इसीलिए असफल होने के बाद हम जल्दी उबर जाते है,फिर से सफल होने के लिए..
अगर फिर से सफल न हुए तो...??
असफलता का बोझ भले ही रुई के समान हल्का हो,मगर उसे हम उतार के फेंक नही सकते..
इसे आजीवन ढोना पड़ता है..।।
ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों असफलता का बोझ बढ़ता जाएगा..
कुछ लोग इसे नही ढो पाते,जिस कारण उनकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है..
जो लोग ढो पाते है उनकी भी जिंदगी उम्र बढ़ने के साथ-साथ दयनीय होती जाती है,वो अलग बात है कि इसका अहसास सिर्फ उन्हें ही होता है..।।
असफलता का बोझ उतार फेंकने का एक ही उपाय है..
वो है सफल होना..।
सफलता का बोझ पत्थर के समान है..मगर सहनीय है..
सफलता का बोझ भी कई लोग नही संभाल पाते क्योंकि उन्होंने वो सफलता अपने इच्छा से नही पाई होती..
जिस कारण वो सफल होक भी ताउम्र दुःखी ही रहते है..
मगर उनके पास विकल्प होता है..
सफलता के बोझ को उतार फेंकने का..
और अपने अनुरूप जिंदगी जीने का...।।
सफल होना इसलिये जरूरी है कि, आप अपने बोझ को जब चाहे तब उतार के फेंक सके..
अन्यथा असफल होने पर ताउम्र असफलता का बोझ ढोना ही पड़ता है..।।
सफल होना जरूरी है,
भले ही 100 बार ही क्यों न असफल हो..
आपके एक बार की सफलता 100 बार की असफलता पर भारी पड़ेगा..।।
सफल होना जरूरी है..
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