भारत ही एक ऐसी भूमि है,जंहा इंसान भगवान बन सकता है..
अपने कर्मों के द्वारा..।।
जब हम अपने आदर्शो के आचरणों को अनुसरण नही कर पाते, तो उन्हें भगवान मान लेते है या फिर भगवान का अंश मान लेते है..।
शायद ही भारत का कोई ऐसा कोना हो..जंहा कोई भगवान न हो..भले ही उस कोने में इंसान न मिले मगर भगवान जरूर मिल जायेंगें..।
शायद ही ऐसा कोई जगह हो..जंहा भगवान का भग्नावशेष न हो..भले ही वंहा कोई जीवाश्म मिले या न मिले मगर भगवान का अवशेष जरूर मिल जाएगा..।।
मगर क्या सच में भगवान है..??
जरा सोचियेगा..
अच्छा ये बाद में सोचियेगा..।
कुछ सवाल से रूबरू होते है..
हम अपने भगवान को क्या-क्या उपमा देते है..सोचिये
करुणानिधि,दया के सागर,दुखभंजन,परमपिता न जाने और क्या-क्या..
क्या जब आप अपने भगवान को याद करते है तो वो किसी तरह का जबाब या सिग्नल देते है..??
शायद नही..अगर हां, तो आपमें सही बोलने की हिम्मत नही है,क्योंकि आप अभी भी डर रहे है..कंही बुरा न हो जाये..।।
अक्सरहाँ हमारा जबाब होता है हम में वो भाव नही है..इसीलिए शायद हमारी आवाज उन तक नही पहुंचती..।।
अच्छा...ये बात है..।
आप अपने माँ को किसी तरह से भी आवाज दीजिये..
गुस्सा होकर के,प्रेम से,दुखी से,हंस कर के..
हमें 99% उम्मीद है कि हम माँ को किसी तरह से आवाज दे वो जरूर जबाब देती है,चाहे वो कितना भी व्यस्त हो..।।
और आपका भगवान..??
आपको लग रहा है कि मैं पगला गया हूँ..और आपको भी मैं, पगला रहा हूँ..तो आप गलत है..।।
दरसल हम-आप भारत के वास्तविक अध्यात्मिक ज्ञान से रूबरू नही हुए है,या फिर बताया नही गया है..।।
न हम वेदांत पढ़ते है,न ही उपनिषद पढ़ते है..।
क्योंकि जब हम इसे पढ़ना शुरू करते है तो ये हमारे पुराने अवधारणाओं को चोट पहुँचाता है..और आज मनुष्य इतना सक्षम नही है कि इस चोट को सह पाए..।
हम जिस भगवान को आज पूजते है..उनका जिक्र न वेद में है,न ही उपनिषद में..उनका जिक्र स्मृति ग्रंथों में है,जो सबसे बाद में लिखा गया..ज्यादातर स्मृति ग्रंथ गुप्तकाल में ही लिखा गया..।।
कभी-कभी यूट्यूब और गूगल पर उपनिषद के श्लोक को भी देख और पढ़ लिया कीजिये....क्या पता कब आप मे बदलाव आ जाये और आपके अंदर "अहं ब्रह्मास्मि" का भाव जग जाए..।।
सच में आप ही ब्रह्मा है,आप से ही ये ब्रह्मांड है,बिना आपके इस ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नही है..।
आपको क्या लगता है..सही या गलत..।
आपको अगर गलत लगता है, तो आप गलत है..।।
क्योंकि आपके लिए ये ब्रह्मांड तबतक ही अस्तित्व में है जबतक आप अस्तित्व में है..आप खत्म,आपके लिए ये ब्रह्मांड खत्म..।।
उपनिषदों में बड़ी गूढ़ बातें कही गई है..
ये बातें अगर आप करना शुरू करें, तो आप विक्षिप्त और न जाने क्या-क्या समाज और परिवार ही कहना शुरू कर दे..।।
वो लोग पागल नही थे जिन्होंने महात्मा बुद्ध, महावीर, सुकरात ,मोहमद पैगम्बर,यीशु के ऊपर पत्थर फेंके और यातना दिया..
दरसल उनलोगों को इनकी बात समझ में नही आई..
वास्तविकता ये है कि अभी भी किसी को इनकी बात समझ मे नही आई है..
अगर समझ में आ गया होता तो हम-आप अभी भी उनके झंडे नही ढो रहे होते..
महात्मा बुद्ध ने कहा था-"अप्प दीपो भवः" कितने हुए..।।
वर्तमान में इन अवधारणाओं को तोड़ा भी नही जा सकता क्योंकि इसके ऊपर पूंजीवाद हावी हो चुका है..
भले ही आपको ये मालूम न हो कि दीवाली क्यों मनाया जाता है.. मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि क्रिसमस क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि ईद क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..।।
क्योंकि पूँजीपति ताकतें आपको अब भूलने नही देगी...।।
तो क्या सोचा..
भगवान है...??
ऋग्वेद के 10वे मंडल में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और भगवान के बारे में कुछ कहा गया है..
"को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः । अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥"
आख़िर कौन जानता है,और कौन कह सकता है, यह सब कहाँ से आया और सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई?
देवता स्वयं सृष्टि के बाद जन्मे हैं, तो कौन जानता है कि यह वास्तव में कहाँ से उत्पन्न हुआ है। (ऋग्वेद 10,129,6)
"इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न । यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥७॥"
कहाँ से सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई, कौन था निर्माता, क्या पता उसने इसे बनाया हो,या उसने इसे न बनाया हो।
निर्माता, जो उच्चतम स्वर्ग से इसका सर्वेक्षण करते है, शायद वह जानते हो, या शायद वह भी नहीं जानते हो (ऋग्वेद, 10,129,7)
ऋग्वेद ने उस भगवान पे भी सवाल उठाया है..
जिस भगवान के बारे में हमारी धारणा है कि इसने ब्रह्मांड को बनाया है..।।
मगर ऋग्वेद के अनुसार इस भगवान की उत्पत्ति भी इस ब्रह्मण्ड की उतपति के बाद हुई है..।।
तो अब आप क्या सोचते है..
भगवान है..??
अगर नही भी है,तो आस्था रखें..
क्योंकि भगवान के प्रति आस्था,आपको विपरीत परिस्थितियों से उबरने में मदद करेगा..।।
आस्था और विश्वास ही वो शक्ति है,
जो इंसान को भगवान की और अग्रसर करता है..।
आस्था दिव्य शक्ति के प्रति..विश्वास स्वयं के प्रति..।।
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