आपने अक्सरहाँ सुना होगा..
कल तो संडे है..अपना दिन है..
मगर अफसोस इस दिन को हम अपना नही बना पाते...
आपको कोई ऐसा संडे याद है,जो आपके लिए खाश हो..
शायद अधिकांश का जबाब नही में ही होगा..
क्यों...??
क्योंकि संडे को हम आराम फरमाते है..।
अब स्कूल के बच्चे ही नही बल्कि बड़े भी संडे को देर तक आराम फरमाते है..
अब ये चलन गाँव तक पहुंच गया है..
क्योंकि अब हमारी निर्भरता कृषि पर से कम जो होती जा रही है..।।
क्या आपको पता है...
संडे को छुट्टी देने की शुरुआत कब और क्यों हुई..??
सन 1843 में पहली बार ब्रिटेन के गवर्नर ने स्कूल में संडे को छुट्टी देने की घोषणा की...
जिससे बच्चे कुछ नया क्रिएटिव कर सके..
मगर आप ही बताए कितने बच्चे आज क्रिएटिव काम करते है या फिर हम बच्चों को करने देते है..😊
भारत मे संडे की छुट्टी की शुरुआत की मांग, मजदूर नेता मेधाजी लोखंडे ने 1857 में की, और इनकी मांग को अंग्रेजो ने 10 जून 1890 की स्वीकार कर लिया...
और सबके लिए संडे की छुट्टी घोषित कर दिया गया..।।
मगर वास्तविकता तो ये है कि,
संडे तो गुलामों के लिए होता है..
राजा के लिए संडे तो कुछ नया करने के लिए एक सुनहरा अवसर होता है..
निर्णय आपको करना है..
संडे को गुलामों की तरह जाया करना है,
या फिर राजा की तरह सदुपयोग...😊
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