बुधवार, 25 सितंबर 2024

प्यार की पांति..

वो इस कदर खोई मुझसे..
की फिर उसे ढूंढ नही पाया मैं..
न जाने कंहा खो गई..
उसे फिर ढूंढ नही पाया मैं..

मैं ही नाकाबिल था..
जो ढूंढ नही पाया उसे..

उसके दिल के पास न सही..
उसके घर के इतने पास आकर भी..
उससे इतनी दूरियां होगी..
कभी सोचा नही था..

मैं ही नाकाबिल था..
की उसके काबिल न बन सका मैं..।।

शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

मैं मर चुका हूं..

मैं मर चुका हूं..
फर्क बस इतना है कि सांसे चल रही है..
सच में, 
मैं मर चुका हूं..
बस ये हांड-मांस का शरीर जिंदा है..
मैं मर चुका हूं..
मैंने स्वयं ही, 
स्वयं को मारा है..
और अब जो ये हांड-मांस बचा हुआ है,
उसे भी खोखला कर रहा हूँ..
मैं मर चुका हूं..
मैं हर रात,अगली सुबह जिंदा होने का सोचता हूँ..
मगर मैं, दिन चढ़ते ही धराशायी हो जाता हूँ..

सच में, मैं मर चुका हूं..
सिर्फ सांसे चल रही है,और ये हांड-मांस काम कर रही है..

इन सांसों में अभी भी ऊर्जा भरी जा सकती है..
इस हांड-मांस को फिर से नए कीर्तिमान रचने के लिए उपयोग किया जा सकता है..
क्योंकि सांसें यू ही नही चल रही है,
और ये हांड-मांस अब तक यू ही साथ नही दे रहा है..
कुछ तो वजह है..
की सांसे अब भी चल रही है..

गुरुवार, 19 सितंबर 2024

प्यार की पांति..

तुम अभी भी मेरी जेहन में हो..
तुम्हारा अक्स सहसा किसी चेहरा में ग़र दिख जाता है..
तो तुम याद आ जाती हो..
तुम सिर्फ याद ही नही बल्कि..
मुझे अपनी असफलताओं को याद दिला के चली जाती हो..

मालूम नही तुम कंहा हो..
आशा करता हूँ..
जंहा भी हो तुम...
खुश रहो..

संघर्ष

अगर आपको लगता है कि आपके जिंदगी में बहुत संघर्ष है..
तो घर से बाहर निकलिये...
आपसे भी ज्यादा संघर्ष औरों के जीवन मे है..
मगर वो संघर्ष से भाग नही रहे है..
बल्कि वो संघर्ष से लड़ रहे है और उस पर विजय पा रहे है..

आपने हाल ही मैं पैराओलंपिक में भारतीयों को पदक लेते हुए देखा होगा(अफसोस भारत की 75% आबादी को पता ही नही है)उन पैराओलंपिक खिलाड़ियों में आधे से ज्यादा के जीवन मे इतना संघर्ष था कि उनके चाहने वालों भी उनके मरने की कामना करते थे..।।

आपके चाहने वाले आपको जीता देखना चाहते है..।।

संघर्ष से घबराए नही..
बल्कि मुस्कुराते हुए सुनहरा भविष्य का स्वागत करने के लिए तैयार हो जाइए..

संघर्ष ही तो मनुष्य को निखारता है..
भला कौन है इस धरा पे जिसे बिना संघर्ष के कामयाबी मिला है..

शनिवार, 14 सितंबर 2024

धैर्य रखिये...समय बदलता है..

बाबर का नाम सुनते ही हमारे मन में क्या आता है..??
मूलतः हम भारतीय उसे आक्रान्ता ही मानते है..

मगर सही मायने में वो एक योद्धा था जो ताउम्र संघर्ष ही करता रहा..(आप इसे हिन्दू मुस्लिम नजरिये से मत देखिएगा..अगर देखना ही है तो इसके जिंदगी के संघर्ष को देखिए..जिसने सबकुछ खो कर सबकुछ पाया,इसने हरेक परिस्थितियों को स्वीकार किया,न कि परिस्थितियों का रोना रोया)



आपको जानकर हैरानी होगी कि वो काबुल में खुश था..
मगर भारत मे रह रहे शासकों ने ही इब्राहिम लोदी के ऊपर आक्रमण करने के लिए उसे न्योता भेजा..
न्योता भेजने वालों ने सोचा की जितने के बाद वो काबुल चला जायेगा जिस तरह उसके वंसज तैमूर लंग चला गया..
मगर बाबर ने आगरा पर साशन करने की सोची..

मगर आज हम बाबर के उन पहलुओं पे बात करेंगे जिन्हें हम नही जानते ....
जिन पहलुओं ने उसे पादशाह/बादशाह बनाया..
वो ताउम्र संघर्ष ही करता रहा..

इसके पिता फरगना के शासक थे,12 साल की उम्र में इसके पिता की मृत्यु हो गई,और ये 12 वर्ष की उम्र में शासक बना,मगर इसके चाचा ने इसके सक्ता को छीन लिया जिस कारण इसे निर्वासन की जिंदगी जीना पड़ा..
इसने फिर कोशिस की उस क्षेत्र को जीतने की जीत मिली भी मगर फिर कुछ दिनों के बाद फिर उस क्षेत्र को हार गया..

इस बार उस क्षेत्र को छोड़कर हिन्दकुश पर्वत पार कर काबुल आ गया और अपनी सैनिक बना कर उस क्षेत्र पर साशन किया..
फिर पंजाब के साशक दिलावर खां ने अपने बेटे और राणा सांगा ने अपना दूत बाबर के पास भेजा भारत पर आक्रमण के लिए..

बाबर के लिए सुनहरा अवसर था,और इसे उसने भुनाया..
इसने वो सबकुछ पाया जिसकी उसने कल्पना नही किया था..।।

बाबर ने कभी नही सोचा था कि वो भारत का साशक बनेगा,उसने अपना धेय्य और धैर्य बनाये रखा..
और उसे वो सबकुछ मिला जिसका उसने कल्पना तक भी नही किया था..

बाबर की जिंदगी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है..
जिंदगी के संघर्ष से बचे नही बल्कि उससे निपटने की कोशिश करें.. 
क्योंकि संघर्ष से जितना बचने की कोशिस करेंगे संघर्ष का बोझ उतना ही बढ़ता जाएगा,और जिंदगी बोझिल होती जाएगी..।
●हमेशा अवसर की तलाश करते रहें, और उसे भुनाने की कोशिस करें..
●जीत के लिए जो भी दांव पे लगाना हो लगा दे..
●अपने जीत का श्रेय उन सभी को दे जो आपके जीत को संभव बनाये है..
●समय के साथ हो रहे बदलाव को स्वीकारे..

बाबर के जीत के अनेक कारण था मगर सबसे बड़ा कारण उसका धैर्य था..
अगर उसके पास धैर्य न होता तो सबकुछ खोने के बाद भी सबकुछ नही पा सकता था..

धैर्य और धेय्य हमेशा बनाये रखें..
आपको वो सबकुछ मिलेगा जिसके बारे में आप सोच रहे है...


गुरुवार, 12 सितंबर 2024

जिंदगी में नीरसता बढ़ती जा रही है,क्यो..??

वर्तमान समय में हरेक के जीवन में नीरसता इस तरह बढ़ रही है,जैसे कैलेंडर की तारीख़..।।



जीवन मे नीरसता बढ़ने के अनेक कारण है-

●सुविधाएं नीरसता बढ़ाती है..
हमारे जीवन में ज्यो-ज्यों सुविधा बढ़ती जाती है,त्यों-त्यों नीरसता बढ़ती जाती है..
आज से 20 साल पहले हरेक चीज के लिए लाइन में लगना होता था..अब ये लगभग खत्म होने के कगार पर है..।
पहले अपने पसंद की चीजों को पूर्ति के लिए घंटो,महीनों,सालों इंतजार करना पड़ता था..
अगर आपका जन्म 20वी सदी में हुआ है,तो आपको अपनी पसंद की गाना सुनने के लिए कितना जतन करना पड़ता था,और आज कितना करना पड़ रहा है..

हमारी नीरसता को बढ़ाने में आज सोशल मीडिया का अहम योगदान है..
अगर आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल रोज 2 घंटे से ज्यादा इस्तेमाल करते है तो ये आपके अंदर हीनता का भाव भर देगा..।अगर इनसे उबरना है तो इसका इस्तेमाल अपने काम के लिए करें.. न कि दूसरों को काम के लिए..।।

अपने कार्य को पसंद ना करना..
हम में से कुछ ही भाग्यशाली लोग होते है,जिन्हें अपने पसंद का कार्य करने का मौका मिलता है..
आप जितने नामचीन लोग को जानते है..जो अपने क्षेत्र में सफल हुए उनमे से 90% का वो पसंद का कार्य नही था,मगर वो नए कीर्तिमान गढ़े, क्योंकि उन्होंने जो करना शुरू किया उसमे उनका समर्पण था,अपने कार्य के प्रति ईमानदारी थी,
और आज हम क्या करते है..
कार्यस्थल पर घड़ी के सुई पे हमारा ध्यान होता है,या फिर कैलेंडर की तारीख पे..
इसीलिए तो जिंदगी नीरस होती जा रही है..।
आप जो कार्य कर रहे है,भले ही वो आपके पसन्द का न हो,तब भी उसे पूर्णतया ईमानदारी से करे,देखिए नीरसता कैसे भाग जाती है..।।

प्रकृति से दूरियां..
अगर सच कहूं तो जिंदगी में नीरसता का सबसे बड़ा कारण यही है..
क्योंकि हम अपने जड़ से अलग होते जा रहे है..।।

आपको याद है..
आपने आखरी बार आसमां में तारे कब देखे थे...
(शहर के 50% से ज्यादा आबादी के घरों से आसमां तक नही दिखता)
आपने पंक्षियों को चहचहाते आखरी बार कब सुना था..
आपने स्कूल जाते हुए बच्चों को मटरगस्ती करते हुए कब देखा था..
आपने अपनी मनपसंद चीज कब खाई थी..
आपने आखरी बार किताब के पन्नों को कब पलटा था..

हम खुद से ही दूर होते जा रहे है..
जरा आप ही सोचिये..
अगर छोटे बच्चों को माँ से अलग रखेंगे तो क्या होगा..??
हम क्या कर रहे है..
हम खुद ही प्रकृति रूपी जननी से अलग होते जा रहे है..
तो स्वाभाविक है जिंदगी में नीरसता बढ़ेगी ही..

ज्यों-ज्यों हम प्रकृति के करीब आते जाएंगे त्यों-त्यों जिंदगी से नीरसता गायब होती जाएगी..😊

बुधवार, 11 सितंबर 2024

असफलता और सफलता का बोझ..

असफलता का बोझ रुई के समान हल्का है..मगर इसे ढोना असहनीय है..।
इसीलिए असफल होने के बाद हम जल्दी उबर जाते है,फिर से सफल होने के लिए..
अगर फिर से सफल न हुए तो...??



असफलता का बोझ भले ही रुई के समान हल्का हो,मगर उसे हम उतार के फेंक नही सकते..
इसे आजीवन ढोना पड़ता है..।।

ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों असफलता का बोझ बढ़ता जाएगा..
कुछ लोग इसे नही ढो पाते,जिस कारण उनकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है..
जो लोग ढो पाते है उनकी भी जिंदगी उम्र बढ़ने के साथ-साथ दयनीय होती जाती है,वो अलग बात है कि इसका अहसास सिर्फ उन्हें ही होता है..।।

असफलता का बोझ उतार फेंकने का एक ही उपाय है..
वो है सफल होना..।

सफलता का बोझ पत्थर के समान है..मगर सहनीय है..
सफलता का बोझ भी कई लोग नही संभाल पाते क्योंकि उन्होंने वो सफलता अपने इच्छा से नही पाई होती..
जिस कारण वो सफल होक भी ताउम्र दुःखी ही रहते है..
मगर उनके पास विकल्प होता है..
सफलता के बोझ को उतार फेंकने का..
और अपने अनुरूप जिंदगी जीने का...।।

सफल होना इसलिये जरूरी है कि, आप अपने बोझ को जब चाहे तब उतार के फेंक सके..
अन्यथा असफल होने पर ताउम्र असफलता का बोझ ढोना ही पड़ता है..।।

सफल होना जरूरी है,
भले ही 100 बार ही क्यों न असफल हो..
आपके एक बार की सफलता 100 बार की असफलता पर भारी पड़ेगा..।।
सफल होना जरूरी है..

रविवार, 8 सितंबर 2024

प्यार की पांति..

ना कभी उनसे गले मिले..
ना कभी उनसे हाथ मिला..
ना कभी उनसे नजरें ही दो-चार हुए..
फिर भी न जाने क्यों उनसे ही दिल लगा..

और भी कई थे..
न जाने फिर भी क्यों, उनसे ही दिल क्यों लगा..

अब..
न उनका कोई पता है..
न उनका कोई खबर है..
बस कभी-कभी अचानक हवा का झोंका आता है..
और मुझे उनके यादों में सराबोर कर देता है..।।

बहुत जस्तजू की..
झूठ बोलता हूं..
अगर सच में तुझे पाने की जस्तजू की होती..
तो शायद तुम्हारी भीनी खुश्बू को,
कभी-कभी हवा में महसूस नही करता..
बल्कि हमेशा स्वयं मैं ही महसूस करता..।।

अब कोई उम्मीद नही है..
न ही गलती से..
न ही अचानक से ही, 
मिलने का..
ग़र मिल भी गया..
तो मैं तुम्हें पहचानने से मना कर दूंगा..
क्योंकि मैं अबतक उस काबिल नही बन पाया..
की मैं तुम्हें प्यार का इजहार कर पाऊ...।।


शनिवार, 7 सितंबर 2024

सोचियेगा..

शाम में रास्ते से गुजर रहा था.. तो लगभग 10-11 साल की दो बच्ची स्कूल से घर जा रही थी..
और आपस मे बात कर रही थी कि इस स्कार्फ के कारण मेरा सर दुखने लगता है..मम्मी को बोलती हूं तो मुझे ही डांटने लगती है..
तुम्हें मैं,क्या बताऊँ..मेरी अम्मी मेरी सुनती ही नही है..


जब मैं, ये सुना तो मैं सोचने को विवश हो गया..
वो छोटी-छोटी,प्यारी -प्यारी मासूम बच्चियों को स्कार्फ़ से सिर और नाक तक ढक दिया जाता है...
आखिर क्यों..??

सोचता हूँ... 
लड़की होना अभिशाप है..
अगर किसी मुस्लिम परिवार में जन्म हुआ तो ये अभिशाप थोड़ा और बढ़ जाता है..
अगर किसी मुस्लिम देश मे जन्म हो गया तो ये अभिशाप और भी बढ़ जाता है..।।
अगर लड़की/महिलाओं की स्थिति सबसे ज्यादा कंही दयनीय है तो वो मुस्लिम समुदाय के मध्यम वर्ग में सर्वाधिक है..।।

इस्लाम ने महिलाओं को जितनी आजादी दी थी,इस्लाम के पैरोकारों ने उतना ही महिलाओं का शोषण करना शुरू कर दिया..।।

काश वो छोटी बच्ची मुस्लिम घर मे ना पैदा होकर किसी और परिवार में जन्म ले लेती तो उसे स्कार्फ के कारण सर दर्द का सामना नही करना पड़ता..।।

हमें लगता है तकलीफ सिर्फ हमारे ही जिंदगी में है..
यंहा कौन है...??
जिसके जिंदगी में तकलीफ नही है...
कुछ खुशगवार है,जिन्हें अपने तक़लिफों का कारण पता है,
और उसे दूर करने में लगे है..
कुछ बदकिस्मती है,जिन्हें अपने तक़लिफों का कारण ही नही पता है..
जो उसे दूर कर सके..


गुरुवार, 5 सितंबर 2024

शिक्षक/गुरु कौन है..??

क्या आप एकलव्य को जानते है..??
हां जरूर जानते होंगे..
क्योंकि उनके साथ बहुत ज्यादती हुआ ना...??



अब आप जरा ये सोचिये...
अगर द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा उससे गुरु दक्षिणा के रूप में नही लिया होता,तो क्या कोई एकलव्य को जान पाता..।।


एकलव्य कोई राजा या राजकुमार या कोई धनाढ्य घर से नही आते थे..वो एक जनजाति से आते थे..जिसकारण वो कभी भी युद्ध में शामिल नही हो पाते..और इनका धनुर्विद्या जाया ही होता..।

ये सब जानते हुए द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अंगूठा लेकर,स्वयं को कलंकित कर एकलव्य को अमर कर दिया..।।

अगर आप मेरे बात से सहमत नही है..
तो जरा बताइए..
आप महाभारत कालीन कितने यौद्धा को जानते है..
पांच पांडव,कर्ण, युधिष्ठिर, दुस्सासन और एक दो चार को जानते होंगे...
जितने भी युद्ध मे शामिल हुए सब राजा या राजकुमार ही थे..
मगर अमरत्व सबको नही मिला..
यंहा तक कि हम-आप कृष्ण के पुत्र को भी नही जानते होंगे..??

हां तो हम कंहा थे...
शिक्षक/गुरु कौन होता है..??
गुरु वो है,जो स्वयं अपमान का विष पी कर अपने शिष्य को अमृतपान कराए..
गुरु वो है, जो निःस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को ज्ञान प्रदान करें..
गुरु वो है,जो अपने शिष्यों को अपने से ज्यादा ऊंचाइयों पे जाने की कामना करें..।।

शिष्य कौन है..
जो सच्चे गुरु की पहचान कर,निःस्वार्थ भाव से गुरु के चरणों मे शीष चढ़ाने को हर वक़्त तैयार रहें...।।

द्रोणाचार्य सच्चे गुरु थे,और एकलव्य सच्चे शिष्य..।।
एकलव्य ने अपने शिष्यत्व से द्रोणाचार्य को इतना प्रभावित किया कि द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में अंगूठा लेकर उसे अमरत्व प्रदान किया..।।


रविवार, 1 सितंबर 2024

अवगुणों से छुटकारा..

हम सब अवगुणों से घिरे है..
हम सब मे कोई न कोई अवगुण होता ही है..
और कभी-कभी ये अवगुण जिंदगी में अवरोधक बन जाता है,
इतना बड़ा की जिंदगी में आगे बढ़ने ही नही देता है..।।



और हममें से कुछ लोग इन अवगुणों के अभ्यस्त हो जाते है..
और हमें फर्क नही पड़ता कि इसका असर हमारे जिन्दगी पर क्या पड़ रहा है..।

आपने कभी सोचा है..
आपके असफलता का क्या कारण है..??
जरा सोचिए..🤔
हम जब भी असफल होते है..
उसके पीछे हमारा कोई न कोई अवगुण का ही हाथ होता है..

खुद से पूछे...
हम अपने अवगुण के बारे में कितना जानते है..??
हमारे क्या-क्या अवगुण है..??
किन अवगुणों के कारण सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है, या पड़ रहा है..??
क्या हमने कभी इस पर विचार किया है...??
शायद नही..

विचार करना शुरू करें...
जब ही विचार करना शुरू करेंगे..
इन अवगुणों से छुटकारा मिलना शुरू हो जाएगा..।।
विश्वास करें, ये काम करता है..
अपनी डायरी खोले और अपने अवगुणों को लिखना शुरू करें..
इसके कारण,किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है,उन सबको लिखना शुरू करें..
और देखिए जिंदगी कैसे बदलती है😊...।



घर से बाहर निकलिए

घर से बाहर निकलिए...
और निकलते ही मोबाइल से बाहर निकल जाइये..
और प्रकृति से अंगीकार कीजिये..
प्रकृति से नही,
खुद को खुद से अंगीकार कीजिये..
क्योंकि हम कंही खो गए है..
कंहा..??
मोबाइल में..
हमने अपना दायरा सीमित कर लिया है...
कितना..??
खुद तक..
इसीलिए तो छोटे-छोटे समस्याओं से घबरा जाते है..।।

घर से बाहर निकलिए...
आपके हरेक समस्याओं का समाधान होगा..
प्रकृति के पास आपके हरेक समस्याओं का समाधान है..।