रविवार, 18 फ़रवरी 2024

प्यार की पांति...एक थी अल्हड़ सी..

एक थी अल्हड़ सी..
जिससे प्यार हो गया..
मगर उस अल्हड़ को मुझसे हुआ ही नही..
शायद मुझे प्यार करना और जताना आया ही नही..



एक थी अल्हड़ सी..
जिससे उसके सपनों को पूरे करने में सहयोग करने का वादा किया था..
अफसोस अपना सपना भी पूरा नही कर पाया..

एक थी अल्हड़ सी..
जिसकी एक झलक देखने को बेताब रहता था
और उसकी एक झलक देखते ही..
मैं फूलों की तरह खिल जाता था..
और उसकी महक हवा में घुल जाती थी..
मगर वो इस सबसे बेखबर थी..


एक थी अल्हड़ सी..
अनजाने में ही उसके अंगुलियों का स्पर्श आज भी याद है..

एक थी अल्हड़ सी...
जिसे भूलना चाहता हूं..
मगर उसका अल्हड़पन भूल ही नही पाता हूँ..
मगर अब धीरे-धीरे उसके अनेक यादें धूमिल होती जा रही है..
एक थी अल्हड़ सी..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें