जिसकी सारी पंखुड़ियां बिखर चुकी है..
मगर अभी भी डाल से जुड़ा हुआ हूँ,
न जाने किस आस में..
कब क्या, प्रकृति का कोई करिश्मा हो जाये..
इसी आस में डटा हुआ हूँ..
ये जानते हुए भी..की कुछ नही होनेवाला
मगर फिर भी डटा हुआ हूँ..
कुछ तो जरूर होगा..
भले फिर से पंखुड़ियां न लगे..
क्या पता बीज का ही निर्माण हो जाये..
और ये बीज बिखर कर ढेर सारे पौधे में तब्दील हो जाये..
और इन पौधों पे ढेर सारे फूल खिल जाए..
और इनकी पंखुड़ियां हवा में उड़कर
ढेर सारी खुशबुएं बिखेर जाए..।।
क्या पता कल क्या होगा..
मगर जो भी होगा अच्छे के लिए ही होगा..।।
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