सांसे चल रही है..
ये काफी है..
फिर से खड़े होने के लिए..
और कुछ कर गुजरने के लिए..।।
मगर मर चुका हूं..
बस सांसे चल रही है..
और दिन बिताए जा रहा हूं..
सुबह से रात, और रात से सुबह होती जा रही है..
और यू ही जिंदगी जाया किये जा रहा हूँ..।।
मालूम नहीं कब..
जिंदगी के महत्ता का भान होगा..
और खुद पे गुमान होगा..
और उस प्रकृति का मुझपे अहसान होगा..।।
आधा जिंदगी यू ही जाया कर चुका हूं..
बची आधी जिंदगी को भी जाया किये जा रहा हूँ..
मालूम नही कब वास्तविकता का भान होगा..
और स्वयं के अंदर बदलाव होगा..
सच तो ये है कि..
सबकुछ का भान होकर भी अनजान हूँ मैं..
अपने हरेक परिस्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार हूं मैं..
अपनी कमजोर इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति के कारण बेहाल हूं मैं..
अपने आलस्य और वासनाओं का गुलाम हूं मैं..
मालूम नही कैसे इससे पार पाऊंगा..
अपने आलस्य और वासनाओं को पार कर कैसे स्वयं का जीर्णोद्धार करूँगा..
हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..
भटक चुका हूं
इस मायावी दुनिया मे..
धस चुका हूं
कुकर्मो के दलदल में..
खुद से तो बहुत प्रयास किया..
मगर हर बार खड़ा हुआ
और हर बार गिर गया..
हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..
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