शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

प्यार की पांति..

कैसे बयां करू में प्यार की दास्तां..
तुम्हारी एक झलक देखने को घण्टों
दीवार की ओट में खड़ा होकर बीत जाया करता था..
और पता नही चलता था..

तुम्हारी एक झलक देखने को..
ठंड की सर्द हवाओं में,
यू ही घर से बाहर निकल जाया करता था..

तुम्हारी बस एक झलक देखने को..
मोटर की स्विच ऑन होते ही नलके पे आ जाना…
और तुम्हारी गतिविधियों को देखना बहुत ही सुकुन देता था..

बस तुम्हारी एक झलक देखने को..
थोड़ी भी सरसराहट होते ही..
खिड़की से झांकने को मजबूर हो जाता था..
बस तुम्हारी एक झलक देखने को..।।

शायद तुम्हें कभी पता नही चलेगा..
की कितना प्यारा करता हूँ मैं तुम्हें..
क्योंकि तुम बरगद के वृक्ष के समान हो,
और मैं एक प्रवासी पक्षी के समान हूँ..।।

मैं भूल गया था..
अपना आशियाना..
गलती से तुम्हें ही अपना आशियाना बनाने का 
सपना देखने लगा था..
सपना तो सपना ही होता है..।
इसिलिय तुम्हें कभी पता नही चलेगा..
की कितना प्यार करता हूँ तुम्हें..।।

तुम्हें एक झलक देखने को..




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें