कभी गलती से करते है,तो कभी-कभी जानबूझकर..।
और फिर इन गलतियों के कारण कभी सजा भुगतना पड़ता है..
या फिर कई बार इसकी सफाई देना पड़ता है..।।
और अक्सरहाँ इसकी टीस उभरती रहती है..
कभी-कभी तो, ये टीस ताउम्र बनी रहती है..।।
क्या इससे छुटकारा पाया जा सकता है..??
बिल्कुल..
सिर्फ एक काम करना है..
आपको अपनी गलतियां स्वीकारना है..।
क्या हम अपनी गलतियां स्वीकार सकते है..??
ज्योही,हम अपनी गलतियां स्वीकारते है..
सारा टीस और तकलीफ खत्म हो जाती है..
चाहे वो कितनी बड़ी या पुरानी ही क्यों न हो..।।
जब हम अपनी गलतियां स्वीकारते है..
तो हममें गंभीरता आती है..
और इस गंभीरता में सारे दर्द,बोझ और टीस दफन हो जाते है..
और ये फिर कभी उभरकर नही आते है..।।
स्वीकारे... अपनी गलतियों को..
स्वीकारे... अपने कमियों को..
स्वीकारी...अपने नाकामियों को..
स्वीकारे...अपने आप को..
ये स्वीकार ही आपको स्वीकृति देगी..
ये स्वीकार ही आपको नई आकृति देगी..
ये स्वीकार ही आपको स्वयं से साक्षात्कार कराएगी..।।
मत भागिए..
कंहा तक भागियेगा..
भागते-भागते फिर वंही पे आ जाइयेगा..
स्वीकारिये..और सिर्फ स्वीकारिये..
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