शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

नरेंद्र से विवेकानंद बनने की यात्रा..

 आज युवा दिवस है..



और आज के युवा को सोशल मीडिया पर स्क्रोल करते वक़्त ये भी नही मालूम नही होता कि,वो आखिर क्या ढूंढने के लिए स्क्रोल कर रहे है..।। 


आज इस सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से उन्हें जानना बहुत आसान है,जिनके जन्मदिवस पे आज युवा दिवस मनाया जा रहा है..।


मगर हम ये नही जानना चाहते कि नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनने की यात्रा कैसा था..??

ये हरेक युवा को जानना चाहिए..


नरेंद्र का जन्म 12 जनुअरी 1867 में कोलकाता में हुआ। पिता विश्वनाथ दत्त वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी थी। 

इनके जीवन के ऊपर जितना प्रभाव पिता का पड़ा उतना ही माता का भी..।।

इनके दादाजी दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और पारसी के विद्वान थे, साथ ही लॉ की भी पढ़ाई किये थे। 25 वर्ष की उम्र में ही संत बन गये।

जिसका कुछ न कुछ प्रभाव इनके ऊपर भी पड़ा ही होगा।।


1871 में 7 साल के उम्र में मेट्रो पॉलिअन्त स्कूल में नामांकन होता है।

1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में नामांकन लेते है।

कॉलेज के पढ़ाई के दौरान ही , एक दिन प्रोफेसर विलियम हैस्टिक, विलियम वर्ड्सवर्थ की 'the excursion' चैप्टर पढ़ा रहे थे । उसी में एक शब्द "TRANCE" आता है। नरेंद्र इस शब्द को अच्छी तरह नही समझ पाते है तो प्रोफेसर कहते है इसे अच्छी तरह समझने के लिए रामकृष्ण परमहंस से मिलना होगा।

उन्ही दिनों कोलकाता में रामकृष्ण परमहंस(1881)सुरेंद्र नाथ मित्र के यंहा आये थे। ये बात नरेंद्र को जब पता चलता है तो वो अपने मित्र के साथ पहुंच जाते है। संगीत-गान की भी व्यवस्था किया गया था,मगर कोई आया नही। इसी समय मित्र के कहने पर वो गाते है- "जागो मां कुलकाण्डलिनी" जिसे सुन परमहंस भावविभोर हो जाते है। और उन्हें दक्षिणेस्वर बुलाते है।



जब नरेंद्र दक्षिणेस्वर जाते है तो पहला सवाल वो पूछते है- क्या आपने भगवान को देखा है..??

परमहंस कहते है- हां देखा है, जैसे तुम्हें देख रहा हूँ,वैसे ही देखा हूँ, बल्कि इससे भी अच्छी तरह से देखा हूँ।।


नरेंद्र का जाना-आना लगा रहता है। इसी बीच 1884 में पिता के मृत्यु होते ही मानो पहाड़ टूट पड़ता है। दिन-प्रतिदिन कर्जदार होते गए,ऊपर से रिश्तेदारों ने केस कर दिया। नरेंद्र ने पहली बार जाना कि गरीबी क्या होती है,खाली-पेट नॉकरी के तलाश में एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर का सिलसिला जारी रहता।

इसी बीच रामकृष्ण परमहंस से नजदीकियां और बढ़ गया।

नरेंद्र की व्याकुलता देखकर एकदिन परमहंस ने कहा अगर तुम मेरा काम करोगे, तो तुम्हारे परिवार का दो वक्त के रोटी का में बंदोबस्त कर दूंगा।

विवेकानंद ने हामी भर दी और शिष्यत्व ग्रहण किया। परमहंस ने उन्हें अपना उत्तरदायित्व दे दिया।


1886 में रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद 'बराह मठ' का निर्माण किया और शिष्य भाई को संगठित कर वो लाहौर से कन्याकुमारी की यात्रा पे पैदल चल दिये।


खेतड़ी के राजा अजित सिंह के सहयोग से 11 सेप्टेंबर 1893 को शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए जाते है। और इसी समय खेतड़ी के महाराज द्वारा उन्हें "स्वामी विवेकानंद" नाम दिया जाता है



4 साल तक पकश्चिमी देशों में लगातार व्यख्यान देने का सिलसिला जारी रहता है।

 भारत वापस आने पर 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते है।

इस बीच लगातार रामकृष्ण परमहंस के विचारों के माध्यम से समाज में नई चेतना का विकास करने का कार्य जारी रखते है।।

4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में बेलूर मठ में अपना प्राण त्याग देते है।


मगर उनके विचार और आदर्श आज भी युवाओं को उद्देलित करता है..।

वो कहते है-

 " सामाजिक परिवर्तन बाहर से नही,अंदर से होता है"

 "हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो,आप किसी की मदद नहीं कर सकते, बस उसकी सेवा कर सकते हैं।

 "शिक्षा का मतलब सूचना एकत्र करना नही बल्कि, जीवन, चरित्र,और व्यक्ति निर्माण पर होना चाहिए।

 "बिना महिला के सशक्त हुए बिना,समाज कभी सशक्त नही होगा।


उनके विचारों ने समाज के हरेक वर्ग को उद्देलित किया..।।

सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें भारत का "आध्यातिमक पिता" कहा..।।


उनके विचार आज भी प्रासंगिक है,मगर अफसोस आज के युवा को उनके विचार को तो छोड़िए,उनका क्या विचार है वो खुद निर्णय नही ले पा रहे है..।।



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