मैं जंहा था,वंही ही रह गया..
एक समय था जब मैं खुद से कहा करता था..
मैं इतनी लंबी छलांग लगाऊंगा की मैं सबसे आगे निकल जाऊंगा..
और सबसे आगे निकल जाऊंगा..।
आज फिर खुद को देखता हूँ..
तो खुद को वंही पाता हूँ,
जंहा सालों पहले थे..
और जो मुझसे आगे थे,
वो सच में बहुत आगे निकल गए..।।
मेरा होड़ किसी से नही है स्वयं के सिवा..
मैं खुद को ही नही हरा पा रहा हूँ..
तो औरों की बात क्या है..।।
एक लंबी छलांग तो लगानी है..
अपनी सारी असफलताओं को ठेंगा दिखाकर..
एक नया कीर्तिमान रचना है..।।
क्योंकि..
मैं कल भी आशावादी था,
मैं आज भी आशावादी हूँ,
मैं कल भी आशावादी रहूंगा..😊
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