रविवार, 27 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति...मालूम नही तुम क्यों..

मालूम नही,तुम क्यों याद आती हो..
जब भी याद आती हो..
आंखें नम करके चली जाती हो..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।

जब भी मैं एकाकी महसूस करता हूँ
(जब भी कुछ ज्यादा हो गया😊)
सहसा तुम्हारा ख्याल आता है..
शायद मैं तुम्हारा ऋणी हूँ..
इसीलिए शायद तुम याद आती हो..।

वास्तविकता तो ये है..
की सालों से तुम्हारा कोई खबर नही है..
इस डिजिटल युग मे भी तुम,
न जाने कंहा गुम हो..।

अब तुम्हारी याद भी..
अरब सागर के सुनामी की तरह ही आती है..
मगर फिर भी..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।

वैसे भी हम कभी पैंजिया थे ही नही..
कुछ उम्मीदें जगी भी,
मगर जगने से पहले ही हम,
अंगारलैंड और गौंडवानलैंड में बट गए..
मैं तुम्हारा पीछा करते-करते 
दक्षणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध मैं पहुंच गया..
मगर तुम्हारा कुछ पता ही नही चला..
मगर तुम्हारा अस्तित्व है अभी भी,
इसीलिये तो भूकंप की तरह,
मेरे अंदर उद्गार मारती हो कभी-कभी..।।
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।



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