जब इस ब्रह्मांड के सापेक्ष अपने पृथ्वी को देखता हूँ तो हंसी आती है..(विस्मयकारी वाली)
जब खुद को देखता हूँ..तो खुद को वैसा ही पाता हूँ..
जैसे इस ब्रह्मांड में पृथ्वी को पाता हूँ..।।
हमारा अस्तित्व भी इस पृथ्वी पर वैसा ही है,धूल-कण की तरह,
जैसे हमारा पृथ्वी का इस ब्रह्मांड में धूल कण की तरह...
जिस तरह हमारे जिंदगी का कोई ठीक नही..
उसी तरह हमारे पृथ्वी का भी कोई ठीक नही..
क्या पता कब कौन उल्का टकराएगा और पृथ्वी बूम..
इस तरह की घटनाएं रोज इस ब्रह्मांड में हो रही है..
ब्रह्मांड इतना विस्तारित है कि इसकी भनक तक भी हमें नही लग रही है..।।
जिस तरह हम एक उम्मीद में जी रहे है..
उसी तरह हमारी पृथ्वी भी,उम्मीद पर अपने कक्ष पर घूम रही है..की सब कुछ अच्छा होगा..
मगर आपको जानकर हैरान होगा कि पिछले 300 वर्षों में हम मनुष्यों ने पृथ्वी की 90% वनस्पतियों और जन्तुओ का समूल नाश कर दिया है.. और ये अभी भी जारी है..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें