क्योंकि मैं जीत के लिए प्रयास ही नही करता..
बार-बार..
इसिलिय ही, मैं हार जाता हूँ बार-बार..।।
कोई नही है यंहा..
इस भवर से निकालने को..
स्वयं के सिवा..
क्योंकि...
वो स्व ही है,जो शिव है..
वो शिव ही है,जो स्व है..।
उस स्व को तुम पहचान लो..
और इस भवर से,
स्वयं को तुम निकाल लो..।।
तुम इस ब्रह्मांड में..
कंही और किसी और स्वरूप में तो हो सकते थे..
तुम यंही,इस स्वरूप में क्यों हो..??
इसका कोई जबाब नही..।
मगर तुम वर्तमान परिस्थिति में क्यों हो..
इसका जबाब तुम स्वयं हो..।
स्वयं को तुम संवार लो..
स्वयं को तुम निखार लो,
क्या पता फिर कभी अवसर मिले या ना मिले..
क्योंकि हर रात के बाद सुबह तो होती है..
मगर हरेक सुबह एक जैसी नही होती..।
स्वयं को तुम संवार लो..
स्वयं को तुम निखार लो..।।
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