शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

चले जा रहा हूँ..

हैं कई राहगीर यंहा..
मगर इनमें से कइयों को अपने मंजिल का पता ही नही..
बस चले जा रहें है..बस चले जा रहें है..।
उन राहगीर में से, मैं भी एक हूँ..
जिसे अपने मंजिल का पता ही नही है..
बस चले जा रहा हूँ,
बस चले जा रहा हूँ..
जाना कंहा है पता ही नही है..
बस चले जा रहा हूँ..।
क्या करूँ की मंजिल का पता चल जाये..
क्या ना करू की मंजिल का पता चल जाये..।
और चल पडू मंजिल की और..
अभी जिस और चल रहा हूँ..
मुझे पता है इस राह से में,मैं अपनी मंजिल तक नही पहुंचूंगा..।
मैं ये तो जानता हूँ कि ये मेरी मंजिल नही है..
मगर मैं ये नही जानता कि मेरी मंजिल क्या है..।।
बस चले जा रहा हूँ..
बस चले जा रहा हूँ..।।

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