हां जरूर जानते होंगे..
क्योंकि उनके साथ बहुत ज्यादती हुआ ना...??
अब आप जरा ये सोचिये...
अगर द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा उससे गुरु दक्षिणा के रूप में नही लिया होता,तो क्या कोई एकलव्य को जान पाता..।।
एकलव्य कोई राजा या राजकुमार या कोई धनाढ्य घर से नही आते थे..वो एक जनजाति से आते थे..जिसकारण वो कभी भी युद्ध में शामिल नही हो पाते..और इनका धनुर्विद्या जाया ही होता..।
ये सब जानते हुए द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अंगूठा लेकर,स्वयं को कलंकित कर एकलव्य को अमर कर दिया..।।
अगर आप मेरे बात से सहमत नही है..
तो जरा बताइए..
आप महाभारत कालीन कितने यौद्धा को जानते है..
पांच पांडव,कर्ण, युधिष्ठिर, दुस्सासन और एक दो चार को जानते होंगे...
जितने भी युद्ध मे शामिल हुए सब राजा या राजकुमार ही थे..
मगर अमरत्व सबको नही मिला..
यंहा तक कि हम-आप कृष्ण के पुत्र को भी नही जानते होंगे..??
हां तो हम कंहा थे...
शिक्षक/गुरु कौन होता है..??
गुरु वो है,जो स्वयं अपमान का विष पी कर अपने शिष्य को अमृतपान कराए..
गुरु वो है, जो निःस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को ज्ञान प्रदान करें..
गुरु वो है,जो अपने शिष्यों को अपने से ज्यादा ऊंचाइयों पे जाने की कामना करें..।।
शिष्य कौन है..
जो सच्चे गुरु की पहचान कर,निःस्वार्थ भाव से गुरु के चरणों मे शीष चढ़ाने को हर वक़्त तैयार रहें...।।
द्रोणाचार्य सच्चे गुरु थे,और एकलव्य सच्चे शिष्य..।।
एकलव्य ने अपने शिष्यत्व से द्रोणाचार्य को इतना प्रभावित किया कि द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में अंगूठा लेकर उसे अमरत्व प्रदान किया..।।
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