बुधवार, 3 जनवरी 2024

हारता तो वो है..

हारता तो वो है..
जो मर चुका है..


जबतल्क सांस है..
तबतल्क कोई कैसे हार सकता है..
सांसे जबतल्क चल रही हो..
मैदान छोड़ मत भागो तुम...
क्या पता नियति ने..
हार के पहाड़ पे ही..
जीत का यशगान लिखा हो..।।

जबतल्क सांस है..
तबतल्क लड़ते रहो अपने अंतर्द्वंद से...
पढ़ते रहो उनसबको..
जो तुम्हारे हार का उत्सव मना रहे है..


जबतल्क सांस है,
तबतल्क चलते रहो,बढ़ते रहो, सही राह पर..
मंजिलें मिल ही जाएगी..

क्या पता किस मोर पर सफलता का सोपान हो..
अगर तुम हार कर रुक गए...
तो उस मोड़ का क्या होगा..??
जिस मोड़ पे सफलता राह जोह रही है..।।

हारना और जितना प्रकृति का नियति है..
मगर प्रकृति का असली नियति है..
खिलना..
तो फिर भला हार कर...
कैसे कोई प्रकृति की नियति को साकार कर सकता है..

हारता तो वो है..
जो मर चुका है...।

जबतल्क सांस है..
तबतल्क कोई कैसे हार सकता है..
सांसे जबतल्क चल रही हो..
मैदान छोड़ मत भागो तुम...
क्या पता नियति ने..
हार के पहाड़ पे ही..
जीत का यशगान लिखा हो..।।



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