बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

इस दीवाली.."अप्प दीपो भवः"

महात्मा बुद्ध के अंतिम क्षणों में उनके शिष्य आंनद ने उनसे पूछा- महात्मन हमलोगों के लिए क्या संदेश है..
उन्होंने कहा- "अप्प दीपो भवः"
यानी अपना दीपक स्वयं बने...।।

मगर वर्तमान में क्या हो रहा है..
आप जरा सोचिए बचपन से लेकर अबतक आप दूसरों के विचारों से ही प्रभावित है,आप आज जो कुछ कर भी रहे है कंही न कंही उसपे दूसरों का प्रभाव ही है..

वास्तविकता तो ये है कि वर्तमान समय मे हम खुद से कुछ निर्णय लेने की स्थिति में है ही नही..।।

आपको अगर कुछ खरीदना है तो आप कमेंट और रिव्यु देखते है,इंस्टा पर रील देखकर फैशन का चयन करते है..
Tv और मोबाइल पे ऐड देखकर आप समान खरीदते है..।।

जरा सोचिए आपने आखरी बार कब अपनी पंसंद की वस्तु खरीदी थी..जिसके लिए आपको ऐड और रिव्यु नही देखना पड़ा था..।।

वर्तमान में हमारी नई जेनरेशन पूर्णतया दूसरों पे आश्रित होते जा रहे है..
वो कुछ भी निर्णय करने की स्थिति में आज नही है..
वो क्या पहनेंगे,क्या खाएंगे,क्या पियेंगे,क्या करेंगे..
इसका निर्णय कोई और कार रहा है..
अब ये स्थिति ग्रामीण क्षेत्र में भी अपना विशालकाय रूप धारण करने को अग्रसर है..।।

इसलिय इस दीवली एक दीप अपने लिए जलाए..
और स्वयं ही "अप्प दीपो भवः " होए..

एक नया कीर्तिमान रचना है..

सब जिंदगी के किसी न किसी मुकाम पे पहुंच गए..
मैं जंहा था,वंही ही रह गया..
एक समय था जब मैं खुद से कहा करता था..
मैं इतनी लंबी छलांग लगाऊंगा की मैं सबसे आगे निकल जाऊंगा..
और सबसे आगे निकल जाऊंगा..।

आज फिर खुद को देखता हूँ..
तो खुद को वंही पाता हूँ,
जंहा सालों पहले थे..
और जो मुझसे आगे थे,
वो सच में बहुत आगे निकल गए..।।

मेरा होड़ किसी से नही है स्वयं के सिवा..
मैं खुद को ही नही हरा पा रहा हूँ..
तो औरों की बात क्या है..।।

एक लंबी छलांग तो लगानी है..
अपनी सारी असफलताओं को ठेंगा दिखाकर..
एक नया कीर्तिमान रचना है..।।

क्योंकि..
मैं कल भी आशावादी था,
मैं आज भी आशावादी हूँ,
मैं कल भी आशावादी रहूंगा..😊


रविवार, 27 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति...मालूम नही तुम क्यों..

मालूम नही,तुम क्यों याद आती हो..
जब भी याद आती हो..
आंखें नम करके चली जाती हो..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।

जब भी मैं एकाकी महसूस करता हूँ
(जब भी कुछ ज्यादा हो गया😊)
सहसा तुम्हारा ख्याल आता है..
शायद मैं तुम्हारा ऋणी हूँ..
इसीलिए शायद तुम याद आती हो..।

वास्तविकता तो ये है..
की सालों से तुम्हारा कोई खबर नही है..
इस डिजिटल युग मे भी तुम,
न जाने कंहा गुम हो..।

अब तुम्हारी याद भी..
अरब सागर के सुनामी की तरह ही आती है..
मगर फिर भी..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।

वैसे भी हम कभी पैंजिया थे ही नही..
कुछ उम्मीदें जगी भी,
मगर जगने से पहले ही हम,
अंगारलैंड और गौंडवानलैंड में बट गए..
मैं तुम्हारा पीछा करते-करते 
दक्षणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध मैं पहुंच गया..
मगर तुम्हारा कुछ पता ही नही चला..
मगर तुम्हारा अस्तित्व है अभी भी,
इसीलिये तो भूकंप की तरह,
मेरे अंदर उद्गार मारती हो कभी-कभी..।।
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।



क्या आप भी संडे को आराम फरमाते है..

आपने अक्सरहाँ सुना होगा..
कल तो संडे है..अपना दिन है..
मगर अफसोस इस दिन को हम अपना नही बना पाते...
आपको कोई ऐसा संडे याद है,जो आपके लिए खाश हो..
शायद अधिकांश का जबाब नही में ही होगा..
क्यों...??
क्योंकि संडे को हम आराम फरमाते है..।
अब स्कूल के बच्चे ही नही बल्कि बड़े भी संडे को देर तक आराम फरमाते है..
अब ये चलन गाँव तक पहुंच गया है..
क्योंकि अब हमारी निर्भरता कृषि पर से कम जो होती जा रही है..।।



क्या आपको पता है...
संडे को छुट्टी देने की शुरुआत कब और क्यों हुई..??

आज से लगभग 175 साल पहले तक संडे को छुट्टी के रूप में मनाने का रिवाज नही था..
सन 1843 में पहली बार ब्रिटेन के गवर्नर ने स्कूल में संडे को छुट्टी देने की घोषणा की...
जिससे बच्चे कुछ नया क्रिएटिव कर सके..
मगर आप ही बताए कितने बच्चे आज क्रिएटिव काम करते है या फिर हम बच्चों को करने देते है..😊

भारत मे संडे की छुट्टी की शुरुआत की मांग, मजदूर नेता मेधाजी लोखंडे ने 1857 में की, और इनकी मांग को अंग्रेजो ने 10 जून 1890 की स्वीकार कर लिया...
और सबके लिए संडे की छुट्टी घोषित कर दिया गया..।।

मगर वास्तविकता तो ये है कि,
 संडे तो गुलामों के लिए होता है..
 राजा के लिए संडे तो कुछ नया करने के लिए एक   सुनहरा  अवसर  होता है..
 निर्णय आपको करना है..
 संडे को गुलामों की तरह जाया करना है,
 या फिर राजा की तरह सदुपयोग...😊

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

हम स्वयं ही..

हम स्वयं ही अपना उद्धारक और विनाशक है..
हम आज जिस परिस्थिति में  है,
उसके लिए स्वयं और खुद स्वयं ही जिम्मेवार है..।
मजे की बात ये है कि हम जब चाहै, 
तब अपनी परिस्थितियों को बदल सकते है..
मगर अफसोस हम जिस परिस्थिति में है उसमें रहने के आदि हो जाते है,और उसे ही सत्य मान लेते है..।

मगर वास्तविकता ये है कि..
इस जगत में कुछ भी सत्य नही है..।
सिर्फ और सिर्फ स्वयं के सिवा..।।
शंकराचार्य कहते है:-
" ब्रह्म सत्यह जगत मिथ्या,जीवो ब्रह्मो नापरः"
 ब्रह्म सत्य है,जगत मिथ्या है,और जीव ही ब्रह्म है,और इसके   सिवा कुछ भी नही...







रविवार, 20 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति..

कहते है खोजो तो भगवान मिल जाते है..
मगर इक तुम हो..
जो मिलने का नाम ही नही लेते...।
कंहा हो..
कैसे हो..
कुछ भी पता नही..।
मगर जंहा भी हो,
खुश रहो..।।
दुनिया बहुत छोटी है..
कंही न कंही मिल ही जायेंगे..।।





रविवार, 13 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति..आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

वंही जंहा पहले तुम्हें ढूंढने को जाया करता था..

फेसबुक और इंस्टा पर..

आज भी वही हुआ जो पहले होता आया है..

आज फिर तुम नही मिली..

ये शायद आखरी बार था..

अब तुम्हें नही ढूंढूंगा..

तुम्हे ढूंढते वक़्त यही ख्याल आ रहा था..

आखिर तुम याद ही क्यों आई..

शायद तुमने याद किया होगा..

इसीलिए तुम याद आई..।।

कैसे बताऊँ तुम्हें की, 

कितना प्यार करता हूँ..

तुम्हें याद करते ही आंखें नम हो जाती है..

और चेहरे पे मुस्कान आ जाती है..

आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

वंही जंहा पहले तुम्हें ढूंढने को जाया करता था..।।

शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

विजयदशमी मनाने का अभिप्राय..

हम सालों से नही सदियों से विजयादशमी मनाते आ रहे है..
मगर आज तक कुछ सीख नही पाए है..
हम आज भी वंही है,जंहा सदियों पहले थे..
भले ही हम बाहर से कितने भी बदल गए है..
मगर अंदर से आज भी हम वैसे ही है..
अगर समाज और कानून का डर न होता तो हरेक इंसान का विकृत स्वरूप देखने को मिलता..।।

ऐसा नही है कि हम खुद को बदलना नही चाहते, हम ताउम्र प्रयासरत रहते है..
मगर कुछ ही लोग खुद को बदल पाते है,और देवत्व को धारण करते है..

हम सब जब विजयदशमी की बात करते है..
तो हमारे सामने राम और रावण का चेहरा उभरता है..
मगर विजयदशमी का तात्पर्य है कि हम अपने 10 अवगुणों पे विजय पाये..
ये 10 अवगुण क्या है..शायद हमें पता भी नही है मगर हम विजयदशमी मनाते आ रहे है..
हमसब इस 10 अवगुणों के शिकार है...
ये 10 अवगुण है...
काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार,अस्तेय,द्वेष,घृणा,व्यभिचार, पक्षपात..


शुरुआत के 5 से छुटकारा पाना बहुत दुष्कर है..
क्योंकि जिसतरह हम वस्त्र को धारण किये होते है,उसी तरह ये अवगुण हमारे इंद्रियों को धारण किये हुए है..
क्योंकि ये अवगुण स्वतः घटित हो जाता है,और हमें पता नही चलता..

ऐसा नही है कि इससे छुटकारा नही पाया जा सकता है..
सबसे पहले तो हमें अपने अवगुणों को स्वीकारना होगा..
जबतक इसे स्वीकारेंगे नही तबतक इससे छुटकारा नही पा सकते..

हमलोगों में से अधिकांश लोगों को गुस्सा आता है,मगर इसका कारण हम दूसरों को मानते है..
कई लोग अहंकार से लैस होते है,मगर वो अनभिज्ञ होते है..
कभी-कभी सहसा ही द्वेष भावना जागृत हो जाता है,और हमें पता नही चलता..

इन अवगुणों को पहचानना भी बड़ा दुष्कर है..
क्योंकि सब इस अवगुणों से पीड़ित है..
इसीलिये पता नही चलता..

मगर जब इसके कारण बुरा परिणाम घटित होता है,तो वो ताउम्र साथ रहता है...

इसीलिए शुरुआत में ही अपने अवगुणों को पहचाने..
और इससे छुटकारा पाने की कोशीश करें..
आखिर कैसे छुटकारा पाए..??
सबसे पहले अपने अवगुणों को कॉपी पे लिखें..
इसके कारण क्या-क्या नुकसान हुए है, उसे भी लिखे..
देखिए लिखते ही इन अवगुणों से छुटकारा मिलना शुरू हो जाएगा..

इस विजयदशमी उन 10 अवगुणों को पहचाने और अपने अंदर से दूर करें..
तब ही विजयदशमी मनाने का अभिप्राय है..
अन्यथा हम सदियों से मनाते ही आ रहे है...।।



शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

सफलता के प्रेरणास्रोत अमिताभ बच्चन

जिंदगी कभी एक समान नही रहती..
इसमें उतार चढ़ाव आता ही रहता है..
कुछ लोग इस उतार-चढ़ाव से घबरा जाते है..
और कंही खो जाते है..
और कुछ लोग इसका सामना करके नए कीर्तिमान रच देते है..
उन्ही में से एक सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी है जिनका आज 82 वा जन्मदिन है..



आज भी वो भारत के आम युवाओं से ज्यादा काम करते है..
सिर्फ काम ही नही बल्कि अपने काम से प्यार करते है..
और अपने नैतिक विचार और व्यवहार के कारण हरेक भारतीयो के दिल मे अपना जगह बनाये हुए है..।।

उनके जिंदगी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है..
एक समय था जब वो सफलता के ऊंचाइयों पे पहुंच गए थे,और इनके आस-पास कोई नही था..
फिर एक समय आया जब ये असफलता के इतनी गहराइयों तक पहुंच गए थे कि इनकी मदद करने वाला तक कोई नही था..
इन्होंने हिम्मत नही हारी बल्कि जिंदगी की दूसरी पारी शुरुआत की..
कभी डायरेक्टर जो इनका चक्कर लगाया करता था..बुरे समय मे इन्हें डायरेक्टर का चक्कर लगाना पड़ा हरेक जगह से खाली हाथ ही लौटना पड़ता था..
यंहा तक कि यश चोपड़ा ने काम के जगह चेक दिया इन्होंने लेने से इंकार कर दिया और कहा अगर कोई काम हो तो दीजिये..

फिर काम के ही तलाश में पहुंच गए छोटे पर्दे तक  और नया इतिहास रच दिया "कौन बनेगा करोड़पति" शो करके..
और फिर अबतक पीछे मुड़ के नही देखा..और ये यात्रा अब तक जारी है..

वो वास्तव में हीरो है..
दरसल हीरो वो होता है जो समाज मे बदलाव लाता है..
और वो अपने कार्यों से ला रहे है..
हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते है..
सबसे पहले तो हम उनसे सीख सकते है कि कैसे बात की जाती है..चाहे बड़े हो या छोटे सबके साथ आदरपूर्वक बात की जानी चाहिए..
जिंदगी में भले ही कितनी बुरी परिस्थिति हो हार ना माने..
अगर आप डटे रहेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी..
काम चाहे कोई भी हो..अगर वो आपकी जरूरतों को पूरा करता हो,तो अपने काम से प्यार करें..
परिवार और समाज के प्रति जो हमारा दायित्व है उसे भी पूरा करना हमारा कर्तव्य है..
अपने आर्थिक हित के लिए अपने नैतिकता को दांव पर नही लगाए(उन्होंने कभी भी धूम्रपान का ऐड नही किया)
सबसे बड़ी बात अगर आज हम अमिताभ बच्चन को जानते है तो क्यों..क्योंकि वो आज भी कार्यरत है..
जबतक जिंदगी है,तबतक कार्य करते रहें अन्यथा कोई याद नही करेगा..
आज की जेनरेशन उनके दौर के कितने कलाकार को जानते है शायद एक को भी नही..

इसीलिए अगर जिंदा है तो चलते रहे...
और अपने जीवंतता का प्रमाण देते रहे..
अन्यथा सिर्फ दुनिया ही नही बल्कि अपने भी भूल जाते है..



गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

भारत के रत्न "रतन टाटा"..

कुछ सुबहें पूरी फिजा को ग़मगीन कर देती है..
आज की सुबह कुछ वैसी ही थी..
मानो पूरी प्रकृति मौन हो..
मुंबई के बादलों को शायद पता था..
इसीलिए बादलों की छांव ने एकदिन पहले से ही मुम्बई को ढक दिया था..
और सिसक-सिसक कर बूंदे गिरो रहा था..
क्योंकि एक रत्न जो भारत को हरेक क्षेत्र में अग्रणी और उसके सम्मान के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए सबसे अग्रणी रहता था..
वो चुपचाप सबको छोड़के जाने वाला था.।।

रतन टाटा भारत के वो रत्न थे,जिनसे सब प्यार करते थे..वो आज इस प्रकृति में विलीन हो गए..


टाटा सिर्फ नाम नही बल्कि भारत का गौरव है..
भारत जिस-जिस क्षेत्र में पीछे था..
उस क्षेत्र में टाटा ने अग्रणी भूमिका निभाई और दूसरे कंपनियों के लिए पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाई..
चाहे वो लक्ज़री ब्रांड हो(लैक्मे,टाइटन),या फिर IT,स्टील,लक्सरी गाड़ियां, लक्सरी होटल,उन सभी क्षेत्र में टाटा ने भारत को विश्व मे पहचान दिलाई..
टाटा को ग्लोबली पहचान दिलाने में रतन टाटा का अहम योगदान था..



रतन टाटा का जन्म मुम्बई में 28 दिसंबर 1937 को हुआ इनके पिता नवल टाटा और माँ सोनू टाटा थे..
जब ये 10 साल के थे तो इनके माता-पिता का तलाक हो गया जिसके बाद इनकी परवरिश इनकी दादी नावजबाई टाटा ने की
इन्होंने शुरुआती पढ़ाई मुम्बई से ही किया और इन्होंने कॉर्नवाल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर में स्नातक किया..



1961 में टाटा स्टील में काम करना शुरू किया.. फिर इनके चाचा J.R.D TATA ने घाटे में चल रही कंपनी Nelco का कमान दिए इस कंपनी को दो साल में ही घाटे से उबारकर मुनाफे में ला दिया।(और इसी समय TCS का बीज इन्होंने अपने अंदर बो दिया..जो आज वटवृक्ष बन चुका है..जिससे स्वंतंत्र होकर कई वृक्ष(इंफोसिस,HCL etc) पूरे विश्व मे अपना परचम लहरा रहे है)


1991 में  J.R.D Tata ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया  जो 2012 तक बने रहें..
इन्होंने अपने कार्यकाल में टाटा समहू का वैश्वीकरण किया..और अपने 21 साल के कार्यकाल में टाटा समूह के राजस्व को 40 गुणा बढ़ाया और लाभ 50 गुणा बढ़ाया..।।
और आज टाटा समूह अपने राजस्व का 50% अंतराष्ट्रीय बाजार से अर्जित करता है..।।



रतन टाटा ने अपने स्तर पर कई छोटे स्टार्टअप कंपनी को सपोर्ट किया चाहे वो स्नैपडील हो या ओला कैब और ढेर सारी कंपनियां जिसे उन्होंने अपने स्तर पर सपोर्ट किया..।।

रतन टाटा सच में एक संत थे..
जिन्होंने अपने सारे गमों को अपने अंदर दफन करके देश और समाज के कल्याण के लिए सबकुछ न्यौछावर कर दिया..
 
- उन्होंने जिस विश्वविद्यालय से पढ़ा (कॉर्नेल विश्वविद्यालय) उसे 2008 में 50 मिलियन $ दान दिया जो अब तक के इतिहास में किसी विश्वविद्यालय को इतना बड़ा दान नही दिया गया है..
-कोरोना काल मे सर्वाधिक दानदाताओं में सबसे अग्रणी थे..



वास्तविकता तो ये है कि उनका जन्म ही देने के लिए हुआ था..
टाटा ग्रुप आज भी अपने लाभ का 60% चैरिटी करता है..।

रतन टाटा के जिंदगी में भी कई मोड़ आये मगर वो हारे नही..
10 साल के उम्र में ही माता-पिता का तलाक..
अमेरिका में जॉब के दौरान जिससे प्रेम किया उस रिश्ते को लेकर परिवार खुश नही था जिस कारण उससे शादी नही किया और ताउम्र कुँवारे ही रहे..
2011 में उन्होंने कहा था "मैं चार बार विवाह के निकट पहुंचा किंतु प्रत्येक बार किसी भय या किसी अन्य कारण से पीछे हट गया"..(शायद माता-पिता का तलाक या अपने प्रेम के प्रति सम्मान रहा हो)

इनका जिंदगी भी एकांकी भरा था मगर उन्होंने इसे अपने ऊपर हावी नही होने दिया..

इन्होंने पूरे वसुधा को ही अपना कुटुंब मान लिया..
इसीलिये तो आज की सुबह उनके निधन की खबर सुनकर पूरा वसुधा ग़मगीन हो गया..।।



रविवार, 6 अक्टूबर 2024

हे प्रभु अब हार चुका हूं..

जिंदा हूँ..
सांसे चल रही है..
ये काफी है..
फिर से खड़े होने के लिए..
और कुछ कर गुजरने के लिए..।।

मगर मर चुका हूं..
बस सांसे चल रही है..
और दिन बिताए जा रहा हूं..
सुबह से रात, और रात से सुबह होती जा रही है..
और यू ही जिंदगी जाया किये जा रहा हूँ..।।

मालूम नहीं कब..
जिंदगी के महत्ता का भान होगा..
और खुद पे गुमान होगा..
और उस प्रकृति का मुझपे अहसान होगा..।।

आधा जिंदगी यू ही जाया कर चुका हूं..
बची आधी जिंदगी को भी जाया किये जा रहा हूँ..
मालूम नही कब वास्तविकता का भान होगा..
और स्वयं के अंदर बदलाव होगा..

सच तो ये है कि..
सबकुछ का भान होकर भी अनजान हूँ मैं..
अपने हरेक परिस्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार हूं मैं..
अपनी कमजोर इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति के कारण बेहाल हूं मैं..
अपने आलस्य और वासनाओं का गुलाम हूं मैं..

मालूम नही कैसे इससे पार पाऊंगा..
अपने आलस्य और वासनाओं को पार कर कैसे स्वयं का जीर्णोद्धार करूँगा..



हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..
भटक चुका हूं
इस मायावी दुनिया मे..
धस चुका हूं
कुकर्मो के दलदल में..
खुद से तो बहुत प्रयास किया..
मगर हर बार खड़ा हुआ 
और हर बार गिर गया..
हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..


गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024

मेरी माँ

क्या खुदा है..??
मालूम नही...
मगर मेरे लिए है..
मैं जितनी दफा याद करता हूँ..
मेरी माँ का फोन आ जाता है..।।
और मेरी खैरियत पूछ कर ..
फिर फोन काट देती है..।।

मैं ही नकारा हूँ..
जो याद करके भी..
फोन नही कर पाता हूँ..।।

शायद उस खुदा के साथ भी यही होता होगा..
उसके चाहने वाले भी..
उसे याद करके उसके पास नही जा पाते होंगे..
उस खुदा का दिल माँ की तरह थोड़े ही होगा..
जो खुद ही हर बार कॉल कर देती है.. ।।