रविवार, 27 अप्रैल 2025

वीर कुंवर सिंह...1857 के क्रांति के नायक

अगर आपका उम्र 80 साल है,और आपसे आपका सारा जायदाद(संपत्ति) छीन लिया जाय तो आप क्या करेंगे..??

आज की ज़ेनरशन वो सबकुछ जानती है जो उसके लिए उपयोगी नही है..।।
मगर क्या आज का जेनरेशन "वीर कुंवर सिंह" को जानता है..??
आज हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने "मन की बात"में वीर कुंवर सिंह का चर्चा किया..कुछ ने गूगल पे सर्च किया होगा..शायद नही किया होगा..क्योंकि मन की बात आज की जेनरेशन सुनती कंहा है...😊।।



चलिए कोई नही..
मैं आपको ले चलता हूँ 1857 के उस समर में..
जिस समर में अंग्रेज सभी को एक तरफा धूल चटा रहा था..
मानो भारतीयों की जान की कोई कीमत ही नही है..
गाँव के गाँव और बस्तियों के बस्तियां जला दी गई..जिन्होंने भी क्रांतिकारियों का मदद किया, उसे अंग्रेजो ने खुलेआम चौराहे पे फांसी पे लटकाया या तोप में बांधकर उड़ा दिया..
इससे भी मन नही भरा तो हमारी माताओं और बहनों को स्तनों को काट लिया गया..वो दानव यहीं तक नही रुके उन्होंने जननांगों में मिर्ची के पॉवडर डालकर तड़पने के लिए छोड़ देते थे..।।
ये अंग्रेज इतने असभ्य थे इतने कुकर्मी थे कि जब आप इतिहास पलटोगे तो आपको घिन्न आएगी..
मगर अफसोस हम इतिहास पढ़ते ही नही..
इसीलिए तो हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम है..।।

1857 के क्रांति में अंग्रेज ने अपने हरेक विरोधियों को कुचल दिया..मगर एक ऐसा विरोधी था, जिसे अंग्रेज हरा नही पाया..
वो थे..80 साल के "वीर कुंवर सिंह"..
डलहौजी ने नया फरमान लाया जिसका कोई संतान नही है, उसका जमींदारी और क्षेत्र ब्रिटिश सरकार का हो जायेगा..।
मगर वो अपना जमींदारी अपने भाई अमर सिंह को देना  चाहते थे..।

इसी बीच मंगल पांडेय को फांसी पे चढ़ाते ही,सैनिकों में विद्रोह भड़क उठा, और सैनिकों का आक्रोश पटना तक पहुंच गया..दानापुर छावनी के 7वी,8वी और 40वी रेजिमेंट के सिपाही वंहा से हथियार लेकर जगदीशपुर पहुंच गए और कुँवर सिंह से कहें कि आप हमारा नेतृत्व करें..
कुँवर सिंह इन सैनिकों को लेकर आरा के जेल पर चढ़ाई कर दिये और वंहा से सभी कैदियों को रिहा कर दिए..और अपने सैनिकों में शामिल कर लिए..।

इस विद्रोह को दबाने के लिए डगलस आया..जो कुँवर सिंह के हाथों युद्ध मे मारा गया..।
फिर विंसेट आयर आया इसने आरा शहर पे कब्जा तो कर लिया मगर कुँवर सिंह को नही पकड़ पाया..।

कुँवर सिंह अपने सैनिकों को लेकर बलिया,गोरखपुर, मिर्जापुर,बनारस,कानपुर,प्रयागराज,बांदा ,रीवा एवं अन्य क्षेत्र तक गए और अंग्रेज से लड़ने के लिए इनसे सहयोग मांगा..
इनके इस उम्र में इतना हौंसला देखकर सब लोगों ने इन्हें अपना-अपना सहयोग देने का वादा किया..मगर..
इसमे से रीवा के राजा अंग्रेज से मिले थे इन्होंने कुँवर सिंह को कैद करने का सोचा मगर रीवा के सिपाहियों के मदद से वंहा से वो निकल गए..।

जब कुँवर सिंह अवध(सबसे धनाढ्य प्रदेश) पहुंचे तो उनका स्वागत अवध की रानी "बेगम हजरत महल" ने शानदार तरीके से किया..उन्होंने आजमगढ़ की जमींदारी वीर कुंवर सिंह को दे दिया..।
जब अंग्रेज को ये बात पता चला तो वो घबरा गया और आजमगढ़ में ही कुँवर सिंह को घेरने का योजना बनाया..
डनबर ने आजमगढ़ को चारों और से घेर लिया..
और यंहा "अतरौलिया का युद्ध" शुरू हुआ..
जिसमें कुँवर सिंह के हाथों डनबर की मृत्यु हुई..।।

ये खबर हवा की तरह कलकत्ता तक पहुंच गया..
जब ये खबर गवर्नर जेनरल "लार्ड केनिंग" को पता चला तो वो चिंतित हो गया...
उसने कुँवर सिंह के ऊपर 20 हज़ार का इनाम की राशि घोषित किया..(वर्तमान में अगर आकलन करें तो 2 करोड़ से ज्यादा) 
कुँवर सिंह को घेरने के लिए चारो और से सेना आजमगढ़ भेजा गया..
जब कुँवर सिंह को ये बात पता चला तो उन्होंने अपने सैनिकों को दो भागों में बांट लिया..एक को युद्ध मोर्चा पे लड़ने के लिए भेजे और एक के साथ जगदीशपुर के लिए निकल गये..।
अंग्रेज को लगा कि वो जीत रहे है,मगर कुँवर सिंह तो उनके हाथों से निकल रहे थे..।
जब ये बात अंग्रेज को पता चला तो उनके जनरल पागल हाथी की तरह बेकाबू हो गए..आजमगढ़ की जनता पर बेरहम अत्यचार किये..जो भी आया सबको मौत के घाट उतार दिया गया..।
कुँवर सिंह को पकड़ने के लिए ली ग्रांड के नेतृत्व में एक टुकड़ी भेजा गया..।

22 अप्रैल 1858 को गंगा नदी को पार करते वक़्त ली ग्रांड की सेना ने अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू किया..एक गोली कुँवर सिंह के बांह में आकर लग गई..उन्होंने तुरंत तलवार निकाला और उस हाथ को दूसरे हाथ से काटकर गंगा में बहा दिया...जिससे गोली की जहर पूरे शरीर मे ना फैल जाए..।।
ली ग्रांड की सेना ने जब इन्हें चारों और से घेर लिया तो इस अवस्था मे भी वो साहस से लड़ें और ली ग्रांड की सेना को हरा कर जगदीशपुर पहुंचे..।।

खून बहुत बह जाने के कारण इनकी तबियत खराब होने लगी और 26 अप्रैल 1858 को इस महान योद्धा ने अपना शरीर त्याग दिया..
जब इनकी मृत्यु हुई तो इनके किला पे यूनियन जैक का झंडा नही बल्कि जगदीशपुर का झंडा फहरा रहा था..।

1857 के क्रांति के इकलौते नायक जिसे अंग्रेज जीते जी नही हरा पाया...

1857 के क्रांति के इकलौता नायक जिसके ऊपर अंग्रेज को 20 हजार का इनामी राशि रखना पड़ा..

1857 के क्रांति के इकलौता नायक जो सिर्फ अपने क्षेत्र तक ही नही बल्कि पूरे उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक अंग्रेजो से लड़ा..

1857 के क्रांति के इकलौते नायक जो सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर नही बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उभरे..।।

अंग्रेज इतिहासकार ने इनके बारे में कहा-
"भाग्य मनाओ की ये बूढा है,अगर जवान होता तो क्या होता"

V. D सावरकर ने अपने किताब "1857 प्रथम स्वंतंत्रता संग्राम" में 7 क्रांतिकारियों की चर्चा की है जिसमे से वीर कुंवर सिंह एक है..।।

अब जरा आप सोचिये..
एक 80 साल का बूढा जिसने अंग्रेज हुकूमत को नाक में दम कर दिया..अंग्रेज उनसे जीते जी नही जीत पाया..हर बार मुँह की खानी पड़ी...।।
मगर आज की युवाओं की दशा क्या है..??
दशा इसलिए है क्योंकि कोई दिशा नही है..।।

आप तो युवा है..
और स्वतंत्र है..
तो फिर ये दशा क्यों है..??
जिस बुराइयों के बेड़ियो से बंधे है..
उन्हें तोड़ दे..।
जिस मोह में फंसे है..
उसे मरोर दे..।
अब नही तो और कब..।
80 साल का बूढा कुँवर सिंह अंग्रेज सामज्र्य को अपने अंगुलियों पे नचाया..
आप तो युवा है...
और स्वतंत्र है..
तो फिर ये दशा क्यों है..??


गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

पापा से शिकायत है..

पापा से शिकायत है..
अगर हां,
तो खुद को पापा के जगह पर रख के देखो..।
पापा आपसे नाराज है..
आखिर क्यों..??
पापा कभी नाराज नही होते,
बल्कि वो अपने संतति को हारते हुए और किसी तरह की कालिख लगते हुए नही देखना चाहते है..।

पापा को हर रोज उनका सामना करना होता है,
जिनसे आप नजरें तक मिलाना नही चाहते..।।
पापा को हर रोज उनका सामना करना होता है,
जो उन्हें हारता देखना चाहते है..
वो जब उनसे नही जीत पाते है, 
तो वो उम्मीद अपने संतति से लगाते है..
मगर जब संतति भी उस पे खरा नही उतरता है..
तब सोचो..
उनपे क्या बीतती होगी..।।

अब वो फिर उनसे कैसे नजरें मिलाते होंगे..
उनपे कैसे कटाक्ष का वार होता होगा..।

इस जंहा में सिर्फ पापा ही है,
जो आपको आगे..और आगे..बढ़ते देखना चाहते है..।।

पापा से शिकायत है...??
क्यों..??
पापा की मजबूरियों को समझों..
समाज और परिवार से बंधी बेड़ियों को देखों..
उनपे दायित्व निर्वहन के बोझ को देखों..
इस सारी विपरित परिस्थितियों के बावजूद वो तुम्हारे सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजो रहे है...
क्या ये मामूली बात है..।

पापा से शिकायत है..।।
अगर हां...
तो खुद को पापा के स्थान पर रखकर देखों..।।



बुधवार, 23 अप्रैल 2025

विश्व पुस्तक दिवस..

चलिए आज विश्व पुस्तक दिवस पर कुछ किताब और कहानियों को याद करते है...।



आपको पहली पुस्तक याद है..जिसे आपने खुद से पढ़ा था..??
क्या आपको उसकी सुंगंध याद है..??
और क्या-क्या याद है..।।


मुझे वो पुस्तक आज भी याद है..
जिसे मैंने कई बार पलटा और उसके इंक के सुंगंध को कई बार सुंघा..
उस पुस्तक का नाम "बाल भारती" था वो दूसरी क्लास की पुस्तक थी..
इस पुस्तक को देखते ही कई कहानियां याद आ गई..।।
अब आप याद कीजिये..
आपके द्वारा पढ़ी जाने वाली पहली पुस्तक कौन सी थी..??

पुस्तक पढ़ने के कई फायदे है..
मगर अफसोस किताबों से दूरियां बढ़ती जा रही है..और pdf का अंबार इतना लग गया है कि हमें मालूम ही नही की कौन सा pdf किस चीज का है..??

शायद आपके द्वारा पढ़ा गया पहला पुस्तक का नाम याद आ गया होगा...अगर नही तो छोड़िए..
आपने आखरी पुस्तक कौन सी पढ़ी थी या पढ़ रहे है..??

मैं तो गौहर रज़ा का "मिथकों से विज्ञान तक"को पढ़ कर खत्म करने वाला हूँ.. 


अच्छा आखरी सवाल...
आपको सबसे ज्यादा कौन सी बुक ने प्रभावित किया..जिसे आप फिर से पढ़कर बौर नही होंगे..??

मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित ब्रायन ट्रेसी की "लक्ष्य"(Goal) ने प्रभावित किया..और रामधारी सिंह दिनकर की "रशिमरथी" ने..मैं जब भी उदास होता हूँ तो रशिमरथी को पलटता हूँ और ऊर्जा प्राप्त करता हूँ..।।

बस ये आख़री है..
आपको वो पहली कहानी याद है जो आपके मन-मस्तिष्क में अभी तक छपा हुआ है..??
हां मेरे मन मस्तिष्क में छपा हुआ है, 9th क्लास में प्रेमचंद्र की कहानी "ईदगाह"पढ़ी थी..उसका पात्र हामिद आज भी याद है..।।

आज अपनी मनपसंद की किताब और पत्रिका पढ़ना बहुत आसान है..क्योंकि एक क्लिक में वो हार्डकॉपी और सॉफ्टकॉपी में उपलब्ध हो सकता है..
मगर अफसोस हममें पढ़ने की लालसा ही खत्म होती जा रही है...आखिर क्यों..??
खुद सोचियेगा...।।

किताब पढ़ने के अनेक फायदे है...

यूनिवर्सिटी ऑफ सक्सेस के एक अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ 6 मिनेट पढ़ने से 68% तक तनाव कम होता है..यह योग या टहलने से भी ज्यादा असरदार है..
"पढ़ने से दिमाग काल्पनिक दुनिया मे चला जाता है, जो जीवन की चिंताओं से ध्यान हटाता है,और रक्तचाप कम करता है"

• अगर रोज 20 मिनट पढ़े तो साल के अंत तक 18 लाख शब्दों के संपर्क में आ जाएंगे।जिससे भाषा शैली में सुधार होता है।
एक अध्ययन में पाया गया कि-"किताब पढ़ने से हमदर्दी की भावना जागृत होती है"।

एक रिसर्च बताती है कि जो लोग किताब पढ़ते है, उनके जिंदगी से तनाव घटता है,नींद बेहतर आता है और भावनात्मक सेहत सुधरता है..यही नही किताब पढ़ने वाले कि उम्र आम लोगों के अपेक्षा 20% ज्यादा होता है..।

2013 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के अनुसार,नियमित पढ़ने वालों की यादाश्त बेहतर होती है साथ ही अल्जाइमर का खतरा  20% तक कम हो जाता है..।।

क्या सोच रहे है..
आज आपके हाथ मे सिर्फ मोबाइल ही नही बल्कि विश्व की सबसे बड़ी लाइब्रेरी पड़ी हुई है..सिर्फ सर्च करने तक कि देरी है...।।मगर जो मजा कागजों को पलटते हुए,इंक की सुंगध लेते हुए पढ़ने में जो मजा है,वो किंडल और pdf पढ़ने में नही..।।


हिन्दू अपने ही देश में असुरक्षित हैं...

जरा सोचिए...
क्या यूरोपीय देश में, कोई ईसाई खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??
क्या कोई मुस्लिम देश में, कोई मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??
क्या कोई बौद्ध अनुयायी म्यांमार और थाईलैंड में खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??

क्या कोई हिन्दू,हिंदुस्तान में असुरक्षित महसूस करेगा..??
शायद कल सुबह तक हम खुद को सुरक्षित महसूस पा रहें थे..
मगर कल दोपहर की घटनाओं ने हिंदुओं को हिंदुस्तान में भी असुरक्षित कर दिया है...

जिस तरह कल कश्मीर में ना जाति पूछा, न भाषा पूछा, न राज्य पूछा..
धर्म पूछ कर गोली मार दिया...
जिन्होंने नही बोला उसे नंगा करके मारा गया...।।
ये घटना रूह को कंपा देने वाली है...।



आज हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिम के ऊपर दायित्व बढ़ गया है..
उन्हें खुलकर विरोध करना होगा..
अगर वो आज विरोध नही करते है तो वो संदेह के नजर से देखें जाएंगे...।।
पाकिस्तान यही चाहता है..।।
हमारी सरकार को अब इस कायराना हरकतों की निंदा नही बल्कि उनके आकाओं को सदा के लिए नींद में भेज देने की जरूरत है..।
भारत मे जो उनके समर्थक है उन्हें लाल चौक पे चुनवाने का समय आ गया है..।।
अगर सरकार कड़ा कदम नही उठाती है तो..
फिर से किसी चौराहे पे धर्म पूछ के किसी हिन्दू को गोली न मार दिया जाय...।।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

पोप फ्रांसिस की जीवन-यात्रा..

"हम मृत्यु नही, जीवन के लिए बने है.." पोप फ्रांसिस ने मरने से पहले दुनिया को ये आखरी संदेश दिया था..। 


हममें से बहुत बड़ी आबादी पोप फ्रांसिस को नही जानते होंगे..??
क्योंकि वो एक सेलेब्रिटी या राजनेता नही थे..
जिस तरह हिंदू धर्म के प्रमुख शंकराचार्य होते है और बौद्ध धर्म के प्रमुख दलाई लामा होते है..
इसी तरह पोप फ्रांसिस कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु थे..।।

पोप फ्रांसिस पहले गैर-यूरोपीय पोप बने...
इनका जन्म अर्जेटीना की राजधानी बीयूनर्स आयर्स में हुआ..
जॉर्ज मारियो बरगोगिल्यो(असली नाम) पादरी बनने से पहले अर्जेटीना के एक नाईट क्लब में बाउंसर का काम करते थे..
फिर उन्होंने एक केमिकल लैब में काम करना शुरू किया..
फिर उन्होंने अर्जेटीना के कॉलेज में साहित्य और मनोविज्ञान के शिक्षक के रूप में पढ़ाया..
उन्होंने 21 के उम्र में जेसुइट समुदाय से जुड़े..फिर अर्जेटीना में ही पादरी बन गए..
ये अपने माँ-बाप के साथ इटली आ गए और यही बस गए.
2001 में पॉप जॉन पॉल ii ने उन्हें कार्डिनल बनाया..और
2013 में 266वे पॉप की उपाधि दी गई..।

मैं आज से पहले इनसे उतना वाकिफ नही था..बस इनके मौन मुस्कान का कायल था..
जब भी कभी अखबार या टेलिविज़न पे देखता तो इन्हें मुस्कुराते देख बस मैं भी मुस्कुरा दिया करता था..।।

इनके व्यक्तित्व पे इनके जीवन का गहरा छाप था..
हम अक्सरहाँ हार जाते है..
मगर इनका जीवन यात्रा बताता है कि हार मानना गुनाह है..
क्योंकि भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नही जानता..

एक नाईट क्लब का बाउंसर, पोप बनकर पहली बार रोम की जेल में कैद महिलाओं का पाँव धोता है..।।(परंपरा के अनुसार पोप ईस्टर से पहले गरीबों का पाँव धोते है)इन दोनों घटना को जोड़ने की कोशिश कीजिये..।।



पोप होने के नाते उन्हें भव्य अपोस्टोलिक पैलेस में रहना था, मगर उन्होंने साधारण गेस्ट हाउस को चुना..।



पोप बनने पर 'रिंग ऑफ द फिशरमैन' पहनाते है,ये सोने की रिंग शक्ति का प्रतीक होता है..मगर उन्होंने चांदी का रिंग पहना..।

•जब वो आर्कबिशप थे, तो उन्होंने कभी महंगी गाड़ियां में  नही बैठे।हमेशा पब्लिक बस और मेट्रो से सफर करते थे..
पोप बनने के बाद भी वो बस से सफर करते थे..
(एक हमारे यंहा के भी संत लोग है..)

•वो अक्सरहाँ लोगों की मदद करने के लिए रात में निकल जाया करते थे..जिससे किसी को पता न चले..।।
(आज हम किसी की मदद करने से पहले सेल्फी लेते है)

उनकी जीवनयात्रा प्रेरणादायी है..
कंहा नाईट क्लब के बाउंसर(गार्ड) से वो कैथोलिक ईसाई के प्रमुख धर्म गुरु बने..।।
धैर्य रखें,और आगे बढ़ते रहें, और उस परमात्मा पे विश्वास रखें.. क्या पता किस मोड़ पे सफलता बाहें फैलाकर आपका इंतजार कर रहा हो..।

आज दुनिया की अधिकांश आबादी उदासी में डूबती जा रही है, और उस उदासी को दूर करने के लिए वो जिसका सहारा ले रही है..वो उसे और गहरे उदासी में धकेल रही है..।
ऐसे समय मे पॉप फ्रांसिस का अंतिम संदेश को याद करें-
" हम मृत्यु के लिए नही,जीवन के लिए बने है।।"



बुधवार, 16 अप्रैल 2025

क्या आप जानते है..

क्या आपको पता है..
मच्छर इस पृथ्वी पर कितनों सालों से है..??


अनुमान लगाइये..🤔
1 लाख सालों से,10 लाख सालों से, 100 लाखों सालों से..या फिर 1000 लाख सालों से...??
जब आप सोच रहे है तो हो सकता है मच्छर आपके आस-पास मंडरा रहे हो..
ये तब भी मंडरा रहे थे जब पृथ्वी पर डायनासोर अठखेलियां कर रहें थे..।

जरा कल्पना कीजिये..
जब मच्छर डायनासोर को काटता होगा तो वो खुद को कितना असहाय महसूस करता होगा..।जबतक उसे पता चलता होगा तबतक मच्छर तो काट करके आराम फरमा रहा होता होगा..।।
हमलोगों के साथ भी होता है ये, कभी-कभी जब मच्छर काट करके चला जाता है तब पता चलता है..😊।।



क्या डायनासोर की विलुप्ति में मच्छर का कोई योगदान था..??
इसका अबतक कोई साक्ष्य नही मिलता..
वैज्ञनिकों का कहना है कि इनकी विलुप्ति जलवायु परिवर्तन या फिर उल्कापिंडों के गिरने के कारण हुआ..।।
डायनासोर इस पृथ्वी पर ~230 मिलियन साल तक राज किया..और हम मानव कितने सालों से कर रहें है..
अंदाजा लगाइये...🤔
हम मानव इस पृथ्वी पर पिछले 5-7 मिलियन साल से ही रह रहे है..।

क्या आपको पता है.. मच्छरों की कितनी प्रजातियां है..??
अधिकांश लोग सोचेंगे ये जानकर मैं क्या करूँगा..
मगर इसमे पृथ्वी पर सर्वाइव करने का रहस्य छुपा हुआ है..।
मच्छर की लगभग 3600 प्रजातियां ज्ञात है..
और हम मनुष्यों की..??
मानव अपने विकाश के चरण से लेकर अबतक सिर्फ 9 प्रजातियां से ही गुजरा है..जिसमें से 8 विलुप्त हो चुके है..
सबसे अंतिम ज्ञात विलुप्त मानव प्रजाति "होमो इरेक्टस" था पता है इसके विलुप्ति का क्या कारण था..??
"होमो सेपियंस" के साथ संघर्ष, होमो सेपियंस ने अपने एकछत्र राज के लिए होमो ईरेक्टस को खत्म कर दिया..
या फिर जलवायु परिवर्तन के कारण उनका विनाश हुआ..अभी तक पहेली बनी हुई है..

क्या आपको पता है..
पिछले 2 लाख वर्षों में 10 हजार 800 करोड़ लोग पैदा हुए..
जिसमें से 5 हजार करोड़ लोगों की मृत्यु मच्छरजनित बीमारियों से हुई..(इतिहासकार "टिमोथी सी वाइनगार्ड")

WHO के अनुसार प्रत्येक साल 7 लाख लोगों की मृत्यु मछर के कारण होती है..।

पृथ्वी पर जीवन के उद्भव से लेकर अबतक पैदा होने वाले लगभग 99.9% प्रजातीय विलुप्त हो चुके है..

मगर क्या कारण है कि मच्छर अब तक जिन्दा है..??
जरा सोचिए..??

- वो अन्य जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों की तरह झगड़ते नही है..(क्या पेड़-पौधे भी झगड़ते है..जी हां..)

-वो प्रकृति के अनुसार खुद को ढालते है..

-उनमें म्युटेशन(उत्परिवर्तन) की क्षमता है..उनकी आने वाली पीढ़ी परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लेती है..

-वो सबकों स्वीकारते है, किसी से भेदभाव नही करते..

अच्छा बताइये.. इस तरह के गुण और किसमें है..??
शायद आप जानते है..
नही जानते..चल झूठा..
मुस्कुराइए😊 वो आप भी है..
अपने शक्ति को पहचानिये..
और अपने अस्तित्व को बचाइए..।।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

पापा से दूरियां...

ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है
पापा से दूरियां बढ़ती जाती है..
बचपन मे पापा से दूरियां इसिलिय थी कि
उन्हें मेरी इच्छाओं को पूरी करनी थी..
अब दूरियां इसिलिय है कि,
मुझे अपनी इच्छाये पूरी करनी है..।

ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है..
पापा से दूरियां बढ़ती जाती है..।।


वर्धमान से महावीर की यात्रा..

यात्राएं सिर्फ जीवन का ही नही, बल्कि पूरी दुनिया की दिशा तय करता है..।
दुनिया में जितने भी बदलाव हुए उसकी शुरुआत एक छोटी या बड़ी यात्रा से ही हुई..।।



आज से ~600 ईसा पूर्व एक यात्रा का शुरुआत हुआ था जिसने पूरे विश्व को बदल दिया अपने "अहिंसा"के पैगाम से..वो पैगाम लेकर के आये जैन धर्म के 24वे तीर्थंकर "महावीर" उनका जन्म बिहार के वैशाली(कुण्डलग्राम) में हुआ था..
"कल्पसूत्र"में कहा गया है कि वो माँ के गर्भ में भी शांत और स्थिर रहते थे,ताकि माँ को कोई तकलीफ न हो..।

महावीर अपने उपदेश में सिर्फ अहिंसा पर ही बल नही देते बल्कि दुनिया के प्रति करुणा की दृष्टि रखने पर बल देते है..क्योंकि बिना करुणा के अहिंसा का भाव जागृत नही हो सकता..
आज पूरा विश्व वैमनस्य और हिंसा से भरा हुआ है..
ऐसी परिस्थिति में महावीर का अहिंसा का भाव ही लोगों को इस दलदल से उबार सकता है..।।

वर्धमान से महावीर बनने की यात्रा की शुरुआत बाल्यकाल में ही, हो गया था वो अक्सरहाँ अपने माँ के साथ पूजा करने के लिए बैठते थे..माँ पूजा करके उठ जाती थी और वो बैठे ही रहते थे..ये सिलसिला सिर्फ घर मे ही नही बल्कि जब भी वो अकेले होते तो वो ध्यानमग्न होकर बैठे जाते..।
माता-पिता के अंदर डर पैदा हुआ..कंही पुत्र संन्यासी न हो जाये..ये डर सही निकला जब वो 15 साल के थे तब वो अपने माता-पिता से कहें कि मुझे सन्यास लेना है..
माँ ने रोना-धोना शुरू कर दिया..फिर माता-पिता ने कहा- जब हम शरीर त्याग देंगे तब तुम संन्यास धारण कर लेना..
माता-पिता के शरीर त्यागने के ठीक 13वे दिन 30 साल के उम्र में वो, अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर गृहत्याग किये..
और 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात ऋजुपालिका नदी के किनारे और साल वृक्ष के नीचे उन्होंने "कैवल्य" की प्राप्ति की..
इस 12 वर्ष की तपस्चर्या ने उन्हें महावीर बना दिया..।
इन्होंने पहला उपदेश वितुलाचल की पहाड़ी(राजगीर) पर दिए..।
मगर आज तक ना ही महावीर को और, ना ही जैन धर्म के सिद्धांत को अभी तक पूर्णतया समझा गया है..
क्योंकि महावीर को समझने के लिए आपको मनोचिकित्सक बनना होगा..

जैन धर्म के त्रिरत्न-
¡. सम्यक ध्यान
¡¡. सम्यक ज्ञान
¡¡¡. सम्यक चरित्र

जैन धर्म के पांच महाव्रत 
¡. अहिंसा (मन,कर्म, वचन से कष्ट न देना)
¡¡. अचौर्य/अस्तेय(चोरी न करना)
¡¡¡.अमृषा(असत्य)
¡V. अपरिग्रह(जरूरत से ज्यादा न संग्रह)
V. ब्रह्मचर्य (ब्रह्म का आचरण)


जैन धर्म का "स्यादवाद" का सिद्धांत - वर्तमान में हरेक समस्या का समाधान है..
ये सिद्धान्त कहता है कि कोई भी गलत नही है सब सही है... परिस्थिति,काल और परिवेश के अनुसार..।।

आज हरेक समस्या का तो यही जड़ है कि कौन सही है..??स्यादवाद का सिद्धांत हमे समाधान देता है..



आपने 3 अंधे और एक हाथी की कहानी सुना होगा..
1 अंधा जब हाथी का पाँव छूता है तो कहता है कि ये पेड़ की तरह है..
2रा अंधा जब हाथी के पूंछ को छूता है तो कहता है कि ये रस्सी की तरह है..
3रा अंधा जब हाथी के सूढ़ को छूता है तो कहता है कि ये तो सांप की तरह है...
तीनों अंधे सही है अपने-अपने अनुसार,यही है स्यादवाद का सिद्धांत..।।

आज समय आ गया है कि हम फिर से महावीर को समझे..
जैन धर्म के सिद्धांतों को समझे..।।
आज विश्व के हरेक समस्याओं का समाधान "स्यादवाद" और "अनेकान्तवाद" के सिद्धांत में छुपा हुआ है..।।

हम फिर से महावीर की यात्रा को अनुसरण करें..
क्योंकि यात्रा सिर्फ जीवन ही नही, बल्कि विश्व की दिशा और दशा भी बदलती है..








बुधवार, 9 अप्रैल 2025

संस्मरण...

एक उदासी सी छाई हुई है..
क्यों..??
जब मन की गहराइयों में गौता लगाया तो पता चला..
आज शाम तक जिससे मिलें थे..
शायद फिर उनसे कभी मुलाकात न हो..
क्योंकि पिछले एक महीने से अनवरत चलने वाला हमारा एक्यूप्रेशर का क्लास आज समाप्त हो गया..।



निर्मल मन वाली हमारी निर्मला गुरु माँ की मुस्कान और ज्ञान अब दुर्लभ हो जाएगा..।
प्रशांत सर् ,सुनील सर् एवं अन्य सरों का सेवाभाव का लुत्फ अब नही उठा पाऊंगा..।।



हमारे कुछ गुरु भाई(60+)
जो मेरे प्रेरणा के स्रोत बने उनसे शायद फिर कभी मुलाकात न हो पाए..
आज के युवा हताश और निराश है..
जबकि वो लोग इस उम्र में भी जोश और जुनून से लबरेज है..।।
जिसने मुझे एक नया नजरिया दिया(श्रीकांत सर्,बालकृष्ण सर्, वाडेरकर सर् नामदेव सर् )


उन्होंने हमें सिखाया की, सीखने की कोई उम्र नही होता..
फिर से शुरुआत करने का कोई सु-समय नही होता..
जिंदगी में उदास होने का कोई कारण नही होता..
अगर कुछ होता है..
तो वो आलस्य और अकर्मण्यता के सिवा और कुछ नही होता..।।

और कई मुस्कुराते हुए चेहरे मेरे जेहन में है..
खासकर मेरी मातये एवं बहनों की..
उनलोगों के मौजदूगी से मानो फिर से मातृत्व स्नेह का गंगा स्नान किया हो..।।



कहते है दुनिया बहुत छोटी है..
साथ ही गोल है..
फिर कंही-न-कंही
लुढ़कते-ढुलकते मिल ही जायेंगें..
और मिलते ही सारी यादें फिर से ताजा हो जाएगा..।।

"सबको जय भगवान.."




सोमवार, 7 अप्रैल 2025

टिक-टिक की आवाज...

रेलवे ब्रिज पे चढ़ा ही था कि एक अंधे व्यक्ति से टकरा गया..
कैसे टकराया मालूम नही क्योंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी..
मैं भी प्लेटफार्म 9 पे जा रहा था और उन्हें भी प्लेटफार्म 9 पे ही जाना था...


उन्होंने मुझसे पूछा प्लेटफार्म 9 पे जाना है..
मैंने कहा हां प्लेटफार्म 9 के लिए इधर से ही जाना है..
उन्होंने मुझसे कहा-क्या आप मुझे छोड़ देंगे..
मुझे कल्याण जाना है।
मैंने कहा हां..
मैं भी इधर से ही जा रहा हूँ..
उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पे रखा और चलने लगे..
(एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी..मानो कोई कोमल हाथ जैसे कमल की पंखुड़िया मेरे कंधे पे हो)
स्लोपिंग वाला रास्ता था तो मैंने उनसे कहा आप अपना स्टिक खोल लीजिये..
उन्होंने कहा खराब हो गया है..
फिर उन्होंने कहा कि मैं ATM कवर,टिश्यू पेपर थैला में रखकर बेचता हूँ.. 
वो थैला उनके हाथ से लटकी हुई थी..।
उनकी बात जब खत्म हुई तो मैंने उनसे पूछा स्टिक कितने में देता है..
उन्होंने कहा 180₹ मैं..क्या आप मेरी मदद करेंगे..
मैंने कुछ नही कहा..
हम तबतक प्लेटफार्म पे पहुंच गए..
उन्होंने कहा ये ट्रैन कर्जत जाएगी..
मैंने उनसे पूछा क्या ये कल्याण होते हुए जाती है..
उन्होंने कहा हां..
तबतक ट्रैन खुल गई..।
फिर उन्होंने कहा मुझे हैंडीकैप्ड वाले डिब्बे के पास ले चले..
सीढ़ी के पास डिब्बा लगता है..
मैं सीढ़ी ढूंढने लगा, जो की सामने था..
उन्होंने कहा हां...हां यही..
टिक-टिक की आवाज आ रही है..
फिर उन्होंने एक चबूतरे की तरफ चेहरे करके पूछा क्या ये जगह खाली है..
चबूतरे पे बैठे हुए लोगों में से एक महिला ने कहा नही..
उन्होंने कहा ठीक है..
मैंने सोचा स्टिक का पैसा दे देता हूँ..
मैं 180₹ ढूंढने लगा..
फिर सोचा 180₹ नही 200₹ दे देता हूँ..।।
मैंने उनके हाथ मे 100-100 के 2 नोट थमाए और कहा 200₹ है..
उन्होंने कहा - धन्यवाद आपका..
मैंने कहा..इसकी कोई जरूरत नही..।
और मैं वंहा से अपनी ट्रैन पकड़ने के लिए आ गया..।
तबतक उनकी भी ट्रेन आ गई..
मैंने पीछे मुड़कर देखा कि, वो चढ़े की नही..
मगर वो अपने हाथों के सहारे ट्रैन में चढ़ गए..।।
और ट्रेन खुल गई..।।

और मैं सोचता ही रह गया...
आखिर वो कैसे हरेक छोटी बातों का ख्याल रखे हुए थे..
और हम आम इंसान हरेक छोटी बातों को दरकिनार करते है..।

ये ट्रैन कर्जत जाएगी..
ट्रैन खुल गई..
सीढ़ी के नीचे हैंडीकैप्ड बोगी..
टिक-टिक की आवाज..
क्या जगह खाली है..
धन्यवाद आपका..।।






रविवार, 6 अप्रैल 2025

प्यार की पांति...कैसे निष्ठुर थे तुम...

कैसे निष्ठुर थे तुम..
मैं या तुम..??
कैसे छोड़ के गए तुम..
चोरी चुपके..।।
हां गलती हुई मुझसे..
मगर अपनी शर्म हया को बचाने के खातिर ही निकला था मैं चुपके चुपके..
तुम तो मुझसे भी ज्यादा निष्ठुर निकली..
तुम इस तरह गायब हुई..
मेरी जिंदगी से जैसे तुम्हारा कोई अस्तित्व था ही नही..।।
कैसे निष्ठुर थे तुम..
मैं या तुम..??

राम से श्रीराम की यात्रा..

क्या राम आज भी प्रासंगिक है..??
अगर हां...तो कंहा..??
सोचिए...
आपके अनुसार राम की प्रासंगिकता कंहा है..??

मेरे अनुसार राम की प्रासंगिकता हमारे जीवन को छोड़करके हरेक जगह है..
हमारे जीवन मे अगर राम की प्रासंगिकता अगर बनी हुई है तो वो राजनीतिक कारणों से ही..
या फिर मंदिर में विराजमान होने के कारण..।
या फिर बाजारवाद के कारण ही राम आज प्रांसगिक बने हुए है..
क्योंकि राम के कारण..
कई राजनीतिक पार्टियों की राजनीति चल रही है..
तो कंही राम के कारण बहुत बड़ा बाजार को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे कइयों का पेट और आजीविका चल रहा है..।

अक्सरहाँ लोग रामराज की बात करते है..
मगर राम के चरित्र के बारे में कोई बात नही करते..
क्या बिना राम के चरित्र को अनुसरण किये हुए राम राज्य की कल्पना किया जा सकता है..।

आज हममें से अक्सरहाँ लोग राम के चरित्र के बारे में नही जानते...
उनके राम से श्रीराम बनने की यात्रा को नही जानते..
बिना इस यात्रा को जाने हुए क्या हम राम को जान सकते है..??
चलिए राम से श्रीराम बनने की यात्रा को जानते है..



बुधवार, 2 अप्रैल 2025

शैतान

हमसब के अंदर एक शैतान छुपा होता है..
जो नियम,कानून,परवरिश और समाज के भय से छुपा रहता है..।
कभी-कभी वो हमारे क्रोध के रूप में बाहर आता है,और फिर कुछ समय बाद वो किसी कोने में दुबक जाता है।
मगर कभी-कभी हमारा क्रोध इतना उग्र हो जाता है की हमारे अंदर छुपा शैतान बाहर आ ही जाता है,और कुछ गलत कर जाता है..जिसकी सजा ताउम्र भुगतनी पड़ती है..।

आजकल तो हमारे अंदर छुपे शैतान को तो अक्सरहाँ बाहर हुलकिया मारने का मौका मिलता रहता है..
और ये मौका सोशल मीडिया दे रहा है..
ये शैतान वंहा पे अपना स्वरूप दिखाता रहता है..।।

स्वीकारिये...

हमसब कंही न कंही गलतियां करते है,
कभी गलती से करते है,तो कभी-कभी जानबूझकर..।
और फिर इन गलतियों के कारण कभी सजा भुगतना पड़ता है..
या फिर कई बार इसकी सफाई देना पड़ता है..।।
और अक्सरहाँ इसकी टीस उभरती रहती है..
कभी-कभी तो, ये टीस ताउम्र बनी रहती है..।।
क्या इससे छुटकारा पाया जा सकता है..??
बिल्कुल..
सिर्फ एक काम करना है..
आपको अपनी गलतियां स्वीकारना है..।
क्या हम अपनी गलतियां स्वीकार सकते है..??
ज्योही,हम अपनी गलतियां स्वीकारते है..
सारा टीस और तकलीफ खत्म हो जाती है..
चाहे वो कितनी बड़ी या पुरानी ही क्यों न हो..।।



जब हम अपनी गलतियां स्वीकारते है..
तो हममें गंभीरता आती है..
और इस गंभीरता में सारे दर्द,बोझ और टीस दफन हो जाते है..
और ये फिर कभी उभरकर नही आते है..।।

स्वीकारे... अपनी गलतियों को..
स्वीकारे... अपने कमियों को..
स्वीकारी...अपने नाकामियों को..
स्वीकारे...अपने आप को..
ये स्वीकार ही आपको स्वीकृति देगी..
ये स्वीकार ही आपको नई आकृति देगी..
ये स्वीकार ही आपको स्वयं से साक्षात्कार कराएगी..।।
मत भागिए..
कंहा तक भागियेगा..
भागते-भागते फिर वंही पे आ जाइयेगा..
स्वीकारिये..और सिर्फ स्वीकारिये..