बेहतर समाज का हम निर्माण कर पाएंगे..
https://progenesisivf.com/blog/periods-information-in-hindi/
बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था-
"अगर किसी देश की प्रगति देखना हो, तो वंहा की महिलाओं की स्थिति देखें"