शनिवार, 31 मई 2025

कोई इंसान बुरा नही होता..।।

कोई इंसान बुरा नही होता,बुरा तो हम होते है,
जो किसी को बुरा समझ लेते है..।।
बिना ये जाने की कौन किस परिस्थितियों में है..और किन परिस्थितियों से गुजर रहा है..।।
परिस्थितियां ही अच्छा और बुरा का निर्णय करता है..
न कि हम आप..
किसी को तबतक बुरा न कहें, जबतक आप उसके परिस्थितियों से वाकिफ न हो..।।





शुक्रवार, 30 मई 2025

राहें

हर राह में परेशानियां है..
चाहे हम कोई भी राह चुनें..
भले ही कांटो से सजी राहें हो,
या फिर फूलों से सजी राहें हो..
जोखिम दोनों में ही है..।।
कांटो से सजी राहों को देखकर जो राह बदल लेते है..
वो फूलों से सजी राहों में कंही खो जाते है..।।
ऐसा कोई नही है यंहा..
जिसने फूलों पे सजी राहों पे चलकर नया कीर्तिमान रचा हो..
नया कीर्तिमान रचने के लिए कांटो से भरी राहों से गुजरना ही होगा..।


बुधवार, 28 मई 2025

Word Menstrual Hygiene Day

मैं जब अपने गांव में रहता था..तब कभी-कभी मेरी माँ मुझसे कहा करती थी फूल तोड़ने के लिए..
कभी-कभी में बिना कुछ पूछे तोड़ लिया करता था,मगर कभी-कभी मैं कहता था कि दीदी को बोलो तोड़ लेने के लिए..
तो मेरी माँ कहती थी उसे नही तोड़ना है..।
मैं जिस समाज और परिवार से आता हूँ वंहा सिर्फ आज्ञा का पालन किया जाता है..।
बचपन में अक्सरहाँ ये सवाल जेहन में घूमता रहता था कि आखिर मेरी बहन को फूल क्यों नही तोड़ना है..??
इन सवालों का जबाब बहुत सालों बाद मिला..
गाँव-घर मे इन चीजो के बारे में लोग जिक्र नही करते है,बल्कि इसे अजीब नजरिये से देखते है..।।

बल्कि हमारे शास्त्रों और वेदों में इस लिया महिलाओं को मंदिर,पूजा,सार्वजनिक कार्यो से दूर रहने के लिए कहा गया जिससे हमारी माता और बहने 5 दिन तक आराम कर सके..।
मगर हमलोगों ने इसे एक अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया..।।

इसके प्रति जागरूकता के लिए सर्वप्रथम 2013 में जर्मनी की NGO "WASH United"ने जागरुकता अभियान चलाया..
2014 से पूरे विश्व मे 28 मई को Menstrual Hygiene Day मनाना शुरू किया गया..।


विश्व बैंक ने 2030 तक "पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड" बनाने का लक्ष्य रखा है..
विश्व बैंक के अनुसार 500 मिलियन महिलाओं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..।

•वंही भारत मे 35.5 करोड़ महिलाएं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..सिर्फ 12% भारतीय महिला ही सेनेटरी नेपकिन का रेगुलर इस्तेमाल करती है..।

भारत मे इसके प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है,क्योंकि जागरूकता के अभाव में..
- ~12% लड़कियां इसे भगवान का अभिशाप मानती है।
- 4.6% लड़कियों को M.C(मेंस्ट्रुअल सायकल) की जानकारी नही है।
- 61.4% इसे सामाजिक सर्मिन्दगी मानती है।
- 44.5% सेनेटरी नेपकिन(पेड) की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती है..।।

हम भारतीय आज मंगल,चांद पर  परचम फहरा रहे है,हम आज 4था सबसे बड़ा GDP वाला देश बन गए..
मगर आज भी हम अपनी माँ-बहनों का ख्याल रखने अक्षम है..।।



क्या आपको पता है..
जब हमारी बहन बेटी 10-12 साल की होती है तो उसे किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है..
- हमारा थोड़ा कपड़ा गीला होता है तो हम असहज हो जाते है,उनमें से कई बच्चीयों को इररेगुलर साईकल से गुजरना पड़ता है..
-पेट के दर्द से जूझना पड़ता है
-मूड स्वेइंग जैसी समस्या एवं चिड़चिड़ापन जैसे स्वभाव से गुजरना पड़ता है..।
इन सब चीजों से पहली बार उसे जूझना होता है..।।

इन सब चीजों से अवगत कराने का दायित्व परिवार और समाज का है..जो धीरे-धीरे अग्रसर हो रही है..
कुछ राज्य सरकार मुफ्त में सेनेटरी नेपकिन स्कूल में आवंटित करती है..।
वंही जन औषधि केंद्र(8700) पर 1₹ में सेनेटरी नेपकिन मिल जाता है..।।
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में समान राष्ट्रीय नीति बनाने को सरकार से कहा था..इस और कार्य किया जाना बाकी है..।।

 आज भी शिक्षा,जागरुकता और गरीबी के कारण एक बहुत बड़े वर्ग को इन समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है..।।
खासकर पुरुषों को सर्वाधिक जागरूक होने की जरूरत है,जिससे उनका नजरिया महिलाओं के प्रति बदले..।।

हमसब को मिलकर 
-पीरियड फ्रेंडली सोशल एनवायरनमेंट बनाने की जरूरत है
-पीरियड एजुकेशन लेना और देना जरूरी है..
तब ही एक बेहतर समाज का हम निर्माण कर पाएंगे..

https://progenesisivf.com/blog/periods-information-in-hindi/

बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था-
"अगर किसी देश की प्रगति देखना हो, तो वंहा की महिलाओं की स्थिति देखें"

संघर्ष जीवन का अभिन्न पहलू है...

संघर्ष सबके जिंदगी में है..
शायद ही कोई होगा जिसके जिंदगी में संघर्ष न हो..।
हमसब संघर्ष से बचना चाहते है..
आखिर क्यों..??


अपने आसपास नजर घुमाइए..
हरेक सजीव चीज को देखिए..
चाहे पेड़-पौधे हो या फिर कीड़े मकोड़े से लेकर पंछी,जानवर तक हरेक के जिंदगी में संघर्ष है..
ऐसा कोई नही है जो संघर्ष न कर रहा हो..
मगर हम आप जिसे संघर्ष कहते है,वो अन्य सजीव जगत के लिए सिर्फ एक दिनचर्या है..वो उनके जिंदगी का हिस्सा है..बिना इसके वो नही रह सकता..जिस दिन वो संघर्ष से बचने लगे उस दिन उनका वजूद ही खत्म हो जाएगा..।।
आज हम जिस पेड़-पौधों,कीड़े-मकोड़े, पंछी-जानवर को देख पा रहे है वो इस पृथ्वी पर संघर्ष के कारण ही बचे हुए है..।।

90% से ज्यादा जीव-जंतु,पेड़-पौधे इस पृथ्वी से विलुप्त हो चुके है..।
आखिर क्यों..??
क्योंकि वो संघर्ष नही कर पाए..।।

हमारे पूर्वजों ने भी बहुत संघर्ष किया है..इस कारण आज हम मनुष्य यंहा है..।।
मगर आज हम संघर्ष से बच रहे है..
जो बच रहे है वो नादान है क्योंकि उन्हें पता नही है..कि बिना संघर्ष के किसका उत्थान हुआ है..।।

गीता में श्रीकृष्ण कहते है- बिना कर्म/संघर्ष के कोई नही रह सकता,आप कुछ तो करोगे..।।

मंगलवार, 27 मई 2025

निंदा..एक नजरिया..

अपने आस-पास अक्सरहाँ आपने देखा होगा..
जिन्हें सिर्फ दूसरों की कमियां ही दिखती है..।
ये कौन लोग है..??
आप इन्हें किस नजर से देखते है..??



इस श्रेणी में दो तरह के लोग आते है..
पहले श्रेणी में वो लोग है जो आपके सामने ही आपकी कमियों को उजागर करते है..।
दूसरे श्रेणी में वो लोग है,जो पीठ पीछे आपके कमियों का मजाक उड़ाते है..।

जब आप युवा हो रहे होंगे तो आपको इन दोनों श्रेणियों के लोगों के प्रति आक्रोश और नफरत हो सकता है..।
मगर जब आप प्रौढ़ हो जायेंगें तब आप पहले श्रेणी वालों की कद्र करेंगे और दूसरे श्रेणी वालों की परवाह नही करेंगे..।
मगर अफसोस पहले श्रेणी वालों से हम शुरुआत में ही इतनी दूरियां बना लेते है कि वो हमारी कमियों को देखते हुए भी अनदेखा करने लगते है..।

कबीर दास जी कहते है-
"निदंक नियरे राखिये,आंगन कुटी छवाय,
 बिन पानी,साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय ।।"

मगर वर्तमान में सिर्फ हम आप ही नही,बल्कि प्राचीन काल से ही, हम ऐसे लोगों के प्रति विद्रोही धारणा बना लेते है,जो हमारी निंदा करते है..।

अब वो समय नही, की लोग आपको सामने से निंदा करें..
क्योंकि प्रथम श्रेणी वाले लोग अब डरे हुए है..
क्योंकि उन्हें डर है कि, निंदा या कमियां निकालने पर आगे वाला व्यक्ति कोई गलत कदम न उठा ले..।।

"निंदा अक्सरहाँ हमे जीवन के नींद से जगाने का कार्य करता है,
मगर अफसोस नींद हमें इतनी प्यारी है कि,
हम निंदा करने वालों को अनदेखा कर उनसे मुँह फेर लेते है..।"

इसका क्या परिणाम होता है..??
आप सोचिये..??
सुबह स्कूल/कॉलेज/मीटिंग में जाना हो और आपको कोई उठाने आये और आप उसे झकझोर दे और कहें मुझे अभी नही उठना...
अब आगे क्या होगा..??

निंदा भी जीवन में इसी तरह से काम करता है..
अगर आगे से कोई आपकी निंदा या कमियां गिनाए तो मुस्कुराइए और उन्हें धन्यवाद दीजिये और उन कमियों को दूर कीजिये..।।
और अपने आप को भाग्यवान समझिए कि,
कोई तो है जो आपकी परवाह कर रहा है..।।

रविवार, 25 मई 2025

गमले का फूल..

मैं जैसा हूँ..
मुझे वैसा ही रहने दो..
मुझे मत छेड़ो..
तुम्हें लग रहा होगा कि,तुम मेरी मदद कर रहे हो..
मगर वास्तविकता तो ये है कि..
तुम मुझे कमजोर कर रहे हो..।
मैं जैसे खिल रहा हूँ,
मुझे वैसे ही खिलने दो..।।


तुम मुझे सींचो..
तुम मेरे आसपास से खरपतवार हटाओ..।
बस यही करो..
मगर जब तुम नही रहोगे...
तब क्या होगा..??
कौन सींचेगा..कौन खरपतवार हटाएगा..??

अगर जब तुम मुझे छोड़ के जाओगे..
तब तुम मेरे साथ क्या करोगे..।
किसी और के भरोसे छोड़ के जाओगे..
या फिर किसी को गोद दे के चले जाओगे..
या फिर अपने हाथों से दरिया या फिर मिट्टी में दफन कर जाओगे..
या फिर यू ही कड़कती धूप में तिल-तिल के मरने को छोड़ जाओगे..।।

जब कभी भी ग़र छोड़ के जाना हो..
तो मुझे मानसून की बूंदा-बांदी में छोड़ के जाना..
ये बारिश की बूंद जब मेरे पत्तियों और फूलों पे गिरेंगे..
तो मैं उत्साहित होऊंगा..
और मैं तुम्हें भूल जाऊंगा..।।
फिर जब कुछ महीनों बाद जब बारिश खत्म होगी और कड़कती धूप निकलेगी..
तो मुझे पानी की जरूरत होगी..
और मैं तुम्हें याद करूँगा..
और मुझे,मेरी गलतियों का अहसास होगा..
और मैं मुस्कुराउंगा और तुम्हें दुआएं दूंगा..।।

मैं जैसा हूँ..
मुझे वैसा ही रहने दो..
मुझे मत छेड़ो..
तुम्हें लग रहा होगा कि,तुम मेरी मदद कर रहे हो..
मगर वास्तविकता तो ये है कि..
तुम मुझे कमजोर कर रहे हो..।
मैं जैसे खिल रहा हूँ,
मुझे वैसे ही खिलने दो..।।

बुधवार, 21 मई 2025

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस...

क्या आपको पहली चाय की चुस्की☕ याद है..??

आज "अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस"☕(21 मई) है..।



पहली बार चाय दिवस मनाने का पहल भारत मे "विश्व सामाजिक मंच" के द्वारा 2004 में किया गया और घोषणा किया गया कि हरेक साल 15 दिसंबर को चाय दिवस के रूप में मनाया जाय..इस पहल के बाद अन्य चाय उत्पादक देश भी संगठित होकर 15 दिसंबर को मनाना शुरू किये..

आगे चलकर 2019 से U.N.O(यूनाइटेड नेशन) के द्वारा FAO(फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन) के कहने से 21 मई को "चाय दिवस" के रूप में मनाया जाने लगा....
इस बार की थीम "बेहतर जीवन के लिए चाय☕"


क्या आपको पता है चाय उत्पादन से 13 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है..।
मगर इनकी स्थिति दयनीय है(जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में जुड़े है)..एक तरह से इनकी स्थिति बंधुआ मजदूर की तरह है..।।

चाय☕ दुनिया में सबसे ज्यादा पिये जाने वाले पेय पदार्थ में दूसरे नंबर पर है..तो पहले नंबर पर कौन है🤔..??



क्या आपको चाय के इतिहास के बारे में जानकारी है..
इसका इतिहास कितना पुराना होगा..??
500 साल,1000साल,3000साल,5000साल..
कितना पुराना..??

इसका इतिहास लगभग 5000साल पुराना है..पहली बार चीनी सम्राट शेन नुंग ने इसका इस्तेमाल गलती से किया था..
क्या आपको पता है..
चाय का उत्पादन सर्वाधिक कंहा होता है..??


भारत अपने उत्पादन का 80% उपभोग कर लेता है..
भारत मे सर्वाधिक चाय का उत्पादन असम में होता है लगभग कुल उत्पादन का 52%..।।

क्या आपको चाय☕ की पहली चुस्की याद है..??
आपने चाय के टपरी पे सबसे ज्यादा किसके साथ चाय पिया☕ है..??(मैं एक का नाम लेना चाहूंगा जिसने चाय की टपरी की आदत लगाई..उस प्यारे दोस्त का नाम तरुण है..)
अगर आपको मौका मिले तो आप किसके साथ चाय☕ पीना चाहेंगे..??

चलिए चाय के चुस्कियों के साथ उन सुनहरे दिन को याद कीजिये ..
जिसने आपको सुनहरें यादें दिए है..।।
☕☕☕



मंगलवार, 20 मई 2025

क्या भगवान है...??जरा सोचियेगा..

भारत ही एक ऐसी भूमि है,जंहा इंसान भगवान बन सकता है..
अपने कर्मों के द्वारा..।।
जब हम अपने आदर्शो के आचरणों को अनुसरण नही कर पाते, तो उन्हें भगवान मान लेते है या फिर भगवान का अंश मान लेते है..।



शायद ही भारत का कोई ऐसा कोना हो..जंहा कोई भगवान न हो..भले ही उस कोने में इंसान न मिले मगर भगवान जरूर मिल जायेंगें..।
शायद ही ऐसा कोई जगह हो..जंहा भगवान का भग्नावशेष न हो..भले ही वंहा कोई जीवाश्म मिले या न मिले मगर भगवान का अवशेष जरूर मिल जाएगा..।।

मगर क्या सच में भगवान है..??
जरा सोचियेगा.. 
अच्छा ये बाद में सोचियेगा..।

कुछ सवाल से रूबरू होते है..
हम अपने भगवान को क्या-क्या उपमा देते है..सोचिये
करुणानिधि,दया के सागर,दुखभंजन,परमपिता न जाने और क्या-क्या..
क्या जब आप अपने भगवान को याद करते है तो वो किसी तरह का जबाब या सिग्नल देते है..??
शायद नही..अगर हां, तो आपमें सही बोलने की हिम्मत नही है,क्योंकि आप अभी भी डर रहे है..कंही बुरा न हो जाये..।।
अक्सरहाँ हमारा जबाब होता है हम में वो भाव नही है..इसीलिए शायद हमारी आवाज उन तक नही पहुंचती..।।
अच्छा...ये बात है..।

आप अपने माँ को किसी तरह से भी आवाज दीजिये..
गुस्सा होकर के,प्रेम से,दुखी से,हंस कर के..
हमें 99% उम्मीद है कि हम माँ को किसी तरह से आवाज दे वो जरूर जबाब देती है,चाहे वो कितना भी व्यस्त हो..।।
और आपका भगवान..??

आपको लग रहा है कि मैं पगला गया हूँ..और आपको भी मैं, पगला रहा हूँ..तो आप गलत है..।।

दरसल हम-आप भारत के वास्तविक अध्यात्मिक ज्ञान से रूबरू नही हुए है,या फिर बताया नही गया है..।।
हम वेदांत पढ़ते है,न ही उपनिषद पढ़ते है..
क्योंकि जब हम इसे पढ़ना शुरू करते है तो ये हमारे पुराने अवधारणाओं को चोट पहुँचाता है..और आज मनुष्य इतना सक्षम नही है कि इस चोट को सह पाए..।
हम जिस भगवान को आज पूजते है..उनका जिक्र न वेद में है,न ही उपनिषद में..उनका जिक्र स्मृति ग्रंथों में है,जो सबसे बाद में लिखा गया..ज्यादातर स्मृति ग्रंथ गुप्तकाल में ही लिखा गया..।।

कभी-कभी यूट्यूब और गूगल पर उपनिषद के श्लोक को भी देख और पढ़ लिया कीजिये....क्या पता कब आप मे बदलाव आ जाये और आपके अंदर "अहं ब्रह्मास्मि" का भाव जग जाए..।।

सच में आप ही ब्रह्मा है,आप से ही ये ब्रह्मांड है,बिना आपके इस ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नही है..।
आपको क्या लगता है..सही या गलत..।
आपको अगर गलत लगता है, तो आप गलत है..।।
क्योंकि आपके लिए ये ब्रह्मांड तबतक ही अस्तित्व में है जबतक आप अस्तित्व में है..आप खत्म,आपके लिए ये ब्रह्मांड खत्म..।।

उपनिषदों में बड़ी गूढ़ बातें कही गई है..
ये बातें अगर आप करना शुरू करें, तो आप विक्षिप्त और न जाने क्या-क्या समाज और परिवार ही कहना शुरू कर दे..।।

वो लोग पागल नही थे जिन्होंने महात्मा बुद्ध, महावीर, सुकरात ,मोहमद पैगम्बर,यीशु के ऊपर पत्थर फेंके और यातना दिया..
दरसल उनलोगों को इनकी बात समझ में नही आई..
वास्तविकता ये है कि अभी भी किसी को इनकी बात समझ मे नही आई है..
अगर समझ में आ गया होता तो हम-आप अभी भी उनके झंडे नही ढो रहे होते..
महात्मा बुद्ध ने कहा था-"अप्प दीपो भवः" कितने हुए..।।

वर्तमान में इन अवधारणाओं को तोड़ा भी नही जा सकता क्योंकि इसके ऊपर पूंजीवाद हावी हो चुका है..
भले ही आपको ये मालूम न हो कि दीवाली क्यों मनाया जाता है.. मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि क्रिसमस क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि ईद क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..।।
क्योंकि पूँजीपति ताकतें आपको अब भूलने नही देगी...।।

तो क्या सोचा..
भगवान है...??

ऋग्वेद के 10वे मंडल में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और भगवान के बारे में कुछ कहा गया है..

"को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः । अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥"

आख़िर कौन जानता है,और कौन कह सकता है, यह सब कहाँ से आया और सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई?
देवता स्वयं सृष्टि के बाद जन्मे हैं, तो कौन जानता है कि यह वास्तव में कहाँ से उत्पन्न हुआ है। (ऋग्वेद 10,129,6)

"इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न । यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥७॥"

कहाँ से सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई, कौन था निर्माता, क्या पता उसने इसे बनाया हो,या उसने इसे न बनाया हो। 
निर्माता, जो उच्चतम स्वर्ग से इसका सर्वेक्षण करते है, शायद वह जानते हो, या शायद वह भी नहीं जानते हो (ऋग्वेद, 10,129,7)

ऋग्वेद ने उस भगवान पे भी सवाल उठाया है..
जिस भगवान के बारे में हमारी धारणा है कि इसने ब्रह्मांड को बनाया है..।।
मगर ऋग्वेद के अनुसार इस भगवान की उत्पत्ति भी इस ब्रह्मण्ड की उतपति के बाद हुई है..।।

तो अब आप क्या सोचते है..
भगवान है..??
अगर नही भी है,तो आस्था रखें.. 
क्योंकि भगवान के प्रति आस्था,आपको विपरीत परिस्थितियों से उबरने में मदद करेगा..।।
आस्था और विश्वास ही वो शक्ति है,
जो इंसान को भगवान की और अग्रसर करता है..।
आस्था दिव्य शक्ति के प्रति..विश्वास स्वयं के प्रति..।।








सोमवार, 19 मई 2025

मौन...

मौन सभी समस्याओं का समाधान है..
जितनी बड़ी समस्या हो,उतना लंबा मौन धारण कीजिये...।
और चुप रहना कुछ समस्याओं का हल है,
हरेक समस्याओं का नही..।।



सवाल ये है कि..
आखिर मौन होता क्या है,
क्या चुप रहना मौन है..??
बिल्कुल नही..
तो फिर..??
मौन होके देखिए जबाब मिल जायेंगें..।
2मिनट ही सही,रखके तो देखिए..हां अभी..

हेलो..क्या हुआ..??
क्या आप मौन रह पाए..
अगर हां, तो आप झूठ बोल रहे है..
बुरा मत मानियेगे..क्योंकि आप जब मौन थे, 
तब भी आपके अंदर ढेर सारे विचार चल रहे थे..।।
तो आप ही बताइए..
क्या आप मौन थे..??

तो आखिर मौन कैसे धारण करें..??
आंख बंद करें और बैठ जाये..
तबतक जबतक कोई विचार मन मे न आयें..।
विचारशून्य होना ही मौन है..
मन का शांत होना ही मौन है..
मन से ही मौन की उत्पत्ति हुई है..।
जबतक मन वस में नही होगा तबतक हम मौन नही धारण कर सकते..।।
मन को कैसे वस में करें..??
शुरुआत आंख बंद करके सांस को देखें..।
अगर जाप(मंत्र,नाम) करते है,तो उसे काल्पनिक रूप से अपने भृकुटि पे आंख बंद करके लिखे..।
इससे मन नियंत्रित हो जाएगा..।।

जब मन नियंत्रित हो जाएगा तो खुद-व-खुद मौन धारण हो जाएगा..।।