ना कभी उनसे हाथ मिला..
ना कभी उनसे नजरें ही दो-चार हुए..
फिर भी न जाने क्यों उनसे ही दिल लगा..
और भी कई थे..
न जाने फिर भी क्यों, उनसे ही दिल क्यों लगा..
अब..
न उनका कोई पता है..
न उनका कोई खबर है..
बस कभी-कभी अचानक हवा का झोंका आता है..
और मुझे उनके यादों में सराबोर कर देता है..।।
बहुत जस्तजू की..
झूठ बोलता हूं..
अगर सच में तुझे पाने की जस्तजू की होती..
तो शायद तुम्हारी भीनी खुश्बू को,
कभी-कभी हवा में महसूस नही करता..
बल्कि हमेशा स्वयं मैं ही महसूस करता..।।
अब कोई उम्मीद नही है..
न ही गलती से..
न ही अचानक से ही,
मिलने का..
ग़र मिल भी गया..
तो मैं तुम्हें पहचानने से मना कर दूंगा..
क्योंकि मैं अबतक उस काबिल नही बन पाया..
की मैं तुम्हें प्यार का इजहार कर पाऊ...।।
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