मगर आज तक कुछ सीख नही पाए है..
हम आज भी वंही है,जंहा सदियों पहले थे..
भले ही हम बाहर से कितने भी बदल गए है..
मगर अंदर से आज भी हम वैसे ही है..
अगर समाज और कानून का डर न होता तो हरेक इंसान का विकृत स्वरूप देखने को मिलता..।।
ऐसा नही है कि हम खुद को बदलना नही चाहते, हम ताउम्र प्रयासरत रहते है..
मगर कुछ ही लोग खुद को बदल पाते है,और देवत्व को धारण करते है..
हम सब जब विजयदशमी की बात करते है..
तो हमारे सामने राम और रावण का चेहरा उभरता है..
मगर विजयदशमी का तात्पर्य है कि हम अपने 10 अवगुणों पे विजय पाये..
ये 10 अवगुण क्या है..शायद हमें पता भी नही है मगर हम विजयदशमी मनाते आ रहे है..
हमसब इस 10 अवगुणों के शिकार है...
ये 10 अवगुण है...
काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार,अस्तेय,द्वेष,घृणा,व्यभिचार, पक्षपात..
शुरुआत के 5 से छुटकारा पाना बहुत दुष्कर है..
क्योंकि जिसतरह हम वस्त्र को धारण किये होते है,उसी तरह ये अवगुण हमारे इंद्रियों को धारण किये हुए है..
क्योंकि ये अवगुण स्वतः घटित हो जाता है,और हमें पता नही चलता..
ऐसा नही है कि इससे छुटकारा नही पाया जा सकता है..
सबसे पहले तो हमें अपने अवगुणों को स्वीकारना होगा..
जबतक इसे स्वीकारेंगे नही तबतक इससे छुटकारा नही पा सकते..
हमलोगों में से अधिकांश लोगों को गुस्सा आता है,मगर इसका कारण हम दूसरों को मानते है..
कई लोग अहंकार से लैस होते है,मगर वो अनभिज्ञ होते है..
कभी-कभी सहसा ही द्वेष भावना जागृत हो जाता है,और हमें पता नही चलता..
इन अवगुणों को पहचानना भी बड़ा दुष्कर है..
क्योंकि सब इस अवगुणों से पीड़ित है..
इसीलिये पता नही चलता..
मगर जब इसके कारण बुरा परिणाम घटित होता है,तो वो ताउम्र साथ रहता है...
इसीलिए शुरुआत में ही अपने अवगुणों को पहचाने..
और इससे छुटकारा पाने की कोशीश करें..
आखिर कैसे छुटकारा पाए..??
सबसे पहले अपने अवगुणों को कॉपी पे लिखें..
इसके कारण क्या-क्या नुकसान हुए है, उसे भी लिखे..
देखिए लिखते ही इन अवगुणों से छुटकारा मिलना शुरू हो जाएगा..
इस विजयदशमी उन 10 अवगुणों को पहचाने और अपने अंदर से दूर करें..
तब ही विजयदशमी मनाने का अभिप्राय है..
अन्यथा हम सदियों से मनाते ही आ रहे है...।।
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