रविवार, 6 जुलाई 2025

मन हुआ था..

मन हुआ था, घर जाने को..
मगर फिर अहसास हुआ कि,
घर...घर कंहा है..
पापा के उम्मीदों का सपना तोड़ के आखिर कैसे उनका सामना कर सकूंगा
माँ के अरमानों को बिखेर कर आखिर कैसे सुकून से रह सकूंगा..
समाज की चुभती निगाहों का कैसे सामना कर सकूंगा..।।
सब कुछ भूल गया था मैं..
क्योंकि इतना थक चुका था मैं,
की दो पल घर पर बिताने को जी चाह रहा था..
रेलवे से फ्लाइट तक कि टिकट कटा कर जाने को तैयार था मैं..।।
फिर सारी उम्मीदों पे पानी फिर गया..
जब कोई अपना ने मुझे मेरा औकाद बताया..।।
किस मुँह लेकर घर जाऊँ..।

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